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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-110

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 110वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हम जवाब क्या देते, खो गए सवालों में "

212    1222     212       1222

फाइलुन     मुफ़ाईलुन    फाइलुन       मुफ़ाईलुन 

(बह्र: हजज मुसम्मन् अस्तर )

 

रदीफ़ :- में

काफिया :- आलों( सवालों, मिसालों, हवालों, वालों, उजालों, प्यालों आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

**विशेष : इस  बह्र मे  ऐब-ए-शिकस्ते नारवा  की गुंजाइश बहुत आसानी  से हो सकती है , जिससे बचने के लिए दूसरे और तीसरे रुक्न में ऐसे  अल्फ़ाज़  का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जो दोनों रुकनों मे शामिल हो अर्थात दूसरे रुक्न मे लफ्ज खत्म हो जाना चाहिए और तीसरे रुक्न की शुरुवात एक नए लफ्ज से होनी चाहिए |

 

नियम एवं शर्तें:-

 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

 

विशेष अनुरोध:-

 

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।

मुसाफिर जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बहुत बहुत बधाई 

हार्दिक आभार अनीश जी।

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है मेरी मुबारकबाद स्वीकारें 

आ. राजेश दी, सादर अभिवादन और आभार।

आदरणीय लक्ष्मण जी , अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई। अंतिम शेर में ऐसे लग रहा है जैसे रिसालों में नाम आना बुरी बात हो। वो भी शहादत की वजह से। सादर

आदरणीय मुसाफिर जी,  ग़ज़ल के लिए  बहुत बधाई हो 

आदरणीय धामी जी बहुत बढ़िया बहुत बधाई स्वीकार किजिए।

   

212 1222 212 1222

चटपटी छपें ख़बरें खूब अब रिसालों में

झूठ भी दिखे है सच आ के इनकी चालों में  

रिश्ते सारे मतलब के होते फिर अलग ऐसे 

जैसे कोई हो पत्थर काली पीली दालों में 

हल्की हो गई खुशबू देखो रश्क़ के फूलों की 

कलियाँ हों चमेली की अब तुम्हारे बालों में 

है उन्हें महब्बत या है फक़त वहम कोई

बीतता है दिन मेरा अब इन्हीं ख़यालों में 

लैला मजनूँ के किस्से हो गये कहानी सी

इश्क़ की मिसालें अब दिखती कितने सालों में 

*मांगते जवाबों को इश्क़ की निगाहों से 

हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में*

ग़म के लग गये मेले हो गई खुशी ओझल 

ढूँढते उसे अब हम मय-कदे शिवालों में 


मौलिक व अप्रकाशित 


  

आदरणीय 

एडिट करते हुए गलती हो गई है ।तीसरे में इश्क़ के फूलों     और गिरह में रश्क लिखना था।

प्लीज़ इसे ध्यान दें । जल्दबाजी के लिए माफ़ी चाहूँगी ।

जी,अब तो तीर कमान से निकल चुका ।

ग़ज़ल पोस्ट करने के बाद 15 मिनिट तक एडिट का ऑप्शन खुला रहता है,उसके बाद संकलन के समय ही संशोधन किया जा सकता है ।

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'हल्की हो गई खुशबू देखो रश्क़ के फूलों की 

कलियाँ हों चमेली की अब तुम्हारे बालों में'

इस शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,और दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं,देखियेगा ।

'है उन्हें महब्बत या है फक़त वहम कोई'

इस मिसरे में 'वहम' ग़लत है,सहीह शब्द है "वह्म" 21,इस मिसरे को यूँ कर सकती हैं:-

''है उन्हें महब्बत या वह्म है फक़त मेरा'

'लैला मजनूँ के किस्से हो गये कहानी सी'

इस मिसरे में जो आप कहना चाहती हैं,तो लैला मजनूँ की ब तो वाक़ई कहानी ही है,ग़ौर करें ।

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