For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया (ग़ज़ल 'राज')

२१२२ २१२२ २१२

थोड़े  थोड़े में गुजारा हो गया 
मुश्तभर किस्सा हमारा हो गया 


कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र    

ख़्वाब  अपना  इक सितारा हो गया

 

चाँद की चाहत कभी हमने न की 
एक जुगनू ही सहारा हो गया 

 

छटपटाती देख बेघर सीपियाँ 

दिल समन्दर का किनारा हो गया

 

बेवफा इस जिन्दगी ने फिर ठगा        

इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया

 

 बातों बातों हार बैठे दिल को हम  

 बेखुदी में बस  ख़सारा हो गया

 

सब गुलों को है खटकता वो गुलाब

जो सुखन में इस्तआरा हो गया 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:36am

मोहतरम जनाब  तस्दीक जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया | तकाबुले रदीफैन जुज्वी है जो एक आध शेर में मान्य होता है | इससे में  तनाफुर का कुछ नहीं हो सकता इससे ,जिससे किससे  में स और से को अलग कर  ही नहीं सकते और ये शब्द मिसरे की डीमांड है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:32am

आद० सुरेन्द्र नाथ भैया  ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हो गया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:31am

आद० अजय तिवारी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया 



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:30am

आद० बृजेश कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 16, 2017 at 11:15am
मुह्तरमाराजेश कुमारी साहिबा , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
शेर 5 एब-तक़ाबुले -रदिफेन और एब -तनाफुर ( इस से ) हो रहा है , देख लीजिएगा
Comment by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 4:15am
कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र
ख़्वाब अपना इक सितारा हो गया
वआह वाह
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया ख्यालों को बुनती ग़ज़ल कही आपने, बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by Ajay Tiwari on November 15, 2017 at 1:45pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है.हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 12:57pm
बहुत सुन्दर आदरणीया बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2017 at 12:04pm

आद० तेजवीर सिंह जी, ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 14, 2017 at 12:03pm

आद० डॉ० आसुतोष मिश्रा जी,आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार .ख़सारा- नुक्सान/हानि   इस्तआरा -उपमा/ रूपक

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
1 hour ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service