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एक ग़ज़ल पूरी हुई 14 शेर के साथ ।

मुझको भी उसके पास बुलाया न जाएगा ।
मुमकिन है दौरे इश्क़ बढाया न जाएगा ।।

चेहरे से वो नकाब भी हटती नही है अब।
किसने कहा गुलाब छुपाया न जाएगा ।।

दिल मे ठहर गया है मेरे इस तरह से वो।

उसका वजूद दिल से मिटाया न जाएगा ।।

यूँ ही तमाम उम्र निभाता रहा हूँ मैं ।
अब साथ जिंदगी का निभाया न जाएगा ।।

बन ठन के मेरे दर पे वो आने लगे हैं खूब ।
मुझसे मेरा उसूल बचाया न जाएगा ।।

यूँ चाहता रहा हूँ उसे बेपनाह मैं।
फिर भी यकीन उसको दिलाया न जाएगा ।।

अब थक चुका हूँ मौत मिरे आस पास है ।
मुझसे मेरा नसीब मिटाया न जाएगा ।।

हाला कि खत में बात न करने की बात थी ।
ज़ज़्बात पर वो जुल्म भी ढाया न जाएगा ।।

रोयेगी तेरी रूह मुहब्बत में एक दिन ।
तुझसे मेरा कफ़न भी हटाया न जाएगा ।।

ऐलान कर रहे जो मिरे जश्ने मौत का ।
सबको खबर है जश्न मनाया न जाएगा ।।

पूछो न हम से हाल जुदाई के बाद का ।
कोई भी दिलका जख्म दिखाया न जाएगा।।

कैसे भुला दूँ तुझको बता तू ही हमनशीं ।
मुझ से तो तेरा ख़त भी जलाया न जाएगा ।।

मैं हुस्न का हूँ एक जमाने से मुन्तजिर ।
शायद मुझे वो चाँद दिखाया न जाएगा ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2017 at 1:14pm

आ0 कबीर सर सादर आभार के साथ नमन । आपकी इस्लाह सर मत्थे पर । अभी ठीक करता हूँ ।

Comment by Samar kabeer on December 26, 2017 at 9:30pm

मतला और हुस्न-ए-मतला में ताल मेल नहीं है,अगर आप संतुष्ट हैं तो कोई बात नहीं ।

'कैसे भुला दूँ तुमको बता तू ही हमनशीं'

'तुमको' के साथ 'बता' और 'तू', ये शुतरगुर्बा नहीं तो फिर क्या है भाई?

इस मिसरे में 'तुमको' की जगह "तुझको" कर लेंगे तो ऐब निकल जाएगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2017 at 6:50pm

आ कबीर सर सादर नमन । मुझको भी उसके पास बुलाया न जाएगा इसी वजह से इश्क़ के दौर पर पाबंदी लगेगी   । यही कहना चाहता हूँ । दूसरी पंक्ति पहली वाली पंक्ति की बात को सम्बद्ध कर रही है । 

ऐसा कोई गुनाह नहीं होने पायेगा जिससे इस चमन से आपका साया चला जाये। 

 यहां भी पहली पंक्ति से दूसरी पंक्ति सम्बद्ध नजर आती है । थोड़ा सा रब्त के सम्बंध में और स्पष्ट करने की क्रिपा करें। 

  1.     सुतुर गुरबा वाला शेर भी सर जी थोड़ा सा स्पष्ट कर दीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 8:47am

आद0 नवीन जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास। हार्दिक बधाई स्वीकारें। आली जनाब समर साहब के बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर

Comment by Samar kabeer on December 24, 2017 at 9:30pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला और हुस्न-ए- के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

पहले शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

'कैसे भुलादूँ तुमको बता तू ही हमनशीं'

इस मिसरे में शुतरगुर्बा दोष है ।

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