For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-130

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 130वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब इब्न-ए-इंशा

 साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए "

22           22        22          22          22         22         22       2  

 फेलुन    फेलुन     फेलुन      फेलुन      फेलुन     फेलुन     फेलुन   फा 

बह्र:  मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ

रदीफ़ :-  हुए
काफिया :- आम( बदनाम, नाकाम, शाम, काम, दाम, गुमनाम आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अप्रैल दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 24 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 5124

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय सलिक जी उम्दा गज़ल हुयी बधाई स्वीकारें ...सभी शेर लाजवाब हैं

22 22 22 22 22 22 22 2


इश्क़ का चर्चा काम न आया मुफ़्त में हम बदनाम हुए
इश्क़ किया पर चैन न पाया हम तो बस नाकाम हुए।1

सुब्ह की खिलती लाली जैसे चेहरा अपना रहता था
जाने नज़र ये किसकी लगी है हम बुझती सी शाम हुए।2


दिल से यारों हाथ धो बैठे अक़्ल न देती साथ कभी
"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए"3

लोग वबा की बात हैं करते सुनते हम भी रहते हैं
हाल हुआ बेहाल जो देखा, हम भी बेआराम हुए।4

किसकी जिम्मेदारी होगी कौन सजा अब पाएगा
आज वबा के चलते परेशाँ सारे ख़ास-ओ-आम हुए।5

दुनिया की इस भीड़ में अक्सर मिलते रहते लोग नए
और कभी कुछ जाने माने लोग भी तो गुमनाम हुए।6

साथ में मिल रमजान मनाया याद ख़ुदा को करके "रिया"
नवरात्रों में माँ को पूजा, नवमी के दिन राम हुए।7

"मौलिक व अप्रकाशित"

आ. रिचा जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

/जाने नज़र ये किसकी लगी है हम बुझती सी शाम हुए/ को--/जाने किसकी नज़र लगी जो अब हम बुझती शाम हुए। करें तो गेयता बढ़ जायेगी। सादर..

आदरणीय लक्ष्मण जी,अभिवादन

जी धन्यवाद आपका।

बेहतर है, ठीक करती हूँ इसे।

सादर।

22 22 22 22 22 22 22 2


इश्क़ का चर्चा काम न आया मुफ़्त में हम बदनाम हुए
इश्क़ किया पर चैन न पाया हम तो बस नाकाम हुए।1

सुब्ह की खिलती लाली जैसे चेहरा अपना रहता था
जाने किसकी नज़र लगी जो अब हम बुझती शाम हुए।2


दिल से यारों हाथ धो बैठे अक़्ल न देती साथ कभी
"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए"3

लोग वबा की बात हैं करते सुनते हम भी रहते हैं
हाल हुआ बेहाल जो देखा, हम भी बेआराम हुए।4

किसकी जिम्मेदारी होगी कौन सजा अब पाएगा
आज वबा के चलते परेशाँ सारे ख़ास-ओ-आम हुए।5

दुनिया की इस भीड़ में अक्सर मिलते रहते लोग नए
और कभी कुछ जाने माने लोग भी तो गुमनाम हुए।6

साथ में मिल रमजान मनाया याद ख़ुदा को करके "रिया"
नवरात्रों में माँ को पूजा, नवमी के दिन राम हुए।7

आ. रिचा जी नमस्कार,बहुत ही उम्दः ग़ज़ल हुई है, बहुत बधाई आपको

आदरणीय निलेश जी

बहुत शुक्रिया आपका।

सादर।

नमस्कार, आदरेया, मात्रिक गठन की दृष्टि से उल्लेखनीय ग़ज़ल है, आप की  ! बाक़ी प्रवाह को लेकर आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफ़िर की बात सही है! इति! 

आदरणीय चेतन जी, नमस्कार

बहुत बहुत आभार आपका,जी सुधर किया है।।

सादर।।

सादर प्रणाम रिचा जी

चेहरा/212  को   चहरा/ 22  कर लीजिएगा

बेहतरीन प्रयास के अच्छी ग़ज़ल है

बाकी तो धामी सर ने बता ही दिया

सादर

आदरणीय Aazi जी,नमस्कार

बहुत शुक्रिया आपका।

जी ठीक, करेक्शन के लिए भी आभार आपका।

सादर।

आदरणीय आज़ी जी

चेहरा 22 ही लिया है।

सादर।

जी आदरणीय रिचा जी

आभार

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रूखे व्यवहार से मैं आहत हूँ । आदेशात्मक प्रवृत्ति किसी भी रचनाकार के …"
4 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"उभयमार्ग ही अभयमार्ग --------------------------- शांति की बात कर रही दुनिया युद्ध में फिर भी मर…"
5 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"उचित है आदरणीय गिरिराज....जी मतले में सुधार के साथ दो शेर और शामिल कर हूँ....सभी अग्रजों…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। दोहों के लिए हार्दिक बधाई।  भाई योगराज जी के कथन को अन्यथा न ले…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपके सुझाव से मूल दोहे…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।  इंगित दोहे में…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"प्रिय गिरिराज  हार्दिक बधाई  इस प्रस्तुति के लिए|| सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है सड़ा है…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई इस प्रस्तुति के लिए|| सदा प्रगति शान्ति का       …"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , विषय के अनुरूप बढ़िया दोहे रचे हैं , बधाई आपको मात्रिकता सही होने के बाद…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service