For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस  बार  तेरे  शहर  में  परछाइयाँ जलीं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"(गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

सुनते हैं खूब न्याय  की  सच्चाइयाँ जलीं
कैसा अजब हुआ है कि अच्छाइयाँ जलीं।१।


वर्षों पुरानी बात है जिस्मों का जलना तो
इस  बार  तेरे  शहर  में  परछाइयाँ जलीं।२।


कितने हसीन ख्वाब  हुये खाक उसमें ही
ज्वाला में जब दहेज की शहनाइयाँ जलीं।३।


सब कुछ यहाँ जला है, तेरी बात से मगर
हाकिम कभी वतन में न मँहगाइयाँ जलीं।४।


जिसमें मिलन की बास थी नफरत घुली वहाँ
साजिश ये किसकी  यार  जो पुरवाइयाँ जलीं।५।


कितनी तड़प है देख ले बिरहन के भाग में
सावन बुझी न  जेठ  की  तनहाइयाँ जलीं।६।


सोचा था खूब छाँव  में अब तो रहेंगे पर
साजन के  गाँव  धूप  में  रानाइयाँ जलीं।७।


बदला है वक़्त भाग से  उसका भी देखिये
हँस कर जो देखा आपने रुसवाइयाँ जलीं।८।

मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 980

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 29, 2018 at 10:13pm

बहुत बहुत शुक्रिया भाई विजय निकोर जी ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 29, 2018 at 12:44pm

आ भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपके रुख से लेखन सफल हुआ । स्नेह के लिए आभार ।

Comment by vijay nikore on October 28, 2018 at 1:37am

भाई समर कबीर जी, आपकी सुविचारित प्रतिक्रियाओं से सदैव बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आपका आभार। सादर।

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on October 28, 2018 at 1:32am

आपकी गज़ल बहुत ही पसन्द आई। बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2018 at 7:17am

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन।गजल की प्रशंसा के लिए आभार । मार्गदर्शन करते रहिए...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2018 at 7:15am

आ. भाई नवीन जी, गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2018 at 7:14am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा और विस्तारित सुझावों के लिए हार्दिक आभार । यथोचित सुधार किये देता हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 26, 2018 at 8:00pm

वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है..लाजबाब

Comment by Ajay Tiwari on October 26, 2018 at 5:13pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत अच्छे अशआर  हुए  हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 26, 2018 at 1:14pm

आ0 लक्ष्मण धामी साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई ।

सुनते हैं खूब न्याय "की "

सावन पुलिंग है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service