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जन्म :

अंत के गर्भ में
निहित है
जन्म
या
जन्म के गर्भ में
निहित है अंत
अनसुलझा सा
प्रश्न है
सुलझा न सके
कभी
ऋषि मुनि और
संत

योनि रूप है
देह
मुक्ति रूप
अदेह
किस रूप को
जन्म कहें
किसे रूप को
अंत
अनसुलझा सा ये
प्रश्न है
सुलझा न सके
कभी
ऋषि ,मुनि और
संत

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 350

Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 4:36pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 4:36pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on September 5, 2018 at 2:30pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2018 at 8:45am

आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन रचना हुई है । जन्म मरण का प्रश्न अनसुलझा ही है । तभी सनातनता में आत्मा और उसकी अमरता की बात का मत मान्य है । शेष सादर...

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