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कविता--बहुत बेईमानी लगता है

आत्मा के
कल-कल छल-छल जल में
शब्दों की ध्वनियाँ तैरती है
देर तक गूँजती रहती है
तब बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के मुहाने की छाती पर
नंगे पैर खड़े होकर चलना
समझौतों के ताबीज पहनना
मक्कारी का मंत्र जाप करना
रोज़ आत्मा का गला घोटना
खंडित-खंडित होकर
अखंडित समाधि बनना
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के रिश्तों में जीना
जहाँ रिश्तों में डाका पड़ा है
ख़ूनी हाथ अट्टहास करते हैं
अकेलेपन की साँसें थम गई है
रातरानी को लकवा हो गया है
गुलाब सारे लहू पी रहे हैं
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के पर्यावास पर चर्चा करना
आँगन के बरगद की खोह में
ज़हरीले नागों ने बना ली है बस्ती
पक्षियों के कलरव की हो गई है हत्या
तोता-मैना , कबूतर के फेफड़ों में
जमा हो गई है कार्बन
किंगफिशर नज़र नहीं आते
कठफोड़वा को नहीं मिलता ठूँठ
मोबाइल टॉवर के ऊँचे मचान पर
चिड़िया करती है नाकाम कोशिश
हाई रेडिएशन ने कैंसर को ज़िंदा कर दिया है
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग की कविता को पढ़ना-सुनना
जहाँ कविता की नदी सूखकर रेत हो गई है
गर्म रेत पर सौंदर्यानुभूति तड़पती है
भावों-विचारों को चक्कर आते हैं
प्रतीकों और बिम्बों के पैर लड़खड़ाते हैं
कैनवास की हड्डियाँ निकल गई हो
बहुत बेईमानी लगता है
इस युग के चरित्र को बेशर्म आँखों से देखना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 8:17am

दाद-ओ-तहसीन का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । लेखन सार्थक हुआ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 11, 2018 at 8:36pm

आ. भाई आरिफ जी, सुंदर कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on February 11, 2018 at 7:40am

दाद-ओ-तहसीन का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय बृजेश कुमार जी । लेखन सार्थ क हो गया ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 9, 2018 at 6:02pm

बहुतखूब कविता कही आदरणीय आरिफ जी..भावों का बेहतरीन चित्रण..बधाई

Comment by Mohammed Arif on February 8, 2018 at 5:43pm

रचना पर अपनी निरपेक्ष टिप्पणी देने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी ।

Comment by somesh kumar on February 8, 2018 at 10:09am

नि शब्द हूँ इस भावना से 

कविता करना जानता नहीं वैसे भी कविता एक बनावट का आभास कराती है सच्ची भावना दिल को छू खुद कविता हो जाती है 

तहे दिल से इस भावभीन रचना पर मुबारकां

Comment by Mohammed Arif on February 7, 2018 at 8:39pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।

Comment by Mohammed Arif on February 7, 2018 at 8:38pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

Comment by Mohammed Arif on February 7, 2018 at 8:37pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब । 

Comment by SALIM RAZA REWA on February 7, 2018 at 5:50pm
आरिफ साहब सुंदर कविता के लिए मुबारक़बाद क़ुबूल करें,
बांकी कविता के गुनी जन अपनी राय देंगे.

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