For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-61 (विषय: प्रकृति)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-61 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-61
विषय: प्रकृति
अवधि : 29-04-2020 से 30-04-2020
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2819

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

      पहचान

इस इलाके में भी लोगों को बार बार हाथ धोते देख एक मद्धिम सी फुसफुसाहट सुनाई पड़ी,'  हुंह! यहां भी वही बात है। कुछ भी करते हैं,तो हाथ धोते हैं।पहले तो ऐसा न था।'

' हां, पहले ऐसा नहीं था।सबको मालूम है,' एक अन्य खड़खड़ाती - सी  आवाज आई।
  ' कौन हैं आप?' फुसफुसाहट ने सवाल किया।
' सिफिलिनम, एक होमियो औषधि।सिफिलिस मिआस्म का हूं।' सिफिलिनम झुंझलाकर बोला।
' सिफी, मैं भी तुम्हारी ही तरह एक दवा हूं। हां, मैं एक बैच फ्लावर रेमेडी हूं।शायद इसीलिए तुम मुझे नहीं जानते।' क्रैब ने बेधड़क होकर कहा।
' बैच फ्लावर रेमेडी?अच्छा बैच रेमेडी हो तुम?' सिफी अपनी अज्ञता पर शरमाते हुए बोला।
' हां रेे सिफी!तुमने ठीक समझा।' क्रैब ने उसकी पीठ थपथपाई।
' हम लोगों की चारित्रिक पहचान आज आम हो चुकी है,क्रैब।' सिफी घबराए हुआ बोला।
' हां रे,आजकल सब लोग बार बार हाथ धोने लगे हैं।'
' वही तो।अब डॉक्टर लोग परेशान होंगे कि इस बारम्बार हस्त - प्रक्षालन के आधार  किसे क्रैब या सिफी दें,किसे न दें?चूंकि व्यक्ति में स्वच्छ न होने का भाव होना ही हमारी पहचान है।' सिफी ने दोनों की वेदना प्रकट की।
' हुंह ..हुंह...।' एक धीमी सी ध्वनि पर दोनों का ध्यान आकृष्ट हुआ।
' अबे कौन हो तुम मास्क वाली मैडम?' क्रैब और सिफी एक साथ बोल पड़े।
' बहन ही कह लो  मुझे।' जनाना आवाज आई।
' फिर भी अपना नाम तो बताओ।'
' एग्री कह सकते हो मुझे।वैसे मैं एग्रीमनी हूं, एक बैच रेमेडी। क्रैब तो मुझे जानती ही होगी।'
' आओ,आओ एग्री।अभी तो सब लोग नाक मुंह ढक कर चल रहे हैं।इसलिए मैं तुम्हे नहीं पहचान सकी।माफ करना बहन।' क्रैब बोली।
' ऐसी कोई बात नहीं है, बहन।अभी चेहरे आसानी से पहचाने ही कहां जाते हैं?पहले बैच डॉक्टर मास्क में रहने के चलते यानी अंदर की बात दबाए रहने के कारण लोगों को  मेरा सेवन करने की सलाह देते थे,पर अब तो सबके चेहरे ढके हुए हैं।क्या अंदर,क्या बाहर;सब एक समान। मनोभावों की पहचान मुश्किल हो गई है।' एग्री एक ही सांस में बोल गई।
' सच है एग्री।हमारी पहचान का खतरा यानी प्राणिमात्र का कल्याण खतरे में है।' क्रैब और सिफी साथ साथ बोल पड़े।
' वही तो।अभी रास्ते में वॉयलेट (वॉटर वॉयलेट) मिला था।अकेलापन से उबकर साथ ढूंढ रहा था।' एग्री बोली।
' पहले तो अपने अकेलापन का गुमान पाले हुए थे जनाब।अब क्या हुआ?' क्रैब और सिफी ने जानना चाहा।
' हां,अकेलापन उसे पसंद था;लेकिन तब,जब लोग भीड़ जमावड़े में हुआ करते थे।अभी तो सभी अकेले अकेले, आपस में दूरी  बनाकर रहना चाहते हैं;भले ही मजबूरी में।'एग्री बोली।
' पहचान..पहचान..पहचान...' वॉयलेट पास आ चुका था।वह बड़ी चिढ़ के साथ बोला।
' शांत वॉयलेट,शांत!सब समय का फेर है भाई!' क्रैब,सिफी और एग्री एक साथ बोले।
' अरे क्या  समय और क्या उसका फेर? अपना समय आएगा कभी?अभी एक बैच डॉक्टर और एक होमिओ डॉक्टर माथा पीट रहे थे।एक दूसरे को सांत्वना भी दिए जा रहे थे। कह रहे थे कि इस तरह तो लक्षणों की पहचान ही नहीं होगी।दवा कैसे देंगे?' वॉयलेट बोला।
' हां भई!दिक्कत तो हमें ही है।दकियानूसी पद्धति वाले तो बस रोग दबाऊ दवाएं देते ही रहेंगे। लोगों को ऐंठते रहेंगे।' सबने जैसे आकाश से गुहार लगाई हो।ऊपर देखने लगे।
' देखो भई!उपाय ऊपर से नहीं,इसी धरती से निकलेगा।मैंने एक बैच डॉक्टर सह लेखक से बात की है।उसने हमारी भावना को जनता तक पहुंचाने का मुझसे वादा किया है। वैसा करेगा भी।' एग्री खुद को साबित करती हुई बोली।
' आमीन!' सबने कहा।
' पर हमें अपने अपने नकाब से बाहर आना होगा।औरों को भी लाना होगा। खतरे को पैदा होने से रोकना होगा।हो गया है,तो उससे मिल -जुलकर लड़ना होगा।' एग्री बोली।
' जरूर।हम पूरी कोशिश करेंगे,नहीं तो प्राणियों के आरोग्य का हमारा लक्ष्य अधूरा रह जाएगा।' एक समवेत स्वर गूंज गया।
"मालिक व अप्र का शित"

....

आदाब। शुभप्रभात। एक आश्चर्यचकित कर देने वाली समसामयिक विषयांतर्गत बेहतरीन और उम्दा परिकल्पना वाली सकारात्मक संदेशवाहक रचना के साथ आपने महत्वपूर्ण विषय पर आधारित गोष्ठी का बढ़िया आग़ाज़ किया है आपने मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।  हार्दिक बधाई। पात्र संख्या अधिक व रचना की लम्बाई अधिक होने के कारण पहली बार पढ़ने के बाद दुबारा पढ़ने की आवश्यकता महसूस हो रही है। सादर।

सभी सदस्यगण को माह-ए-रमज़ानुल करीम मुबारक़ हो।

आदरणीय उस्मानी जी,आदाब एवं शुक्रिया! लघुकथा के बारे में आपके अमूल्य विचार प्रेरणादायक हैं।संदर्भ के मद्दे नजर चार पात्र कथ्य को आगे बढ़ा रहे हैं।ऐसा इसलिए है कि वर्तमान लघुकथा मानवीय मनोभावों पर आधारित है।...और कुछ मनोभावों की प्रवृत्तियां अभी,तात्कालिक तौर पर ही सही, गड मड हुई सी प्रतीत होती हैं।एक बार पुनः आपका आभर।आपको भी पवित्र रमजान की बधाइयां।

बेहतरीन लघुकथा आ0 मनन जी.।

आभार आदरणीय।

लघुकथा गोष्ठी का शुभारंभ एक बेहतरीन लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

आपका आभार।

आदरनीय मनन कुमार सिंह जी लघुकथा गोष्ठी के बेहतरीन शुभारम्भ के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .

आपका आभार आदरणीय ओम जी।

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, सादर नमन। हार्दिक बधाई इस सामयिक प्रस्तुति के लिए। सादर

आपका आभार आदरणीय सतविंदर जी।

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service