आदरणीय सुधीजनो,
 दिनांक -9 मार्च'14 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-41 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “दोरंगी तस्वीर" था.
महोत्सव में 21 रचनाकारों नें दोहा, कुंडलिया, सार छन्द, आल्हा छंद, कज्जल छंद, ग़ज़ल, व क्षणिका, अतुकान्त कविता, तुकांत कविता आदि विधाओं में अपनी 26 उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.
यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.
 
 सादर
 डॉ. प्राची सिंह
 संचालिका 
 ओबीओ लाइव महा-उत्सव
********************************************************************
1. आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
दोरंगी तस्वीर ( मुक्त छंद )
दोरंगी इस देश की, बड़ी अज़ब तस्वीर।
लाखों धनपति और यहाँ, भूखे, नग्न, फकीर॥
कहीं भ्रूण हत्या, कहीं, बेटी घर की आन।
एक ओर इंसान है, एक ओर शैतान॥
वह गरीब मज़बूर है, नग्न और बदहाल।
पर फैशन में नग्नता, अमीरों का है कमाल॥
शौक ने किया नग्न इसे, लेकिन वो लाचार।
इसे जरूरत शर्म की, उसे कपड़े की दरकार॥
सत्य बात कड़वी लगे, झूठ कहो मुस्काय।
बात बहुत मीठी करे, छुरी बगल में दबाय॥
सज्जन है, पर है गरीब, मान करै नहिं कोय।
धन चाहे काला रखो, देश में इज्ज़त होय॥
आज़ादी के बाद के, ग़ुलामों को पहचान।
इन काले अंग्रेजों से, भारत देश महान॥
*****************************************************
2. आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
दो रंगी तस्वीर : क्षणिकाएँ
१)
 तू जग
 तू उठ
 तू कर.. तू भर ! 
 मग़र, निर्णय मैं करूँगा.. 
 तू कितनी आवश्यक, कितनी प्रखर ! 
 
 २)
 आँखें बन्धन साध देती हैं
 आँखें बन्धन तोड़ देती हैं
 इस साधने और तोड़ने के बीच 
 उसकी संज्ञा झूलती रही है 
 सदा से. 
 
 ३)
 संवेदना का मानवीकरण मानी जाती है वो
 जब घोर कष्ट सुनती है 
 मुँह से तालव्य शब्द च्-च् उच्चारती है 
 किन्तु अगले ही क्षण 
 हल्दी-चंदन के उबटन की विधियाँ साझा करने लगती है.
**********************************************************
3. आ० गिरिराज भंडारी जी
(1)      पाँच दोहे
 
 दिल में रखते और कुछ , मुँह में है कुछ और
 दिवस  मनाना  इस तरह, पहुँचेगा किस ठौर  
 
 हक़ अपना  गर मांगते , देने  में  क्या हर्ज
 अगर  लिया, लौटाइये , कब्जा  हो या कर्ज
 
 दिवस मना के एक दिन , साल भरे की छूट
 जैसे  जितना दिल  करे, उनकी इज्जत लूट
 
 मर्ज़  जहाँ  है क्या वहीं , होता  रहा इलाज
 गर ऐसा  है, क्यों भला ,बदला  नहीं समाज ? 
 
 आज़ादी  वो  चीज़  है , जो  लेती  है दाम
 मांगो  जितनी  शक्ति  है , तो आयेगी काम
(2) अतुकांत – आज़ादी के दो रंग
आप शायद जानते नहीं
शायद जानते भी हों , तो
मानते न हों
पर ये सच है
आप चाहे खूँटे बने ,
या जंजीर रहें
किसी को बांधने की कोशिश में
बंध जाते हैं आप भी
स्वतंत्र तो आप भी नहीं रह पाते
क्या ये सच नहीं है ,कि
खूँटे और जंजीर वहीं के वहीं रह जाते हैं
बंधे हुए को रोके रखने के प्रयास में
आभासी स्वतंत्रता से खुश न होइये
सही आज़ादी चाहते हैं
तो , आज़ादी देनी ही होगी ॥
***************************************************
4. आ० चौथमल जैन जी
" दो रंगी तस्वीर "
दुनियां दो रंगी तस्वीर , हाँ ये दो रंगी तस्वीर।
 ऊपर से कुछ ओर दिखे है ,अंदर से कुछ ओर। ।
 दिखते है जो रंग -बिरंगे ,भीतर से बदरंग।
 अगर चाहते इसे देखना ,चलो हमारे संग। । दुनियां दो......
 साधू का आश्रम ये देखो , करते है सत्संग।
 भीतर जो ये करते उससे ,हो गई दुनियां दंग। ।
 नारी को कमजोर समझ ,करते है ये तंग।
 करतूतों का भांडा फूटा , जैसे कटी पतंग। । दुनियां दो......
 सफेदपोश ये नेता देखो ,भीतर से रंगीन।
 हाथ जोड़कर वोट मांगते ,हो कुर्सी आसीन। ।
 गुण्डों को ये सदा पालते ,काम करे संगीन।
 देश को ये बेच -बाच दे , और बजाते बीन। । दुनियां दो......
 दफ्तर में भी आओ देखें ,अफसर बाबू तमाम।
 भृष्टाचार का बोल है बाला ,यहाँ नहीं है काम। ।
 काम कराना हो गर भाई , देने होंगे दाम।
 दाम मिले तो काम करेंगे , सुबह हो या शाम। । दुनियां दो......
************************************************************
5. आ० अविनाश बागडे जी
(1)
छन्न पकैया ,छन्न पकैया , दो-रंगी तस्वीर !
 कहीं बिछी फूलों की चादर ,कहीं चले शमशीर !
 ---
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया ,बोले संत कबीर !
 दुनियादारी का मतलब है , दो-रंगी तस्वीर !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , सुन लो मेरी बात !
 दो-रंगी तस्वीर ! बने हैं , जीवन  के  हालात !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया ,दो-रंगी तस्वीर !
 कहीं चले अन्ना की बातें ,कहीं "नमो " के तीर।।
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , जकड़ी है जंजीर।
 नारी के जीवन का मतलब , दो-रंगी तस्वीर !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , पौरुष या पुरुषार्थ।
 दो - रंगी तस्वीर के चलते , सिर्फ बचा है स्वार्थ।।
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , आँखों में है नीर।
 मन के अंदर फूटे लड्डू , दो - रंगी तस्वीर।।
(2)
सार छंद(इस छंद में 16-12 पर यति होती है और अंत २२, २११, ११२ या ११११ से होता है)
 छन्न पकैया - छन्न पकैया , ये कैसी लाचारी ?
 कहीं देवदासी का लांछन , कहीं  देविका  नारी।
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया ,खेती और किसानी।
 कृषि-प्रधानता के रुतबे पे , बे-मौसम का  पानी !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , बड़ी लाडली बेटी।
 जाते ही ससुराल-द्वार पे , है बहुओं  की  हेटी।।
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया ,नेता सब बड़बोले।
 आम आदमी के सवाल पे , अपना मुख ना खोले !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , लगे चुनावी नारे।
 पांच साल तक रहती चुप्पी ,मतदाता के द्वारे !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , हटती नहीं गरीबी।
 गहनों से बस लदी-फदी है , सेठ-साब की बीबी !.
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , कहते लोग शराबी ?
 देसी-दारु की दुकान हर ,है राजस्व की चाबी !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , घरवाली से अन-बन !
 बाहरवाली के दरवाजे , साहब जाते  बन-ठन !
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , लोकतंत्र का रोना !
 व्यक्तिवाद से भरा पड़ा है ,संसद का हर कोना ?
 --
 छन्न पकैया ,छन्न पकैया , विषय बड़ा है आला।
 दो  रंगी  तस्वीर  का  देखा , पूरा पन्ना काला !!!!!
*******************************************************
6. आ० अखंड गहमरी जी
मैं शराबी नहीं मगर अब गम में पीता हूँ
नहीं है जिन्दगी से प्यार फिर भी जीता हूँ
 
 करती थी हमे वो प्यार मै बताऊ कैसे
 आँखो से सूरत उसकी अब मिटाऊ कैसे 
 बन गया लाश मैं खुद अपना कफन सीता हूँ
 नहीं है जिन्दगी से प्यार फिर भी जीता हूँ
 मैं शराबी नहीं मगर अब गम में पीता हूँ
 
 नहीं है रंग जीवन में मेरे खुशी के अब
 आयेगे चाहतो औ खुशी के दो रंग कब*
 उसी की तस्वीर सीने से लगा  पीता हूँ
 नहीं है जिन्दगी से प्यार फिर भी जीता हूँ
 मैं शराबी नहीं मगर अब गम में पीता हूँ
 
 दो रंगी तस्वीर की तरह ये जमाना है 
 है वो दरिन्दे पर खुद को देव दिखाना है
 इस दर्द को दिल में  छुपाये चला जाता हॅू
 नहीं है जिन्दगी से प्यार फिर भी जीता हूँ 
 मैं शराबी नहीं मगर अब गम में पीता हूँ 
 
 अखंड करे जमाने में अब शिकायत किससे
 मेरी नजरे को बुरा कहे कुछ कहूँ जिससे 
 गम जमाने के अश्क में मिला पी जाता हॅू
 नहीं है जिन्दगी से प्यार फिर भी जीता हूँ 
 मैं शराबी नहीं मगर अब गम में पीता हूँ
*******************************************************
7. आ० मनोज कुमार सिंह ‘मयंक’
(1) अतुकांत -
क्या लिखूं ?
दो रंग के तसवीर पर,
आदित्य निकला है -
अदिति को चीर नभ में|
सप्तवर्णी रथ सजा था,
पांच घोड़े मर चुके हैं|
कालिमा है नील वर्णी,
श्वेत वर्णी शुभ्रता -
अनुगमन करती|
हंस रहा -
खुल कर जयद्रथ|
कृष्ण का इंगित -
गगन को ग्रस चुके हैं-
मेघ काले||
(2) पांच दोहे – महिला दिवस पर (दोरंगी तसवीर)
लिये हांथ में फिर रहे, दोरंगी तसवीर |
 बातें मिथ्याचार की, करन लगें रणधीर ||१||
 नौ दिन जिसको पूजते, दसवें दिन विपरीत |
 शक्ति साधना की नहीं, यह तो कोई रीत ||२||
 हांथ मिलाकर जो चले, नर नारी के संग |
 सत्य और शिव साथ हों, जीवन हो सबरंग ||३||
 अरे मुर्ख तेरे लिये, धरती पर ही स्वर्ग |
 जिसे प्रताड़ित कर रहा, वह कुंजी अपवर्ग ||४||
 होली का माहौल है, हरसूँ उड़े अबीर |
 चलो होलिका फूंक दे, दोरंगी तसवीर ||५||
***********************************************************************
8. डॉ० प्राची सिंह
दोरंगी तस्वीर एक महिला की नज़र से............
उसका
रत्न जड़ित स्वर्ण महल -
मेरे लिए सिर्फ
रेत का घरौंदा -
जाने कब ढह जाए ?
*****
अंत समय
कितना होगा बेचैन वो
आखिर किसे सौंपे अपनी विरासत ?
मैं निश्चिन्त,
मेरी पूँजी- ये साँसे ये धड़कन
यहीं से शुरू यहीं पर ख़त्म...
*****
मेरी नज़र में वो –
सर्वथा मान्य, काबिल, अनमोल.
उसकी नज़र में मैं.....??
बेहतर है -
खुद को सिर्फ अपनी नज़र से देखूं !
*****
जहाँ तक नज़र जाती है
सब पराया लगता है...
अपना सा कुछ
शायद सिर्फ ख्वाब है मेरा ?
*****
रोज़ सुबह से देर रात तक
धुएँ के छल्लों में घुटती,
गली के अंतिम छोर पर
पुरानी पुलिया..
इस इंतज़ार में
क्या कभी पाजेब की झंकार लिए
कुछ पाँव वहाँ लहराएंगे, उसे थपथपाएंगे ?
क्या ये पुलिया सबकी नहीं ?
***********************************************************
9. आ० रमेश कुमार चौहान जी
(1) दो रंगी तस्वीर लगी है (सार छंद)
दो रंगी तस्वीर लगी है, सृष्टि पटल पर बहना ।
 सभी एक दूजे के पूरक, समता का क्या कहना ।।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, ना ऊपर ना नीचे ।
 श्वेत श्याम मिलकर है बनते, राधा श्याम सरीखे ।।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, कहती मानव गाथा ।
 मनु सतरूपा साथ करे तप, राम राज है आता ।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, स्वयं अनुरूप देखें ।
 श्वेत कहे मै भारी जग में, श्याम काज अनलेखे ।।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, चारो ओर सहेली ।
 रखे दांत खाने के दूजे,  लगते एक पहेली ।।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, मनुज दिखे व्यभिचारी ।
 बच्ची भी लगती न दुलारी, कैसे जीये नारी ।।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, स्याह चेहरा उनका ।
 कहते जो अपने को नेता, राज धर्म है जिनका ।।
दो रंगी तस्वीर लगी है, संदेशा इक देती । 
 बीज बने पेड़ जिस धरा पर, वही धरा सुख देती ।
 
 दो रंगी तस्वीर लगी है, आधी  आबादी की ।
 समता अभाव कारक होगी, अपनी बर्बादी  की।।
(2)      कज्जल छंद 
 
 मानस पटल अंकित चित्र ।
 रोते हॅसते कुछ विचित्र ।।
 ओठ मुस्कान हृदय पीर
 कहे दो रंगी तस्वीर ।
 
 कदम पड़े हमारे चांद ।
 देखे कौन निर्धन मांद ।।
 अब तक बदले न तकदीर ।
 कहे दो रंगी तस्वीर ।
 
 साधु चोला सादा वेश ।
 अंदर मुखरित राग द्वेश ।
 सन्यासी है काम वीर ।
 कहे दो रंगी तस्वीर ।।
 
 मां बेटी बहना पुकार ।
 पौरूष दैत्य करे शिकार ।।
 नारी नयन बहते नीर ।
 कहे दो रंगी तस्वीर ।
 
 अबला भई सबला आज ।
 करती सारे मर्द काज ।।
 परिवार लग रहे अधीर ।
 कहे दो रंगी तस्वीर ।
**************************************************************
10. आ० सत्यनारायण सिंह जी
कुण्डलिया छंद
सारे देश समाज की, बदले जो तकदीर।
 उस नारी की देश में, दो रंगी तस्वीर।।
 दो रंगी तस्वीर, कराती परिचय सारा।
 बहता आँचल दूध, आँख से आँसू खारा।।
 सहे मान अपमान, किन्तु हिम्मत ना हारे।
 नारी का सम्मान करें हम मिलकर सारे।।
*********************************************************
11. आ० नादिर खान जी
गज़ल
जन्म पर बेटों के तो, बजता है नगाड़ा
बेटियों के नाम पर, आता है पसीना
हर बहू तो होती है, बेटी भी किसी की
रोती है,जब बेटी तो, फटता है कलेजा
नौकरानी हो कोई, या कोई सेठानी
हर किसी का लाल तो, होता है नगीना
खुद बनाता है महल, औरों के लिए जो
वो खुले मैदान पर, करता है गुज़ारा
खेतिहर का धान, सड़ जाता है खुले में
पेट की फिर आग में, जलता है बेचारा
*********************************************************
12. आ० कल्पना रामानी जी
सार ललित छंद पर प्रथम प्रयास
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कल की पीड़ित नारी,
कितनी है खुश आज ओढ़कर, दुहरी ज़िम्मेदारी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, खेत खड़ा है भूखा,
अन्न देखकर गोदामों में, खुलकर हँसा बिजूखा।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, फसल बाढ़ ने खाई,
वे फाँसी पर झूल रहे, ये, सर्वे करें हवाई।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, बात नहीं यह छोटी,
कल उसको खाते थे हम, अब, हमें खा रही रोटी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, यह ऋतु बारहमासी,
पुत्र विदेशी साहब, घर में, पिता हुए बनवासी।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हतप्रभ है योगासन,
शीर्षासन में खड़ा आमजन, नेता करें शवासन।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हर सच्चाई नंगी,
खिन्न हुआ मन, देख देश की, तस्वीरें दो रंगी।
***********************************************************
13. आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
(1) दो रंगी दुनिया है आज (कविता)
साल में एकदिन गाथा गाते, करते महिला का गुणगान
तरह तरह के कढ़े कशीदे, करने नारी का सम्मान
लोक दिखावा करते पूजा, छिपा हुआ है मन में बाज
गिरगिट जैसा रंग बदलती, दो-रंगी दुनिया है आज |
प्रसव रूप में पीड़ा सहती, रखती शिशु का पूरा ध्यान
दूध पिलाती माँ ही आपना, जाना जाय पिता के नाम
आधी दुनिया महिलाओं की, फिर भी राजा का ही राज
गिरगिट जैसा रंग बदलती, दो-रंगी दुनिया है आज |
अधिकारी है महिलाए भी, आधी दुनिया उनके नाम
ऊँची उड़ान भरी कल्पना, बाकी बचा न कोई काम
समय आ गया अबतो समझे, कर सकती नारी भी राज
गिरगिट जैसा रंग बदलती, दो-रंगी दुनिया है आज |
पत्थर बनती रही अहिल्या, सहती चीर हरण अपमान
याद करे न पन्नाधाय को, स्वपूत का दिया बलिदान
हम सबकी है जिम्मेदारी, पीडित न हो नारी आज
गिरगिट जैसा रंग बदलती, दो रंगी दुनिया है आज
(2) कुंडलिया छंद
दुनिया दो-रंगी हुई, फैला आज विकार
अपनों से ही मिल रहा,दुश्मन सा व्यवहार
दुश्मन सा व्यवहार, सभी रश्ते में मिलता
करे दिखावा प्यार, नहीं लगाव का रिश्ता
फितरत से लाचार,ढूंढे और में कामियां
मन में भरे मिठास, निभावे रिश्ता दुनिया |
दो रंगी दुनिया हुई, मन में बसता चोर,
रिश्ते की ढीली हुई, सबके मन की डोर
सबके मन की डोर, सभी अपना हित साधे
माया के बस मोह, जपे न ह्रदय से राधे
गुरु शिष्य सम्बन्ध, बना सकते सतरंगी
सपने हो साकार, रहे न भाव दो रंगी |
******************************************************
14. आ० प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी
दो रंगी तस्वीर
सतरंगी दुनिया 
 सिमट कहाँ है आयी ?
 कौन है वो 
 किसने दोरंगी है बनायी  ?
 हैं तो सात रंग 
 भ्रम अब भी पाले हैं 
 जीवन में हैं अँधेरे 
 कहीं 
 तो कहीं उजाले हैं 
 रिश्तों के रंग 
 देख देख थे चुने 
 ऊँची उड़ान के 
 स्वप्न थे बुने 
 स्याह सफ़ेद 
 लोगों ने 
 परिंदों के पर 
 नोच डाले हैं 
*****************************************************
15. आ० इमरान खान जी
दो रंगी तस्वीर : ग़ज़ल
 बेटे प्यार मुहब्बत पायें बेटी को शमशीर मिले,
 बस्ती बस्ती जिधर भी जायें दो रंगी तस्वीर मिले।
 
 ज़ालिम और दरिंदे बाहर घात लगाकर बैठे हैं,
 मानवता की आँखें रोयें मायूसी का नीर मिले।
 
 अच्छी और बुरी बातों में भेद नहीं हो पायेगा,
 शैतानों का चेला भी गर शागिर्दों को पीर मिले।
 
 घर की भाषा निम्न हो गई बात बात पर झगड़े हैं,
 अगली पीढ़ी में मुश्किल है तुलसी या फिर मीर मिले।
 
 कोई नभ में उड़ता रहता है इतनी ऊँचाई पर,
 कोई बेचारा बेबस है पैरों में जंजीर मिले।
 
 जंगे आखिर में फिर कैसे मेरी हार नहीं होगी,
 दुश्मन के हथियारों में अब हमदम के भी तीर मिले।
 
 मेहनत करके छाले जिनके हाथों में पड़ जाते हैं,
 ऐसे लोगों की ही एक दिन मुट्ठी में तकदीर मिले।
**********************************************************
16. आ० सरिता भाटिया जी
महिला दिवस आते ही 
 मैं मानती स्वयं को सर्वश्रेष्ठ 
 शिखर पर होती मेरी महत्वाकांक्षायें
 विचरती स्वछन्द बेख़ौफ़ 
 निभाते हुए बहुरंगी आयाम 
 कभी माँ 
 कभी बेटी 
 कभी बहन 
 कभी पत्नी 
 कभी दोस्त 
 कभी प्रेयसी बन 
 बीतते बीतते महिला दिवस 
 होता मेरे ही अस्तित्व को खतरा 
 घिर जाती मैं 
 निराशाओं के तिमिर से 
 तब छिपा ना पाती 
 मैं अपनी दोरंगी तस्वीर 
 घुटन की 
 पाबंधी की 
 मुस्कान के पीछे सिमटे अश्कों की 
 डर जाती मैं
 सहम जाती मैं 
 ढलता सूरज 
 सुनसान सड़क देख
 क्या मैं अपनी अस्मिता समेटे 
 पहुँचूगी किसी ठौर ?
 बिना किसी अखबार की सुर्खी बने
*********************************************************
17. आ० राजेश कुमारी जी
ग़ज़ल
बह्र: 2122 2222 2222 2112
माँ तेरी इन आँखों में क्यूँ दोरंगी तस्वीर दिखे
इक नयन से मोती झरते दूजे में क्यूँ नीर दिखे
खुश रहे तू इस जीवन में क्यूँ ऐसे हालात नहीं
गम छुपाकर हँसती है तू पर बातों में पीर दिखे
बेटियां अपनी सावित्री ,सीता जैसी पात्र अगर
दूसरे की बेटी में क्यूँ उनको लैला हीर दिखे
जब मनाता भारत अपनी आजादी का जश्न यहाँ
पट्टियाँ आँखों पर तेरे पैरों में जंजीर दिखे
पूजते थे नारी को पहले दुनिया के लोग सभी
आज कल के मर्दों को औरत अपनी ज़ागीर दिखे
जाति धर्म के खेमों में टुकड़े-टुकड़े जान बटी
‘राज’ भारत माता की अब गर्दिश में तकदीर दिखे
************************************************************
18. आ० अरुण कुमार निगम जी
दोरंगी  तस्वीर  देखकर ,  सोच  रहा  होगा  भगवान 
 मैंने  मानव जिसे बनाया , वह क्यों बन बैठा शैतान
 मैंने कोमल हृदय दिया था, जो था प्रेम भरा निष्काम 
 लोभ कपट छल धोखा ईर्ष्या, इसने डाले द्वेष तमाम ||
मैंने  दी  थी  भोली  सूरत, पहन  मुखौटे  रहा बिगाड़ 
 लूट रहा  सारी दुनियाँ को , क्यों लेकर  वह मेरी आड़ 
 माँ भगिनी पत्नी सम नारी, करता इससे भी खिलवाड़ 
 कन्या - भ्रूण न भाये इसको, कितनी कोखें रहा उजाड़ ||
बंजर  धरती को  कर  डाला , पर्वत  पर  भी  किये  प्रहार 
 जंगल  प्रतिदिन  काट  रहा  है , जो  हैं  जीवन के आधार 
 निर्मल नदियों को कर दूषित, रहा हवा में नित विष घोल 
 कहाँ  संतुलन  रहा  प्रकृति में , मैंने  जो  दी थी अनमोल ||
सत्ता - मद में  भूल  रहा  है , रिश्ते - नाते  का  भी मान 
 संस्कारों को तज कर अपने, खुद को समझ रहा भगवान 
 अब  तो  मुझको  आना  होगा, हरने को जन-जन की पीर 
 और  बदलनी  होगी  मुझको  ,  जग  की  दोरंगी  तस्वीर ||
************************************************************
19. आ० नादिर खान जी
क्षणिकाएँ
(एक)
तुम अक्सर कहते रहे
मत लिया करो
मेरी बातों को दिल पर
मज़ाक तो मज़ाक होता है
ये बातें जहाँ शुरू
वहीं ख़त्म ....
और एक दिन
मेरा छोटा सा मज़ाक
तार –तार कर गया
हमारे बरसों पुराने रिश्ते को
न जाने कैसे.........
(दो)
घर की मालकिन ने
घर की नौकरानी को
सख्त लहजे में चेताया
आज महिला दिवस है
घर पर महिलाओं का प्रोग्राम है
कुछ गेस्ट भी आयेंगे
खबरदार !
जो कमरे से बाहर आई
टांगें तोड़ दूँगी........
*****************************************************************
20. आ० हेमंत शर्मा जी
देखो मेरे देश की, दो रंगी तस्वीर
धान सड़ॆ गोदाम में, सोते पीकर नीर
औरत का जीवन सदा, दो- धारी तलवार
घर में है मजवूर वह, बाहर है लाचार
मन्दिर मस्जिद छोड़ के, मदिरालय दो खोल
धर्म जाति का भेद नही, मदिरालय अनमोल
गुरुओं का ये देश है, है कर्मों का खेल
जल्दी जल्दी सीख लो, गुरु जाएगा जेल
रोटी की खातिर सुनो, छोड़ा अपना देश
भाषा बदली आज है, कल बदलेगा वेश
*****************************************************
21. आ० नीरज कुमार ‘नीर’
दोरंगी तस्वीर (अतुकांत)
उसने मारा,
उसने लूटा,
हम चुप थे.
उसने तोड़ा ,
छीना जब जो चाहा .
धर्म , अस्मिता, मान
और वो सब कुछ
जो उसे भाया ,
जी में आया,
हम चुप थे.
हमारी चुप्पी,
उनका अधिकार .
हमारी नियति
सहना अत्याचार.
एक दिन लगा दी ठोकर
हल्की सी .
यद्यपि चुंका नहीं था धीरज
भरा था, अभी भी ,
लबालब,
सागर, सहिष्णुता का..
वे लगे चिल्लाने,
कहने लगे,
उनके साथ हुआ है जुल्म,
उनकी चिल्लाहट में,
बार बार के झूठ में,
गुम हो गए
उनके सारे गुनाह.
हमारे भाई, पडोसी सब चिल्लाने लगे,
मिलाकर उनके साथ सुर
हाँ, हाँ उनके साथ जुल्म हुआ है.
बाँधने लगे अपने ही पैरों में बेड़ियाँ
ताकि फिर ना लग सके उन्हें
हल्की सी भी ठोकर .
मैं हतप्रभ हूँ,
कैसी अजीब है यह दोरंगी तस्वीर.
******************************************************
Tags:
वाह !
आपकी कुण्डलिया की अंतिम पंक्ति में यह संशोधन सर्वथा उचित है आ० सत्यनारायण सिंह जी
अरे वाह! इतनी जल्दी संकलन भी प्रकाशित हो गया. गज़ब .कल शाम के बाद हाजिरी नहीं लगा सका.
मोहतरमा प्राची साहिबा, आपके इस कामयाब संचालन पर आपको पुरखुलूस शुक्रिया और मुबारकबाद.
******
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा ग़ज़ल की जो अपने बहर (2122 2222 2222 2112) बताई है, अगर पहले रुक्न को 2222 कर दें तो? अपने मिसरों को 2222 2222 2222 2112 या 2222 2222 2222 1212 पर बांधकर देखिएगा.
जी आप सही कह रहे हैं आ० सौरभ जी ने आप से पहले यही सलाह दी थी ,कुछ शब्दों के फेर बदल से २२२२ २२२२ २२२२ २११२ पर साधने की कोशिश करुँगी ,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया इमरान भाई जी
शुक्रिया अपने मेरे कहे को मान दिया. दरअसल इत्तेफाक से मैंने जो ग़ज़ल कही है उसकी बहर भी आपकी ग़ज़ल के सामान है, मुझे अपने कहे को ग़ज़ल में ढालने के लिए हिंदी के एक छंद का सहारा लेना पड़ा (१६+१४ = ३०) तब जाकर बात बनी. मैंने हिंदी के छंद की मात्राएँ गिरा ली और ग़ज़ल हो गयी. आप भी ऐसा ही करके देखिएगा शायद बात बन जाये.
वाह ये त्वरित संकलन देख कर बहुत ख़ुशी हुई आपको बहुत- बहुत बधाई प्रिय प्राची जी.इस आयोजन से जुड़े सभी लेखक लेखिकाओं को हार्दिक बधाई
वाह मैम एक बेहतरीन आयोजन ... भाग न ले पाने का मलाल रहता है किन्तु संकलित रचनाओं को पढ़कर बहुत अच्छा लगता है |
बधाई हो आदरणीया
आ० डॉ प्राची सिंह जी, घर बदलने की व्यस्तता के चलते मैं इस आयोजन में न तो सम्मिलित ही हो पाया और न ही सभी रचनायों को ही पढ़ पाया था. आज सभी रचनायें को पढ़ने का अवसर मिला तो पढ़कर मन प्रसन्न हुआ. इस आयोजन में अपनी सुन्दर रचनाएं प्रस्तुत करने वाले तथा उस रचनायों पर विद्वतापूर्ण टिप्प्णियां दर्ज करवाने वाल सभी सुधी साथियों को हार्दिक बधाई देता हूँ. आयोजन के सफल मंचन और रचनायों को संकलित करने के महती कार्य हेतु आपको भी मेरी दिली बधाई।
लाइव महोत्सव-41 की सभी रचनाए एक स्थान पर संकलित कर सभी सुधि पाठकों को पढने के लिए उपलब्ध कराने के श्रम साध्य
कार्य हेतु हार्दिक बधाई मंच संचालिका आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी | मेरी कुंडलिया छंद पर टिपण्णी करने वाले सभी श्रद्धेय सदस्यों
का आभार व्यक्त नहीं कर पाया था उन सभी का हार्दिक आभार |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |