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बेचैनी बढ़ रही धरा की,  

पशु-पक्षी बेहाल

सूरज बाबा सजा रहे हैं,

अंगारों का थाल

 

दिखते नहीं आजकल हमको,

बरगद, पीपल, नीम

आँगन छोड़, घरों में बालक,

देखें छोटा भीम

 

आये बौने पेड़ विदेशी,

फैलाने जंजाल  

 

सूख गया पानी नदियों का,

फुल हैं स्विमिंग पूल

नहरें पूछ रही बांधों से,

गए हमें क्यों भूल

 

पाट दिए दाऊ-दादा ने,

नदिया, पोखर, ताल

''मौलिक एवं अप्रकाशित''

 

टुकुर-टुकुर देखे गौरैया,

कहीं न दिखती छाँव

छानी तरस रही कब से,

सुनने कागा की काँव

 

मुश्किल से ही दिख पाते अब,

गाय और गोपाल

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 5:51pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 5:51pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2018 at 5:03pm

वाह आदरणीय शर्मा जी बेहतरीन गीत हुआ..बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2018 at 1:11pm

आ. भाई बसंत जी , सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 12:39pm

आपकी बारीक़ नजर को सलाम , कर दिया सर जी 

Comment by Samar kabeer on April 4, 2018 at 11:15am

टाइटल में 'थल' को "थाल" कर लें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:08am

आदरणीय vijay nikore जी, आपको रचना पसंद आई,  आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on April 4, 2018 at 9:30am

रचना अच्छी लगी। बधाई।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 2, 2018 at 4:44pm

आदरणीय समर कबीर जी आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से  शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 12:29pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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