For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाड़े की सुबह का ठिठुरता कोहरा

या हो ग्रीश्म की तपती धूप की तड़पन

अलसाए खड़े पेड़ की परछाईं ले अंगड़ाई

या आए पुरवाई हवा लिए वसन्ती बयार

उमड़-उमड़ आता है नभ में नम घटा-सा

तुम्झारी झरती आँखों में मेरे प्रति प्रतिपल

धड़कन में बसा लहराता वह पागल प्यार

इस पर भी, प्रिय, आता है खयाल

फूल कितने ही विकसित हों आँगन में

पर हो आँगन अगर बित्ता-भर उदास

छू ले सदूर शहनाई की वेदना का विस्तार

तो गुलाब हो, गेंदा हो, या हो हरसिंगार

नहीं पहुँचती, नहीं पहुँचती है मुझ तक

इन सब फूलों की मनमोहक महक

भीतरी तहों में फिर महसूस होती है क्यूँ

निर्दोश फूलों के नुकीले कांटों की चुभन ?

ऐसे में, प्रिय, मैं तुमसे प्यार जता नहीं पाता

चुप हो जाती है हवा, चुप हो जाता हूँ मैं

स्याह उदासी की चट्टानी नकाब

शिलामूर्ति-से चेहरे से मैं हटा नहीं पाता

भीतरी दरारों में ठहरा रहता है देर तक

कोई झकझोरता अपराधी भाव

इसीलिए रह-रह कर लौट आता है

एक उल्झा-सा सवाल ---

कब तक रख सकोगी, प्रिय, तुम मेरे लिए

बंद करके पलकों में प्यार ?

                 ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 9, 2019 at 3:54am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र लक्ष्मण जी

Comment by vijay nikore on August 9, 2019 at 3:53am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर कबीर जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2019 at 8:39am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on August 4, 2019 at 10:32am

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक गम्भीर और सशक्त कविता से नवाज़ा है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service