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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २०(सभी प्रविष्टियाँ एक साथ)

जनाब एहतराम इस्लाम 

(मूल गज़ल)

 

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

ऐश कीजे, धन तो है, कुर्सी नहीं तो क्या हुआ

 

आदमी का खून तो मिलने लगा पानी के भाव 

दूसरी चीजें अगर सस्ती नहीं तो क्या हुआ

 

मौन कमरे का बराबर वार्ता करता रहा

आपकी तस्वीर कुछ बोली नहीं तो क्या हुआ

 

तान जो रखे हैं जाले मकड़ियों ने हर जगह 

लाख जालों में अभी मक्खी नहीं तो क्या हुआ

 

मातृ भाषा, राष्ट्र भाषा, राज भाषा, सब तो है 

बस ज़रा व्यवहार में हिंदी नहीं तो क्या हुआ

 

पट्टियां आँखों पे चढवा दी गई हैं 'एहतराम'

देश की जनता अगर अंधी नहीं तो क्या हुआ

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Yogendra B. Singh Alok Sitapuri

 

बंद कमरे में अगर खिड़की नहीं तो क्या हुआ

धूप सूरज की यहाँ पड़ती नहीं तो क्या हुआ

 

चाँद की किरणें मुसलसल जब फ़िदा हैं आप पर

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

 

काम मेरा है सदा-ए-हक बयां करता रहूँ

ये तो दुनिया है मेरी सुनती नहीं तो क्या हुआ

 

फिक्र मेरी बस तेरी ही जात तक महदूद है

वक्त की रफ़्तार ये चलती नहीं तो क्या हुआ

 

प्यास धरती की अगर बुझती नहीं रसधार से

ऐ घटा सावन में तू बरसी नहीं तो क्या हुआ

 

आपको देखा करूँ जैसे चकोरा चाँद को

देखकर तबियत अगर भरती नहीं तो क्या हुआ

 

लोग कहने के लिए कहते हैं तो शायर मुझे

शायरी आलोक से निभती नहीं तो क्या हुआ

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह

 

जानलेवा है नज़र सीधी नहीं तो क्या हुआ

बाल रेशम हैं कभी धोती नहीं तो क्या हुआ

 

तेल सूरज छाप फिर से आजमाकर देखिए

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

 

रोज सुनना चाहती है मुझसे लव यू डार्लिंग

है तो बीबी ही फ़कत अपनी नहीं तो क्या हुआ

 

आज फिर अपनी ग़ज़ल उसको सुनाकर देखिए

प्यार से सुनता तो है लड़की नहीं तो क्या हुआ

 

यूँ पड़ोसन को ग़ज़ल के पेंच मत समझाइए

अबके बीबी आपकी समझी नहीं तो क्या हुआ

 

यूँ न अपनी भैंस को ग़ज़लें सुनाया कीजिए

सींग दो हैं आज तक भड़की नहीं तो क्या हुआ

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Sanjay Mishra 'Habib' 

शब फिराके यार की ढलती नहीं तो क्या हुआ?

दर्द की कोई दवा पाई नहीं तो क्या हुआ? |१|

 

खुशबू का बन कारवां, फूलों की चाहत ले चलो,

राह मंजिल तक महकती भी नहीं तो क्या हुआ? |२|

 

वो खुशी मेरी खुदाया जिंदगी मैं यार की,

है पता मुझको अगर कहती नहीं तो क्या हुआ? |३|

 

तू पसीने से जमीं अपना चमन यह सींच ले,

बादलों की फ़ौज आ झरती नहीं तो क्या हुआ? |४|

 

दिल जवां तो दिलकशी है वक्त की हर चाल में,

उम्र की धारा अगर ठहरी नहीं तो क्या हुआ? |५|

 

वक्त की बातें हैं बस मायूस दिल करिये नहीं,

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ? |६|

 

जजबा  है ये बेशकीमत दिल में ही रौशन रहे,

बंदगी में गर शमा जलती नहीं तो क्या हुआ? |७|

 

भीग कर अहसास में अल्फाज खिल उठते कभी,

कहता हूँ अशआर गो आली नहीं तो क्या हुआ? |८|

 

तू 'हबीब' आया जहां में दोस्ती की बात कर,

खारों से जो यह जमीं खाली नहीं तो क्या हुआ? |९|

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dilbag virk

 

पास अपने रौशनी काफी नहीं तो क्या हुआ

दिल जले है ,जो दीया बाती नहीं तो क्या हुआ |

 

पार कर लेंगे उफनते दरिया को हम तैरकर

हौंसला तो है, अगर कश्ती नहीं तो क्या हुआ |

 

उस खुदा की रहमतें मिलती रहें काफी यही

साथ मेरे जो तेरी मर्जी नहीं तो क्या हुआ |

 

खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का यारो

आज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ |

 

गीत हैं आहें मेरी , गाऊं सदा मैं झूम के

साज हैं सांसे मेरी , डफली नहीं तो क्या हुआ |

 

हार मानी क्यों , अभी तो आएँगे मौके कई

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ |

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satish mapatpuri

 

हर ख़बर अख़बार की सुर्खी नहीं तो क्या हुआ.
हो रहा है जो मेरी मर्जी नहीं तो क्या हुआ.

और भी आयेंगी रुत मायूस ना यूँ होइए.
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ.

हम नहीं कोई और - कोई और या कोई और हो.
आप तो खुश हैं सनम हम ही नहीं तो क्या हुआ.

एक बरगद आज भी यूँ ही खड़ा है गाँव में.
अब कोई आराम ही करता नहीं तो क्या हुआ.

फूल गमले में खिलाकर क्या करेंगे मान्यवर.
रुत बसंती आके भी रुकती नहीं तो क्या हुआ.

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Vindhyeshwari prasad tripathin

 

इश्क मुझसे वो कभी करती नहीं तो क्या हुआ।
कसके मुझको बाँह में भरती नहीं तो क्या हुआ॥

.
उसके दर पे चल के उल्फत आजमाते हैं।
अबकी किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ॥

.

इश्क का मारा हूं मैं जीता हूं उसका नाम ले।
उसको मेरी याद भी आती नहीं तो क्या हुआ॥

.

मैखाने में आये हो गर कुछ बात पीने की करो।
खुद ही कुछ जाम भर साकी नहीं तो क्या हुआ॥

.

उससे मिलने आज भी जाता हूं दरिया पे मगर।
वो ही मुझसे आजतक मिलती नहीं तो क्या हुआ॥

.

प्यार वर्षों का मेरा उसको फकत मालूम हो।
गर मुझे अपना कभी मानी नहीं तो क्या हुआ॥

.

शौक बचपन से गजल कहने और सुनने का।
आज भी अच्छी गजल बनती नहीं तो क्या हुआ॥

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Arun Kumar Pandey 'Abhinav'

 

ये व्यवस्था न्याय की भूखी नहीं तो क्या हुआ ,

गालियों  से पेट भर रोटी नहीं तो क्या हुआ |

 

पार्कों में रो  रही  हैं गांधियों की मूर्तियाँ ,

सच की इस संसार में चलती नहीं तो क्या हुआ |

 

वो उसूलों के लिए सूली पे भी चढ़ जाएगा ,

आपकी नज़रों में ये खूबी नहीं तो क्या हुआ |

 

खुद ही तिल तिल जलना है और चलना है संसार में ,

आंधियां में बातियाँ जलती नहीं तो क्या हुआ |

 

ये सियासत बेहयाई का सिला देगी ज़रूर ,

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ |

 

पुलिस चौकी दारू के ठेके खुले  हर गाँव में ,

सड़क पानी खाद और बिजली नहीं तो क्या हुआ |

 

चल खड़े हो एक जुट हम बादशा को दें जगा ,

घंटी दिल्ली में कोई पगली नहीं तो क्या हुआ |

 

आप शीतल पेय की सौ फैक्ट्रियां लगवाइए ,

कल की  नस्लों के लिए पानी नहीं तो क्या हुआ |

 

नाव कागज़ की बनाना छोड़ना फिर ताल में  ,

वो कमी अब आपको खलती नहीं तो क्या हुआ |

 

गिल्ली डंडे गुड्डी कंचे कॉमिकों से दोस्ती ,

आज के बचपन में ये  कुछ भी नहीं तो क्या हुआ |

 

सड़क से सरकार तक इनकी सियासत है मिया ,

पत्थरों की मूर्तियाँ सुनती नहीं तो क्या हुआ |

 

इस तमाशे का  है आदी हाशिये का आदमी ,

लेती है सरकार कुछ देती नहीं तो क्या हुआ |

 

एक दिन वो आएगा उनकी लगेगी तुमको हाय ,

आज उनके हाथ में लाठी नहीं तो क्या हुआ |

 

इस तरक्की ने बदल डाले हैं त्योहारों के रंग ,

अबके होली में मिली छुट्टी नहीं तो क्या हुआ |

 

उम्र कैसे बीतती है आईनों से पूछना ,

खुद को ही अपनी कमी दिखती नहीं तो क्या हुआ |

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SHARIF AHMED QADRI "HASRAT"

 

चाँदनी बदली से गर निकली नहीँ तो क्या हुआ ।
रोशनी उसकी अगर बिखरी नहीँ तो क्या हुआ ।१।

ऐक दिन चूमेगी क़दमो को सफलता बिलयक़ीँ।
अब के क़िस्मत आपकी चमकी नहीँ तो क्या हुआ।२।

हर कोई मुझको यहाँ बदला सा आता है नज़र।
अपनी हालत आज भी बदली नहीँ तो क्या हुआ।३।

जीत के नेताजी तो सोये हुऐ हैँ चैन से।
अब भी मैँरे गाँव मेँ बिजली नहीँ तो क्या हुआ।४।

अपनी जेबेँ भर रहे हैँ बेचकर ये देश को।
पास मुफ़लिस के अगर रोटी नहीँ तो क्या हुआ।५।

ये न समझो के उसे उल्फ़त नहीँ हे आपसे।
बात 'हसरत' लब पे ये आती नहीँ तो क्या हुआ।६।

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Saurabh Pandey

 

ग़र ज़ुबानी ज़िन्दग़ी मेरी नहीं तो क्या हुआ
चार लोगों में कहानी भी नहीं तो क्या हुआ
  
शह्र की बदनाम गलियों से गुजरिये, देखिये -
ज़िंदगी है पाक, जो सुथरी नहीं तो क्या हुआ
  
इंतजारी में मज़ा है खिड़कियों से पूछ लो 
यार, मेरी झुरझुरी दिखती नहीं तो क्या हुआ 
  
बढ़ रहे साये घनेरे,  है मग़र हिम्मत बनी
जुगनुओं की रौशनी तारी नहीं तो क्या हुआ

फूल लेकर हाथ में सब जा रहे ’सैकिल’ चढ़े
छोड़िये हाथी-सवारी की नहीं तो क्या हुआ
  
जोश है,  दाढ़ी बढ़ी है, भीड़ है, दस्तूर भी 
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ 
  
हमने कितनों से सुना है, यार ’सौरभ’ यार का
बात वे पर मानते अब्भी नहीं तो क्या हुआ

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sanjiv verma 'salil'

 

 

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?
सुबह से बीबी अगर तमकी नहीं तो क्या हुआ??

कीमतें ईमान की लुढ़की हुई हैं आजकल. 
भाँग ने कीमत तनिक कम की नहीं तो क्या हुआ??

बात समता की मगर ममता महज अपने लिये.
भूमि माया ने अगर सम की नहीं तो क्या हुआ??

आबे जमजम से युवाओं का नहीं कुछ वास्ता. 
गम-खुशी में बोतलें रम की नहीं तो क्या हुआ??

आज हँस लो, भाव आटे-दाल का कल पूछना.
चूड़ियों ने आँख गर नम की नहीं तो क्या हुआ??

कौन लगता कंठ गा फागें, कबीरा गाँव में? 
पर्व में तलवार ही दमकी नहीं तो क्या हुआ??

ससुर जी के माल पर नज़रें गड़ाना मत 'सलिल'.
सास ने दी सुबह से धमकी नहीं तो क्या हुआ??

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AVINASH S BAGDE

 

दाल-रोटी पर यूँ चुपड़ा घी नहीं तो क्या  हुआ.

मुझपे उस करतार की मर्जी नहीं तो क्या हुआ!

 

दुश्मनी  से  दोस्ती  कर के  बता देंगे  तुम्हे,

दोस्ती के  मायने  बाकी  नहीं तो क्या हुआ .

 

गुंडई के  कारनामे हम  भी कर  सकते यहाँ,

पास अपने कोई भी वर्दी नहीं तो  क्या हुआ.

 

मय-ओ-मेरे बीच में कोई न मुझको चाहिए,

आज मैखाने में जो साकी नहीं तो क्या हुआ.

 

अपनी बेटी को पढ़ाकर बन गया तू औलिया,

आंगने में जो तेरे तुलसी नहीं तो क्या हुआ.

 

कल तुम्हारी मुट्ठियों में कैद है 'अविनाश' जी,

अब के किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ.

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N .B. Nazeel

 

 

हसरतें  थी जो  हुई  पूरी  नहीं  तो  क्या हुआ ||
ज़िन्दगी अपनी अभी बदली नहीं तो क्या हुआ ||

लौ  चिरागों  की  मिटाती  है  अभी  अन्धेरे को ,
गाँव में जो आज  तक बिजली नहीं तो क्या हुआ ||

हौंसला  ना हार , बदलेंगी  लकीरें  हाथ  की ,
अबके किस्मत आपकी चमकी  नहीं तो क्या हुआ ||

काट  लेंगे  ज़िन्दगी  हम  नफरतों के साथ भी ,
मुहब्बत उनकी नसीब में थी नहीं तो क्या हुआ ||

साथ  देती  है ख्यालों  को  पिरोने  में  हमें ,
कलम अपनी अभी करामाती नहीं तो क्या हुआ ||

रुतबा  तो  है  वही  अब  भी  ,रहेगा  ताउम्र ,
बस दिलों में मुहब्बत पलती नहीं तो क्या हुआ ||

आशियाना तो जलाया है उसी ने पर "नजील" ,
हुस्न वाले मानते गलती नहीं तो क्या हुआ ||

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Arvind Kumar

 

 

उन लबों पे गर हँसी, बिखरी नहीं तो क्या हुआ,

शहर-ए-गम में रोशनी, छिटकी नहीं तो क्या हुआ.

 

क्या हुआ जो वक़्त के मारों में शामिल रह गए,

अबके किस्मत आपकी, चमकी नहीं तो क्या हुआ.

 

फिर उगा लेंगे गुलों को, हम लहू से सींचकर,

इस बरस बगिया अगर, महकी नहीं तो क्या हुआ.

 

पाँव रोके रहने से तो, वक़्त रुकता है नहीं,

आ निकल चल, मंजिलें दिखती नहीं तो क्या हुआ.

 

कुछ अगर दिखता नहीं, तो मन की ऊँगली थामे चल,

शब में कोई चंदनिया, चमकी नहीं तो क्या हुआ.

 

आएगा इक दिन भी जब, दिल का कहा मानेंगे हम,

ये कड़ाही पेट की, भरती नहीं तो क्या हुआ.

 

एक दिन सबसे अलग, बनकर तुझे दिखलाऊंगा,

भीड़ में अब शख्सियत बचती नहीं तो क्या हुआ.

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Ambarish Srivastava

 

लाल चूनर सर से जो सरकी नहीं तो क्या हुआ

चाल उल्फत की रवां मिलती  नहीं तो क्या हुआ

 

देखिये गर्दन मेरी झुकती नहीं तो क्या हुआ

झाँकता दिल में कोई खिड़की नहीं तो क्या हुआ

 

आसमां से जो हुई हैं आज तक ये बारिशें

प्यास धरती की कभी बुझती नहीं तो क्या हुआ

 

चाँदनी का देख जादू दिल है  आवारा जवां

चाँद के रुख से नज़र हटती नहीं तो क्या हुआ

 

रंग डाला आपने मुझको भी अपने रंग में

देखती मैडम रहीं भड़की नहीं तो क्या हुआ

 

चाँद लेता है बलाएँ चांदनी भी है फ़िदा

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

 

प्यार का इजहार दिल से आज ‘अम्बर’ कर रहे

सबको प्यारे ये खुशी मिलती नहीं तो क्या हुआ

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satish mapatpuri

 

 

कब के  फंसे हैं बह्र में आती नहीं तो क्या हुआ.

कहते हैं, उनको ग़ज़ल भाती नहीं तो क्या हुआ.

.

मॉल में  जब तितलियों को देखता हूँ झुण्ड में.

देखने की लत बुरी जाती नहीं तो क्या हुआ.

.

होटलों में खाने को किसका नहीं करता है मन.

घर की दलिया रोज ग़र भाती नहीं तो क्या हुआ.

.

रोज का रुटीन है बाहर निकल कर देखना.

आज है  इतवार,  वो आती नहीं तो क्या हुआ.

.

होली भी क्या चीज है रुखसार पे फिरते हैं कर.

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ.

 

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Atendra Kumar Singh "Ravi"



आज कोई बात यूँ बनती नहीं तो क्या हुआ 
रात फिर से अब कभीं सजती नहीं तो क्या हुआ 

है बसर तन्हा , सफ़र तो है अकेला आज यूँ 
संग चलता है भला कोई नहीं तो क्या हुआ  

ये सियासत, ये हुकूमत, ये नज़ाकत कब तलक 
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ   

जो बहारें आ कभीं हमको हँसाती थी कभीं 
अब हवायें यूँ यहाँ आती नहीं तो क्या हुआ   

यूँ धरा को सेज अपनी व्योम को चादर बना 
गर घरोंदा आज यूँ ख़ाली नहीं तो क्या हुआ   

रात है ख़ामोश यूँ पर चांदनी तो रात है 
लेखनीं है साथ अब साथी नहीं तो क्या हुआ 

देख तेरी अब रवानीं जल रहे हैं लोग "रवि"
आ रही तुझ तक सदा उनकी नहीं तो क्या हुआ

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Tapan Dubey

 

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

आज खाली हाथ हो कुछ भी नहीं तो क्या हुआ

.

बाग़ मैं है फूल भी बाग़ों में कलियाँ भी लगी

बाग़ मै भंवरे भी हैं तितली नहीं तो क्या हुआ

.

अपने इन शब्दों से  उनको मैं जगाता हूँ  "तपन"

हाँ  लेकिन जनता कभी जगती नहीं तो क्या हुआ

.

हमने उसको उम्र भर बस अपना ही तो मान लिया

और वो हम सें कभी बोली नहीं तो क्या हुआ

.

गम भी हैं मुझको बहुत और दर्द कितना क्या कहूँ

आँख ये मेरी तो कभी भरती नहीं तो क्या हुआ

.

मेरी पत्नी एक परी रहती है मेरे साथ में

ख्वाब में परियाँ मुझे दिखती नहीं तो क्या हुआ

 

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Ambarish Srivastava

 

रूह महकी है फिज़ा महकी नहीं तो क्या हुआ

अबके सावन की घटा बरसी नहीं तो क्या हुआ

.

आज अपनी ही भुजा फड़की नहीं तो क्या हुआ

जुल्म की है इन्तेहां गिनती नहीं तो क्या हुआ

 

है तबीयत आपकी हल्की नहीं तो क्या हुआ

प्यार की फसलें अभी लहकी नहीं तो क्या हुआ

.

लाल आँखें घूरती हैं क़त्ल का इल्जाम है

घर में बीबी से मिली झिड़की नहीं तो क्या हुआ

.

लूट लेना बाद में मौका मिलेगा फिर अभी

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

 

राह चलते गीत गाती दिल लुभाती ये गज़ल

शायरी के मंच पर जमती नहीं तो क्या हुआ

 

आज ‘अम्बर’ में उड़े दिल प्रीति डोरी से बंधा

है हवा खामोश अब चलती नहीं तो क्या हुआ

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'फरमूद इलाहाबादी'

क़त्ल, किडनैपिंग करें कुर्सी नहीं तो क्या हुआ

'अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ'

 

सादगी पर खुद अमल करके दिखाएँ शेख जी 
साग रोटी खाएं वो मुर्गी नहीं तो क्या हुआ


मुन्ना भाई तुम मरीजों को न फिंकवा पाओगे

तुममें है इंसानियत डिग्री नहीं तो क्या हुआ


'पास' हो कर मस्अले बेरोजगारी मत बनो

इम्तिहान के वक्त में बिजली नहीं तो क्या हुआ

 

सागरों मीना को इक टक घूर तो सकता हूँ मैं 
अब मेरे हाथों में जुम्बिश ही नहीं तो क्या हुआ 

एक भी दमड़ी कोंई तुमसे न ले पाया बखील*

अब तुम्हारे जिस्म पर चमड़ी नहीं तो क्या हुआ 

* बखील = कंजूस

देखिये 'फरमूद' का कुर्ता ही है टखने तलक 
इसलिए बेफिक्र है लुंगी नहीं तो क्या हुआ

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Dr. Abdul Azeez "Archan"

 

कोई आशा की किरन चमकी नहीं तो क्या हुआ

ठोकरें हैं राह भी दमकी नहीं तो क्या हुआ

 

लुट रहा है हर कोई अपनी तरफ बढते हुए

ये खता औलादे आदम की नहीं तो क्या हुआ

 

चश्मे दरिया में अगर खटकी नहीं तो क्या हुआ

जो थपेडों में कहीं अटकी नहीं तो क्या हुआ

 

क्यों पलटकर साहिले उम्मीद से  लगती नहीं

कश्तिए इंसानियत भटकी नहीं तो क्या हुआ

 

लान के सब्जे पे कोई फर्क हो कैसे ‘अज़ीज़’

बूँद शबनम की कोई टपकी नहीं तो क्या हुआ

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Ambarish Srivastava

 

रंग गीले सालियाँ सहती नहीं तो क्या हुआ

आज घर में सासजी धमकी नहीं तो क्या हुआ

 

भंग का गोला गटक औ झूमकर फिर मिल गले

मौसमे होली में रम मिलती नहीं तो क्या हुआ

 

रंग होली का चढ़ा है एक्सरे करते चलो

वो पड़ोसन झाँकती भागी  नहीं तो क्या हुआ

 

नाज़नीनें हों फ़िदा रंगी अदा उनको दिखा

उम्र सत्तर की भली ढलती नहीं तो क्या हुआ

 

पेस्ट अलुमिनियम भला रुखसार को चमकाइये

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

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Mukesh Kumar Saxena

 

खा लिया कर गम को अपने आंसुओं को पी लिया कर

आज तेरे पेट में रोटी नहीं तो क्या हुआ .

 

जिस तरफ से गुजरते है देश के नेता कभी

गंदगी उस सड़क पे दिखती नहीं तो क्या हुआ .

 

हौसला पुरजोर था और कोशिशें भरपूर थी.

अब कि किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ .

 

हाथ में चूड़ी अगर खनकी नहीं तो क्या हुआ .

माथे कि बिंदिया अगर चमकी नहीं तो क्या हुआ .

 

सान दी तलवार को झाँसी कि रानी ने सदा.

जिन्दगी उसकी नहीं बाकी बची तो क्या हुआ .

 

है अमीरी इस तरफ और है गरीबी उस तरफ.

दूरियां दोनों कि जो मिटती नहीं तो क्या हुआ .

वंदापर्वर सामने है वंदा भी  और है  वन्दगी .

है अगर बाकी नहीं जो जिन्दगी तो क्या हुआ .

खून से रंग दी हथेली जो हिना कम पड़ गयी .

उनके चेहरे पे ख़ुशी आती नहीं तो क्या हुआ .

हम भी शामिल है तुम्हारी गोष्ठी में दोस्तों.

है हमारी कुछ यहाँ हस्ती नहीं तो क्या हुआ.

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SURINDER RATTI

 

सुब्ह भी खुल के कभी हसती नहीं तो क्या हुआ I

रूठ जाये शाम ये बोलती नहीं तो क्या हुआ II १ II

 

गाहे-गाहे वो मेरी दहलीज़ पर आने लगे I

शोख नज़रें इस तरफ तकती नहीं तो क्या हुआ II २ II

 

क़ुर्ब है अहसास है इस दिल में बसते आप हैं  I

काकुलों में उंगली फेरी नहीं तो क्या हुआ II ३ II

 

जोश में तो होश भी जाता रहा सरकार का I

इश्क़ में मन की कभी चलती नहीं तो क्या हुआ  II ४ II

 

रोज़ ही हमने मनाई ईद खायी दावतें  I

अब के किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ  II ५ II

 

बिखरे हैं अल्फाज़ शायर यूं ही हम तो बन गये  I

सीख "रत्ती" शायरी आती नहीं तो क्या हुआ  II ६ II

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Dr. Abdul Azeez "Archan"

 

यादे माजी की हवा सनकी नहीं तो क्या हुआ

फ़स्ल अश्कों की अगर लहकी नहीं तो क्या हुआ

 

जिसके दम से गर्म थी शेरो-सुखन की अंजुमन

फिक्र की वह आग जब दहकी नहीं तो क्या हुआ

 

बेकली क्यों शोर कैसा साहिले-जाँ पर बता

मौजे-तूफां जब कोई लपकी नहीं तो क्या हुआ

 

ढूँढिये आईनए मंजिल में गुम कैसे हुई

वह नज़र जो राह में भटकी नहीं तो क्या हुआ

 

गुलशने-हस्ती पे जब दौरे-खिजां ही आ गया

फिर कोई दिल की कली महकी नहीं तो क्या हुआ

 

तेज आँधी कर गयी हर पेंड़ से चुभता सवाल

शाख जो अपनी जगह लचकी नहीं तो क्या हुआ

 

शेख साहब चौंककर फिर क्यों उठे हैं रात में

दर पे कुंडी भी जरा खटकी नहीं तो क्या हुआ

 

किस लिए घबरा के वह चीखा हुजूमे-शह्र में

तेग भी कोई कहीं चमकी नहीं तो क्या हुआ

 

मश्अले फिक्रो-अमल को ले के बढिए फिर अज़ीज़

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ

डॉ०  अज़ीज़ अर्चन

 

माजी : पिछली स्मृति , सुखन : काव्य कथन, साहिले-जाँ: जीवन का तट, मौजे-तूफां: तूफ़ान की लहर,  गुलशने-हस्ती: व्यक्तित्व की वाटिका,  दौरे-खिजां: पतझड़ का समय, हुजूमे-शह्र: नगर की भीड़, तेग: तलवार, फिक्रो-अमल : कर्म एवं चिंतन की मशाल

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N .B. Nazeel

 

चाल सितारों की अभी सीधी नहीं तो क्या हुआ ||
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ ||

फसल उगा दी उल्फतों की इस सीने के खेत में ,
गर हमारे पास ये धरती नहीं तो क्या हुआ ||

जो  हुआ  दीदार  उनका  दूर  से  तो खुश  हुए ,
पास से नज़रें कभी मिलती नहीं तो क्या हुआ |

.
चाहते  हैं  जान  से  बढ़कर  हमें माँ -बाप भी ,
ये अलग है ,जो चली मरजी नहीं तो क्या हुआ ||

ओट कर देंगे किताबों की ,सनम बरसात में ,
आज अपने पास गर छतरी नहीं तो क्या हुआ ||

खाब  में  है वो ,ख्यालों  में  वही  है  सांवली ,
आसमां से वो परी उतरी नहीं तो क्या  हुआ ||

दिल डरा था दोस्तों के साथ महफ़िल में बड़ा ,
वालिदा अगर हमसे झगड़ी नहीं तो क्या हुआ ||

भीगतें तो हैं "नज़ील"हम बारिशों की रुत में ,
बूँद उल्फत की कभी गिरती नहीं तो क्या हुआ ||

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AVINASH S BAGDE

 

झूम के सावन  घटा बरसी नहीं तो क्या हुआ!

बाग में कोई कली खिलती नहीं तो क्या हुआ!!

 

और  किसी  की  वो  माशूका  है  मेरे   यार,

इस जनम में हो सकी तेरी नहीं तो क्या हुआ!!!

 

डर से  हुये हैं  दोहरे वो  तेवर  ही  देख  कर!

गोलियां बन्दूक  से चली नहीं तो क्या हुआ!!

 

इस बार  नहीं!  ना  सही,  फिर से  करें   प्रयास ,

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ!

 

दुआ तो  की  थी हमने  भी रब से  हजारों बार,

उसने सुनी उसकी, कभी अपनी नहीं तो क्या हुआ...१

 

हम ही कल के "लाट" होंगे देखना अविनाशजी,

''लाटरी'' अपनी अभी निकली नहीं तो क्या हुआ !...२ ....(अशार  १ व्  २ सौजन्य.... मेरे मार्गदर्शक  डॉ. सागर खादीवाला जी .)

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sanjiv verma 'salil'

 

 होली भाँग ही गटकी नहीं तो क्या हुआ?

छान कर ठंडा जी भर पी नहीं तो क्या हुआ??

 

हो चुकी होगी हमेशा, सियासी होली नहीं.

हर किसी से मिल गले, टोली नहीं तो क्या हुआ??

 

माँगकर गुझिया गटक, घर दोस्त के जा मत हिचक.

चौंक मत चौके में मेवा, घी नहीं तो क्या हुआ??

 

जो समाई आँख में उससे गले मिल खिलखिला.

दिल हुआ बागी मुनादी की नहीं तो क्या हुआ??

 

छूरियाँ भी हैं बगल में, राम भी मुँह में 'सलिल'

दूर रह नेता लिये गोली नहीं तो क्या हुआ??

बाग़ है दिल दाद सुनकर, हो रहा दिल बाग यूँ.

फूल-कलियाँ झूमतीं तितली नहीं तो क्या हुआ??

 

सौरभी मस्ती नशीली, ले प्रभाकर पहनता

केसरी बाना, हवा बागी नहीं तो क्या हुआ??

 

खूबसूरत कह रहे सीरत मगर परखी नहीं.

ब्याज प्यारा मूल गर बाकी नहीं तो क्या हुआ..

 

सँग हबीबों का मिले तो कौन चाहेगा नहीं

ख़ास खाते आम गो फसली नहीं तो क्या हुआ??

 

धूप-छाँवी ज़िंदगी में, शोक को सुख मान ले.

हो चुकी जो आज वह होली नहीं तो क्या हुआ??

 

केसरी बालम कहाँ है? खोजतीं पिचकारियाँ.

आँख में सपना धनी धानी नहीं तो क्या हुआ??

 

दुश्मनों से दोस्ती कर, दोस्त को दुश्मन न कर.

यार से की यार ने यारी नहीं तो क्या हुआ??

 

नाज़नीनें चेहरे पर प्यार से मलतीं गुलाल

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?

श्री लुटाये वास्तव में, जब बरसता अम्बरीश.

'सलिल' पाता बूँद भर पानी नहीं तो क्या हुआ??

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AVINASH S BAGDE

 

शर्मो-हया का आँख में पानी नहीं तो क्या हुआ.

दिल   किसी जज्बात का आदी नहीं तो क्या हुआ!

 

तार भी है , पोल भी, सब  कुछ हमारे पास है,

गाँव है ये,गाँव में बिजली नही तो क्या हुआ!!

 

कोख में ही ख़त्म कर दी,'जान' इज्जत क़े लिए!

शर्म उनके पास में, गर  थी नही तो क्या हुआ!!

फेस-बुक  पे आपसे  मिलता हूँ  मै  तो बारहा,

सूरत फेसटू फेस की आती नही तो क्या हुआ!!

 

भक्ति-रस में डूब कर यूँ खंज़री बजती रहे......

लौ किसी भगवान से जुड़ती नही तो क्या हुआ!!

 

वक़्त अच्छा कट रहा ' झख ' मारने क़े नाम पे,

मछलियाँ यूँ जाल में फंसती नही तो क्या हुआ!! ......( ' झख '=मछली)

 

कल  का   सूरज आप के ही  पास  है अविनाश जी.

अबके किस्मत आपकी चमकी नही तो क्या हुआ!.

*********************************************************************************

Sanjay Mishra 'Habib'

 

हैं यहाँ वादे बहुत रोटी नहीं तो क्या हुआ?

भुन रहा गम में जहां सिगड़ी नहीं तो क्या हुआ?

 

उनकी महलें देख कर दिल को ज़रा आराम दे

भूल बच्चो के लिए खोली नहीं तो क्या हुआ?

 

गंग की धारा वहीं गोदावरी उनको फली

तेरे खेतों को नहर नाली नहीं तो क्या हुआ?

 

वोटों का बदला चुकाते बोतलों की खेप से

नीट पी दो पैग जो पानी नहीं तो क्या हुआ?

 

गर बदल जाये सियासत फर्क क्या पड़ना तुझे?

गोया सरकारें अगर बदली नहीं तो क्या हुआ?

 

फिर सजायें ख्वाब, हिम्मत को जगायें फिर अभी,

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?

 

मत हिकारत से किसी इंसान को देखो ‘हबीब’

आप सी दौलत अगर पाई नहीं तो क्या हुआ?

********************************************************************************************

Dr.Brijesh Kumar Tripathi

 

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ...

बंद कमरे में किरण दमकी नहीं तो क्या हुआ...

 

सोचना हरगिज़ नहीं किस्मत दगा फिर दे गई

कोशिशे फिर भी यहाँ  अटकी नहीं तो क्या हुआ

 

अब सिरे से आओ फिर कोशिश करे एक बार हम

कामयाबी पर नज़र टिकती नहीं तो क्या हुआ

 

जो करेगा कोशिशे वो  पार जायेगा ज़रूर

मुश्किलें गर राह  से भटकी नहीं तो क्या हुआ

 

खोल दो खिडकी खयालों की....उजाला आए तो

बंद कमरे में फिजा तम की रही तो क्या हुआ

 

कुछ तो गलती काम करने में हुई होगी हूजूर

पर्वतों सी सफलता मिलती नहीं तो क्या हुआ

 

हाथ में जो है, वही तो कर रहे  होगे हूजूर

रब की मर्ज़ी अबके कुछ दिखती नहीं तो क्या हुआ

 

जोश तो अपने दिलों का कम न होने दीजिए

धूप में गर्मी अगर टिकती नहीं तो क्या हुआ

 

आइने सा साफ़ दिल को आज तो कर लीजिए

अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ..

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Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर !! श्री राणा जी , इंतज़ार था !! सभी ग़ज़लें एक जगह पढना एक अलग अनुभूति है | विशेष कर यह आयोजन समकालीन ग़ज़ल लेखन और उसके आयामों का प्रतिबिम्ब बनता जा रहा है | सभी रचनाकारों विशेष कर आपको और ओ बी ओ परिवार को हार्दिक बधाई !!

बहुत खूब राणा भाई
शुक्रिया

मैं बहुत जल्दी एहतराम साहब को ये पोस्ट पढ़वाता हूँ

और मुशायरा भी (कमेन्ट सहित)

राणा जी बहुत बहुत बधाई, ...फ़िर से पढने में... बस मजा आ गया.....ओबीओ का एक एक आयोजन साहित्य का एक पुलिन्दा रहता है......भविष्य में ये सारी रचनायें किसी विषय विशेष पर एक उदाहरण की तरह ली जा सकती हैं. ... हिन्दी साहित्य की विधाओं पर एक साथ इतनी रचनाएँ एक साथ...बस इतना ही कहना है.......चले चलो, जमे रहो........

भाई राणाजी,  इस संकलन का जाने-अनजाने ही सही लेकिन एक विशिष्ट उद्येश्य निर्धारित हुआ था,  जोकि ओबीओ के उद्यश्य ’सीखने-सिखाने’ को ही संपुष्ट करता है. पिछली बार की तरह इस बार भी सम्मिलित ग़ज़लों के बेबह्र मिसरों को इंगित नहीं किया गया है.  आप कृपया उक्त परंपरा को भरसक बनाये रखें. इससे सीखने-जानने के क्रम में नये शायरों और ग़ज़लकारों को बहुत ही सहुलियत मिलती है. 

यदि किसी ग़ज़ल का कोई मिसरा बह्र से बाहर है या वहाँ कोई मानक दोष है तो उसे इंगित किया जाय. यह अवश्य है कि ग़ज़लों के सभी नियम सदा साधे या बताये नहीं जा सकते, न कोई यहाँ उस्ताद है. लेकिन आपस में हम समवेत सीख-जान कर प्रारंभिक दोषों को तो सुधार ले जायेंगे. 

सधन्यवाद

यदि किसी ग़ज़ल का कोई मिसरा बह्र से बाहर है या वहाँ कोई मानक दोष है तो उसे इंगित किया जाय

आदरणीय सौरभ जी

यथासंभव बे बह्र मिसरों को लाल रंग से कर दिया है| फिर भी यदि कोई त्रुटि रह गई हो तो सूचित करें| मुझे लगता है अभी हम बह्र तक ही सीमित रहे तो ठीक रहेगा....एक बार जब बह्र सध जायेगी तो अन्य मानक दोषों पर भी चर्चा का मार्ग सुगम हो जाएगा|

केवल ३६ मिसरे बेबहर, वाह क्या बात है,

इसे प्रगति कहते हैं.. !!  :-))))))

साधु साधु ...

जय हो ऽऽऽऽऽ 

भाई राणाजी, आपने मेरे कहे को मान दिया इस हेतु आपका हार्दिक रूप से आभारी हूँ.

राणाजी, अपना आशय बेबह्र मिसरों को इंगित कर उसके शायर/ ग़ज़लकार को कमतर आँकना कतई नहीं होना चाहिये, बल्कि, भाव बया करने और उसे अंकित करने के क्रम में कहाँ चूक हुई है उसकी ओर इशारा होना चाहिये. ताकि नये शायर/ग़ज़लकार अभ्यासरत हो सकें.  उन्हें आवश्यक दिशा मिल सके.

आपकी बातों से मैं पूरी तरह से इत्तफ़ाक़ रखता हूँ कि फिलहाल हम स्वयं को बह्र तक ही रखें.  मुशायरे के दौरान विद्वद्जनों द्वारा कई-कई सलाह और सुझाव आते हैं और एक-एकग़ज़ल और प्रस्तुति पर खुल कर चर्चा तो होती है.

इस क्रम में शुभ्रांशजी का कहा उदधृत करूँ तो उचित होगा.. भविष्य में ये सारी रचनायें किसी विषय विशेष पर एक उदाहरण की तरह ली जा सकती हैं.  यानि हर एक मुशायरा एक पाठ की तरह थाती होगा. 

सधन्यवाद.

पुलिस चौकी दारू के ठेके खुले  हर गाँव में ,

सड़क पानी खाद और बिजली नहीं तो क्या हुआ |

सड़क से सरकार तक इनकी सियासत है मिया ,

पत्थरों की मूर्तियाँ सुनती नहीं तो क्या हुआ |

आदरणीय श्री सौरभ जी / श्री राणा जी / श्री वीनस जी इन लाल रंगी पंक्तियों को कृपया बहरदार बना अनुगृहित करें ताकि ब्लॉग और डायरी में सुधार कर सकूँ !! अग्रिम साधुवाद और इस पुनीत कार्य में होने वाले कष्ट के लिए खेद के साथ आप सबका अनुजवत !! khud ko hi apni kami dikhti nahin to kya hua ?? :-))

-अभिनव अरुण

अभिनवजी, वातावरण में फागुन का मतायापन संयत हुआ दीख रहा है.

सही के लिये ’हाँ’ और गलत के लिये ’ना’ मात्र सैद्धांतिक बयानबाजी न होकर इससे ऊपर एकबार फिर से दैनिक कार्मिक-प्रक्रिया का हिस्सा हुआ दीखेगा. किसी ’सकारात्मक इंगित’ पर स्वयं ही काम करना होता है. अपनी कमियों को एक ओर या तो हम स्वयं स्वीकार कर आगे बढ़ते जाते हैं, तो दूसरी ओर उसे स्वीकार करने के क्रम में तमाम आयाम प्रभावी होते दीखते हैं. मंच की वाहवाही सुदृढ़ मन के प्रस्तर तक पर नोनी लगा देती है.

कहना न होगा, भाईजी,  आप जैसों को ही पढ़-पढ़ कर हम ग़ज़ल के प्रति उत्साहित व आकर्षित हुए हैं.  आप स्वप्रयास करें देखिये कितना क्या कैसे सधता जाता है.  आप तक्तीह करना बखूबी जानते हैं.

सादर

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