For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44 (विषय: परिणाम)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44
"विषय: "परिणाम" 
अवधि : 29-11-2018  से 30-11-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 7711

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

ऐक बहुत अच्छे विषय पर लिखा आपने कर्जबन्द होकर रीतिरिवाजो पर खर्च करना सिर्फ समाज को दिखाने के लिए न्यायोचित नहीं है 

बहुत बहुत बधाई इस लघु कथा के लिए .उस्मानी जी की बातें भी संज्ञान में लें 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।

सुंदर कथ्य आदरणीय...रचना से प्रेषित संदेश सहज ही प्रदत्त विषय को सार्थक कर रहा है...... रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई जी 

आटा

---

जाँता( चक्की) चल रहा था।आटा नहीं निकल रहा था।या निकलता भी तो बहुत कम।बहू परेशान थी।चक्की चलाते-चलाते दम निकला जा रहा था।चँगेली का गेहूँ खत्म होने वाला था।सास बीच-बीच में आकर हुलक जाती।एक तिरछी-सी मुस्कान फेंक चली भी जाती,बिना कुछ कहे।बहू पहले सोचती थी कि उसे चक्की चलाते देख सासू माँ ठिठोली वाली हँसी हँस रही थीं।पर जब से बाकी बचे गेंहूँ पर उसका ध्यान गया था,वह खासा परेशान थी,उद्विग्नता की सीमा तक;कि गेंहूँ के दाने क्या हुए का,वह क्या जबाब देगी।आटा तो बस थोड़ा-सा ही हुआ है।और गेंहूँ के दाने जैसे हवा में फू हो गए हों।गिने-चुने बचे थे,जिन्हें चुन-चुन कर वह जाँता के हवाले कर रही थी।
-हो गया क्या बहूरानी?' सास की मीठी-चुपड़ी आवाज ने उसका ध्यान भंग किया।
-जी माँजी, बस होने ही वाला है।
-जल्दी कर।रोटियाँ भी तो बनेंगी।
-जी।' बहू इतना ही कह पायी।गेहूँ के एक-एक दाना चुनकर बहू ने अंतिम झींक(मुठ्ठी भर गेहूँ) जाँता में डाला।कुछ देर पाट को घुमाती रही।अब चँगेली(डलिया)खाली थी,और आटा नदारद।यानी डेढ़ किलो गेहूँ से महज पाव किलो के आसपास आटा हुआ था।वह भयातुर थी कि शायद पिसाई में कोई खोट आ गई जिसके चलते ऐसा हुआ है।
-क्या हुआ री?आटा लेकर आ ना।रोटी कब बनेगी?जब जेवने आने लगेंगे,मर्द लोग?'सास की झन्नाटेदार आवाज से वह सहम गई।सोच ही रही थी कि क्या करे,कि सासू माँ हाजिर हो गईं।
-ला दे आटा।मैं गूँथ लूँ।बहू मौन थी।वह कभी जाँता के आसपास पसरे आटे की रेखा को देखती,ओ कभी रिक्त हो चुकी चँगेली को।
-क्या हुआ?',सास ने टटोला।
-प्प्प प्प पता नहीं माँ ...जी',वह इतना ही कह पाई।
-आटा क्या हुआ?'
-नहीं पता।'बहू बोली।सास ने आँखें तरेड़ी।बहू ने जाँता का ऊपरवाला पाट उठाया।
-अरे यह क्या!सारे गेहूँ तो पाटों के मध्य ठुकी कील के इर्द-गिर्द के गड्ढे से अंदर जमीन में समाहित हो चुके थे।वही कुछ बचे-खुचे पिसकर आटा हुए थे।वह बोली-
-सारा कमाल इस गड्ढे का है।मुझे तो इसका पता ही न था।'
-पता करना था न तुम्हे।'सास ने चुटकी ली।
बेटा गई-आई सरकारों के वार्त्तालाप सुन रहा था,झेंपा हुआ।बहू ठगी-सी थी।सास चढ़ी जा रही थी।और वह(बेटा) बेचारी जनता की माफिक लुटे हुए खजाने पर गौर कर रहा था।उसके मुँह से स्वतः ही निकल गया---
-जय हो सरकार!'
"मौलिक व अप्र का शित"

अंतिम महत्वपूर्ण भाग के साथ शेष रचना का बढ़िया ताना-बाना। बढ़िया कटाक्ष/व्यंग्य/ विचारोत्तेजक तुलनात्मक सम्प्रेषण। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। दूसरे ड्राफ्ट में आप इसे बेहतर रूप दे ही देंगे।

बहुत बहुत आभार आदरणीय उस्मानी जी।

करारा वार किया हैं आपने अपनी कथा के माध्यम से ,लंबे समय से चले आ रहे चूहा बिल्ली के खेल को। हार्दिक बधाई आ. मनन कुमार जी 

आदरणीया अर्चना जी,आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

सास-बहु के संवाद के माध्यम से अच्छा सन्देश देती बढ़िया लघुकथा की रचना। प्रस्तुति के लिए बधाई। 

आदरणीया नीलमजी,आभार आपका।

विषयानुकूल सशक्त , कटाक्षपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी ।

बहुत बहुत आभार आदरणीय।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"किसको लगता है भला, कुदरत का यह रूप। मगर छाँव का मोल क्या, जब ना होगी धूप।। ऊपर तपता सूर्य है, नीचे…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service