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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 41 (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 41वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा इस दौर के अजीमतरीन शायर जनाब बशीर बद्र साहब की एक ग़ज़ल से लिया गया है, पेश है मिसरा-ए-तरह...

 "इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो"

इ/1/सी/1/मो/2/ड/1/पर/2      मे/1/रे/1/वा/2/स/1/ते/2      वो/1/च/1/रा/2/ग/1/ले/2     के/1/ख/1/ड़ा/2/न/1/हो

11212                      11212                  11212                    11212  

मुतफाइलुन                    मुतफाइलुन               मुतफाइलुन                    मुतफाइलुन

(बह्र: कामिल मुसम्मन सालिम  )

रदीफ़     :- न हो
काफिया :- आ (खड़ा, गया, उठा, हंसा आदि)
अब थोड़ी सी बात इस बह्र की कर लेते हैं | ओ बी ओ तरही मुशायरे के इतिहास में यह पहला मौक़ा होगा जब इस बह्र पर हम कोई तरही आयोजित कर रहे हैं | अभी तक इस बह्र को न चुनने के पीछे एक कारण यह भी था कि यह मंच अभी इतना परिपक्व नहीं था कि इस बह्र पर कलम आजमाइश हो सके | यह बह्र देखने में बहुत ही आसान दिखाई देती है पर निभाने में थोड़ी मुश्किल हो सकती है | उच्चारण का एक बड़ा ऐब इस बह्र पर शेर कहने में दृष्टिगोचर हो सकता है जिसे ऐब-ए-शिकस्ते नारवा कहते हैं | आप ध्यान से देखिये कि तरही मिसरे की तकतीई करते समय मैंने इस बार हर रुक्न के बाद थोड़ा स्पेस दिया है | हर रुक्न एक नए लफ्ज़ से शुरू हो रहा है और किसी लफ्ज़ के मुकम्मल होने पर ख़त्म हो रहा है, ऐसा नहीं कि एक लफ्ज़ एक साथ दो दो अरकान में मौजूद हो | इससे शेर बेबह्र तो नहीं होता है पर मिसरों की गेयता में, लय में रुकावट आती है और इस बह्र में यह ऐब आसानी से घुसपैठ कर सकता है | 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 29 नवम्बर  दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक  अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल  आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी । 

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  29 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

दे हयात तो दे फ़कीर सी दे मिज़ाज तो दे मलंग सा ,

मुझे मंज़िलें न दिखा करें मुझे रास्तों का पता न हो |////वाह वाह 

 

मेरी हर ग़ज़ल रहे खूं से तर मेरे हक़ में दर्दे जहान कर ,

मुझे ज़ख्म दे तो मेरे ख़ुदा दे वो ज़ख्म जिसकी दवा न हो |वाह वाह क्या कह गए आदरणीय

 

ये सियाहियाँ भले ही मुझे मेरे हर क़दम पे मिलें मगर ,

वो चराग़ दे मेरे हाथ में जो कि आँधियों से डरा न हो |ज़ोरदार कहन 

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय अरुण  जी  .. हार्दिक बधाई आपको ।।।।  सादर 

जो पसंद हो सभी लोगों को किसी के लिए भी बुरा न हो

मुझे आदमी वो बता ज़रा कभी जिससे कोई खता न हो

 

जो करे मदद तेरी स्वार्थ बिन जिसे फिक्र तेरी सदा रहे

न बिसार देना उसे भी तू के कहीं वो तेरा खुदा न हो

 

वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ

उसे क्या पता है सँभलना क्या जो के लडखडा के गिरा न हो

 

मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए

उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो

 

कभी जीतना कभी हारना कभी रूठना कभी मानना

है कहो न इश्क में क्या मजा किसी बात से जो गिला न हो

 

हो गुरुर में जो तना खडा औ हवा को समझे है बस हवा

उसे है उखड़ना ही एक दिन जो किसी के आगे झुका न हो

 

करे फिक्र यूँ ही वो रात दिन मेरी जान तू रहे खुश सदा  

न पिता रहे कोई चैन से कभी लाडली जो विदा न हो

 

किसी के निशाँ तो यहाँ पे हैं कहीं दूर उठता धुआँ भी है  

इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो

 

रहे “दीप” वो भी तो गमजदा जले उम्र भर चाहे दैर में

किसी भी गरीब का घर अगर कभी रौशनी से भरा न हो

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए

उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो

रहे “दीप” वो भी तो गमजदा जले उम्र भर चाहे दैर में

किसी भी गरीब का घर अगर कभी रौशनी से भरा न हो

........... अच्छी ग़ज़ल कही है और इन दो शेरों के भाव बहुत पसन्द आये आ. संदीप जी , मुबारकबाद !!

आदरणीय अभिनव सर जी सादर

इस हौसलाफजाई के लिए सादर आभार

स्नेह बनाये रखिये

पटेल साहब वाह वाह क्या बात है  बधाी है आपको.

जो पसंद हो सभी लोगों को किसी के लिए भी बुरा न हो

मुझे आदमी वो बता ज़रा कभी जिससे कोई खता न हो

 

जो करे मदद तेरी स्वार्थ बिन जिसे फिक्र तेरी सदा रहे

न बिसार देना उसे भी तू के कहीं वो तेरा खुदा न हो

 

वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ

उसे क्या पता है सँभलना क्या जो के लडखडा के गिरा न हो..

अच्छे भाव हैं.....बधाई

आदरणीय सुजान जी सादर

आपका बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

आदरणीय सन्दीप भाई , लाजवाब गज़ल कही है भाई , बहुत खूब , कोटिशः हार्दिक बधाई स्वीकारें !!!!

वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ

उसे क्या पता है सँभलना क्या जो के लडखडा के गिरा न हो

हो गुरुर में जो तना खडा औ हवा को समझे है बस हवा

उसे है उखड़ना ही एक दिन जो किसी के आगे झुका न हो

रहे “दीप” वो भी तो गमजदा जले उम्र भर चाहे दैर में

किसी भी गरीब का घर अगर कभी रौशनी से भरा न हो -------- आदरणीय ये शे र मुझे मेरे दिल के करीब लगे !!! ढेरों दाद !!!!

 

 

आदरणीय गिरिराज सर जी सादर प्रणाम

हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया स्नेह बनाये रखिये

सादर

मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए

उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो---वाह्ह्ह्ह बहुत शानदार 

 

करे फिक्र यूँ ही वो रात दिन मेरी जान तू रहे खुश सदा  

न पिता रहे कोई चैन से कभी लाडली जो विदा न हो----वाह 

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दाद कबूलें 

 

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

उत्साहवर्धन और सराहना के लिए सादर आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर

कमाल के भाव आदरणीय संदीप जी बहुत 2 बधाई 

वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ

उसे क्या पता है सँभलना क्या जो के लडखडा के गिरा न हो

 

मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए

उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो

आदरणीया वंदना जी सादर

इस उत्साहवर्धन और सराहना हेतु सादर धन्यवाद

स्नेह बनाये रखिये

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