For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उतरती नहीं है धूप

उतरती नहीं है धूप

तुम्हारे स्नेहिल मादक स्पर्श

मेरे शिशु-मन को स्वयं में समाविष्ट करते

प्राणदायक आत्मीय वसन्ती हवा-से

और फिर अचानक कभी-कभी

तुम्हारे रोष

पता नहीं थे वह

मुझसे दूर जाने के लिए

या थे बहाने वह तुम्हारे

बहका कर, बहला कर

मेरे और पास आने के लिए

जो भी थे

तुम्हारे रोष कभी

कठोर नहीं थे

मेरी अधूरी-सतही-बचकानी बातों पर

वसन्त में पीली सरसों के विस्तार-सी

कितनी सहज हँस पड़ती थी तुम

वह सारे गुस्से तुम्हारे पल भर में

उस हँसी में घुल जाते 

छिप जाता था मैं निश्चिन्तित उस पल

ओढ़ कर सिर पर आँचल तुम्हारा

वह बचपन था

मासूम बचपन था वह

शिशु-हृदय पर अंकित

सिहर-सिहर अब आँसू भरा

वह कोई नश्वर सपना था

हुआ होगा ज़रूर कोई

महा-अपराध मुझसे

एक दिन रोष विधि का

बहुत कठोर हुआ मुझपर

कि जैसे कोई विशैला सर्प

मेरे सारे बदन पर रेंग गया

न डाक्टर, न दवा, न मैं

कोई तुम्हें न रोक सका

आँखे मूंद तुम चली गई

जहाँ से कोई न लौट सका

आज सुबह के ठिठुरते कोहरे में

शरद के  मेरे  उदास  आँगन में

जब  उतरती  नहीं  है  धूप

सोचता  हूँ  पूछूँ  प्रश्न  तुमसे

जहाँ भी हो, देख-देख मुझको

माँ, तुम अभी भी हँस रही हो क्या ?

सान्ध्य-दीप-वेला में पाता हूँ तुमको

प्रति दिन  निकट, कुछ और निकट

पूछूँ किस-किस पतंगे से माँ

नहीं हो तुम, क्या यह है भ्रम मेरा ?

                 -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:20am

इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया नीलम जी

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:20am

इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:19am

इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय समर जी

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:19am

इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय हर्ष जी

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:18am

इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी

Comment by vijay nikore on March 19, 2018 at 7:17am

 इस मान और सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2018 at 6:46am

आ. भाई विजय जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on March 13, 2018 at 10:08pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,वाह वाह, बहुत ख़ूब क्या कहने कितनी मार्मिक कविता है, सीधी दिल में उतर गई, शब्द नहीं हैं मेरे पास इसकी तारीफ़ के लिए,आपकी सोच की परवाज़ कितनी बुलन्द है, वहाँ तक पहुँचने में पसीने में डूब जाता हूँ मैं तो,लेकिन शायद वहाँ तक पहुँचने में कामयाब नहीं होता, ऐसा महसूस होता है,मुझे,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से ढेरों मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 13, 2018 at 3:06pm

सान्ध्य-दीप-वेला में पाता हूँ तुमको, प्रति दिन  निकट, कुछ और निकट

पूछूँ किस-किस पतंगे से माँ, नहीं हो तुम, क्या यह है भ्रम मेरा ?

अदरणीय विजय निकोर जी, नमसकर । कविता के एक-एक शब्द माँ की स्मृतियों में डूबता रहा । बहुत ही भाव प्रवण कविता । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 11:08pm

आदर्णीय विजय निकोर जी आदाब ।

एक बहुत सृजनात्मक रचना मन को छूती हुई ।

"बहुत कठोर हुआ मुझपर

कि जैसे कोई विशैला सर्प

मेरे सारे बदन पर रेंग गया..."

बहुत उम्दा ।

सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service