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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-131

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 131वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जिगर  मुरादाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं "

     221      2121       1221       212 

     मफ़ऊलु     फ़ाइलातु     मफ़ाईलु    फ़ाइलुन

बह्र:  मज़ारे  मुसम्मन अख़रब  मक्फूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ :-  नहीं
काफिया :- अम( कम, दम ,सितम, करम, अलम, कदम, नम आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 मई दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 29 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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सहृदय शुक्रिया गुरुजी मार्गदर्शन के लिये

सादर

गुरु जी

गुलम = मुज़क्कर (ख़ुद की विशेषताओं) के संबंध में प्रयोग किया था

जी गुरु जी मैं इस मतले को हटा देता हूँ 12 शैर हो गये

जी गुरु जी शहर का प्रयोग लय में डूब कर 12 पर हो गया इसकी जगह शैर को ऐसे किया है देखियेगा गुरु जी

छलकी जो आँख शाह की तो रो पड़े सभी

इंसानियत की मौत पर इक आँख नम नहीं

सादर

जी, ठीक है ।

'इंसानियत की मौत पर इक आँख नम नहीं'

इस मिसरे में 'पर' की जगह "पे" कर लें ।

ठीक है गुरु जी

सादर

आदाब, भाई, आजी तमाम, तीसरे के सानी,चौथे के ऊला, पांचवे के ऊला और दसवे शैर  के ऊला पर फिर ग़ौर फरमाएं! 

अमूल्य टिप्पणी के लिये धन्यवाद

221 2121 1221 212

खुद के सिवाय रखते किसी पर भरम नहीं

दिल तोड़ दे हमारा किसी में ये दम नहीं

ज़िंदा दिली है ज़िंदगी का नाम हर कदम

वर्ना बताओ ज़िंदगी में किसको गम नहीं

हर रोज़ तोड़ती हैं यूँ तो अँधिया हमें

लेकिन जो टूट जाएं हवाओं से हम नहीं

इस जिस्म ने तो हमको हमेशा दगा दिया

लेकिन जुनून ओ ज़िद की अभी आग कम नहीं

गर ख़ाक में मिले तो मिलेंगे तिरी वतन

कुर्बान तुझ पे होंगे डगेंगे कदम नहीं

अब तो दवा ए दिल को समंदर की है तलब

अब घाव मरहमों से मिटेंगे सनम नहीं

तूने सिखाया दर्द में जीना ए ज़िंदगी

तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं

सच लिखना गर ख़ता है तो होने दो फिर ख़ता

बंध जाये दायरों में वो अपनी क़लम नहीं

देखा है हर किसी को उड़ाते हुये हँसी

मुफ़्लिस कि कोई भी यहाँ कीमत अहम नहीं

छलकी जो आँख शाह की तो रो पड़े सभी

इंसानियत की मौत पे इक आँख नम नहीं

"आज़ी" ये आज कल के मसीहा भी खूब हैं

शान ओ अदा अहम है सबाल ए शिकम नहीं

आदरणीय भाई  Aazi Tamaamजी,
सादर अभिवादन
बहुत उम्दः तरही ग़ज़ल कही है आपने ,दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। उस्ताद जी की इस्लाह पर अमल के बाद और भी ख़ूबसूरत हो गई है ।

सादर प्रणाम आ सालिक जी

हाँजी समर गुरु जी की ईसलाः से ग़ज़ल खूबसूरत हो गयी है

हौसला अफ़ज़ाई के लिये सहृदय शुक्रिया

सादर

आदरणीय आज़ी तमाम जी सुधार के बाद बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई।बधाई।

शुक्रिया आ रचना जी

सादर प्रणाम

आ. भाई आज़ी तमाम जी अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। 

शहर को नगर करने से भी काम चल जायेगा।

हौसला अफ़ज़ाई का

सहृदय शुक्रिया आ धामी सर

जी सर नगर भी ठीक है यह पहले मेरे ज़हन में नहीं आया

सादर

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