For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अगला वेलेंटाइन (लघुकथा)

"बहुत हो गये फोटो! अब मैं तुम्हें बिकनी में देखना चाहता हूं!" अंततः शरीर की भूख उसके शब्दों से ज़ाहिर हो गई थी। दोस्ती से तन तक के फार्मूले से बचकर अगली बार जब उसने मुहब्बत बरसाने वाले शादीशुदा आदमी के साथ वेलेंटाइन डे मनाया तो दो शरीर एक हो ही गये थे और बरसने वाली मुहब्बत चंद दिनों में ही रफूचक्कर हो गई थी। शादीशुदा मर्द से धोखा खाने के बाद इस बार वेलेंटाइन डे पर वह एक साहित्यकार की आगोश में थी।


"तुमने विवाह क्यों नहीं किया?" अपनी लिखी कुछ काव्य रचनाएं सुनाकर साहित्यकार ने पूछा।


"यही सवाल यदि मैं तुम से करूं, तो?" उसने अपने लम्बे बाल टेबल पर बिछाते हुए कहा।


"मुझे ऐसी लड़की या औरत नहीं मिली, जो मुझे समझ सके, मेरी शारीरिक, मानसिक और रूहानी ज़रूरतों को पूरा कर सके!" साहित्यकार ने बिखरे बालों को अपनी अंगुलियों में फंसाते हुए नैनों में नैन फंसाने की कोशिश करते हुए कहा।


"तुम जैसों को तो ऐसी चाहिए जो ज़रूरत और वक़्त के मुताबिक़ सहेली, मां या बहिन सी भी बन सके या बेड-पार्टनर!" शरीर को आगे थोड़ा झुका कर उसने हाथों की अंगुलियां साहित्यकार की अंगुलियों में फंसा कर कहा- "बीवी की ज़रूरत नहीं! न ही तुम जैसों के साथ बीवी ख़ुश रह सकती है!"


"तुम्हें कैसे मर्द की ज़रूरत थी?" वेलेंटाइन उपहार को टेबल से खिसकाते हुए साहित्यकार ने पूछा और अपनी डायरी को कुछ शब्द पिला दिए।


"चला ली कलम!" उसके हाथ से कलम छीन कर हाथ पकड़ कर वह उसे बाहर ले गई और बोली- "ये मत पूछो कि मुझे कैसा मर्द चाहिए! मर्दों ने ही तो मुझे मर्द सा बना दिया! आज तुम मेरे वेलेंटाइन हो! बोलो किसी पोज़ में फोटो ही उतारोगे या कपड़े!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 9:53am

इस गंभीर पाठन के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on February 14, 2018 at 9:46am

आपकी लघुकथा आज फिर से पढ़ी... और हैरान भी हूँ ... बहुत ही सशक्त लघुकथा है। फिर से बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2018 at 9:06am

मेरी इस रचना पर समय देकर भाव और संदेश पर अपने विचार साझा करते हुए अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा साहिब। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2018 at 3:25pm
आदरणीय शेख शहजाद जी कटाक्ष करती हुयी शानदार लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 1:30pm

सुन्दर कटाक्ष, सुन्दर लेखन। आपको दिल से बधाई, इस अच्छी लघुकथा के लिए, आदरणीय भाई शेख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 5:32pm

जनाब शेख शहज़ाद साहिब , वेस्टर्न संस्कृति को आईना दिखती सुंदर
लघुकथा हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ|

Comment by Mohammed Arif on February 11, 2018 at 7:42am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                   बहुत ही सशक्त और कटाक्षपूर्ण लघुकथा । हार्दिक बधाई  स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
7 minutes ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service