For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपाहिज - लघुकथा –

अपाहिज - लघुकथा –

"अरे चन्दू भैया, यह क्या कर रहे हो? आपको देखकर तो हमको भी शर्म आ रहा है"?

"अब तू ही बता,  शंकर, हम क्या करें?, इंजीनियरिंग की डिग्री लिये बैठे हैं। तीन साल हो गये, नौकरी खोजते खोजते। इंटर्व्यू में जाने के लिये भी पैसा नहीं है। उधारी भी अब कोई नहीं देता। माँ बापू से मांगने में भी शर्म लगता है"।

"चन्दू भैया, ऐसे भीख माँगने से कितना दिन तक गुजारा होगा"?

"आठ दस दिन में जो पैसा इकट्ठा होता है, उससे दो चार जगह इंटर्व्यू  दे आते हैं। तू बता, कितने समय बाद दिखा, तेरा क्या हाल है"?

"अब क्या बतायें भैया, हम भी तो आपके साथ ही बी० ई० किये थे। एक प्राइवेट कंपनी में गये थे इंटर्व्यू देने। प्लेट्फ़ार्म पर केले के छिलके पर पैर फिसल गया। रेलगाड़ी के नीचे आगये। दोनों हाथ गँवा बैठे। मर ही जाते तो ठीक होता”|

“किसी ने बताया था तेरे बारे में, बहुत दुख हुआ| रेलवे से मोटा मुआवज़ा वसूल करना चाहिये था”?

“दो साल से मामला अदालत में अटका पड़ा है”।

"रेल मंत्री को लिखो, विकलांग कोटे में रेलवे में नौकरी देने के लिये"।

"वही तो किये थे, वह ससुरा तो उल्टा हम पर ही आत्महत्या की कोशिश का केस दायर  करवा दिया है"।

“तब पी एम को भी लिख डालो”?

 "वह भी करके देख लिया, अभी तक कोई जवाब नहीं आया"?

“सब एक ही थैले के चट्टे बट्टे हैं| यह सब पैकिट किस चीज के लिये घूमते फिरते हो”?

“एक कोरियर कंपनी में डाक बांटने का काम कर रहे हैं। गुजर बसर हो रही है"।

"यार समझ नहीं आ रहा, जिस देश में इंजीनियरिंग करने के बाद भी भीख माँग कर या कोरियर में डाक बांट कर गुजारा करना पड़े, उस देश का भविष्य क्या होगा"?

"वह भी एक दिन हमारी तरह अपाहिज हो जायेगा"।

"लगता है कि वह दिन अब ज्यादा दूर नहीं है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 20, 2018 at 7:38pm

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। बढिया मार्मिक लघुकथा, पंच भी बढिया कसा आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 19, 2018 at 7:30pm

मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब , बहुत ही जज़्बाती और सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 11:58am

अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।

Comment by Mohammed Arif on March 18, 2018 at 11:00am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,

                                  श्रेष्ठ लघुकथा । अच्छा कटाक्ष है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2018 at 8:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2018 at 8:12pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2018 at 6:19pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 16, 2018 at 5:24pm

देश की अंदरूनी हक़ीक़तों पर बढ़िया कटाक्ष। नकारात्मक अंत भले है लेकिन सोचने व‌ चिंतन-मनन के लिए ज़रूरी है। हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
18 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service