For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल
जीवन का मक़सद देखेगी
दुनिया तेरा कद देखेगी

खादी पहने इन गुंडों को
कब तक ये संसद देखेगी

फिरकापरस्ती बदनज़रों से
मस्जिद का गुम्बद देखेगी

सूखी धरती उम्मीदों से
बारिश की आमद देखेगी

तू हो चाहे जितना अच्छा
दुनिया तुझको बद देखेगी

दुनिया तेरी सब यादों को
मुझसे ही बरामद देखेगी

खून जवानों का यूँ बहते
कब तक ये सरहद देखेगी

गाँव अगर जाऊँ तो आँख
फिर सूखा बरगद देखेगी

करने को दीदार'अहद'का
वो मुड़कर शायद देखेगी!


अमित "अहद "
गाँव +पोस्ट -मुजफ्फराबाद
जिला -सहारनपुर
फोन -09675150538

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AMIT on September 27, 2017 at 10:22pm
बहुत बहुत शुक्रिया सर !
Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 9:41pm
'मुझ से ही बरामद देखेगी'
इस मिसरे में 'बरामद'ग़लत है,सही शब्द है "बरआमद"इसलिये इस मिसरे को यूँ कीजिये बह्र में हो जायेगा :-
'मुझसे बर आमद देखेगी'

'गाँव अगर जाऊँ तो आँख'
इस मिसरे को यूँ कर लें,बह्र में हो जायेगा :-
'गाँव गया तो ये बीनाई'
Comment by AMIT on September 27, 2017 at 9:00pm
सभी का तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ !
समर सर जो मिसरे बहर में नहीं हैं प्लीज़ उन्हें बहर में कर दीजिए बहुत मेहरबानी होगी !
Comment by Mahendra Kumar on September 27, 2017 at 8:00pm

अच्छी ग़ज़ल है आ. अमित जी. गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by Hariom Shrivastava on September 27, 2017 at 6:06pm
वाहह,वाहहहह,लाजवाब गजल।सभी अशआर बेहतरीन।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 4:45pm

आ. अमित जी,
मंच पर स्वागत है. अच्छी ग़ज़ल हुई है..
समर सर की बातों पर ध्यान दीजियेगा.
सादर

Comment by Ravi Shukla on September 27, 2017 at 2:29pm
आदरणीय अमित साहब वह भी ऊपर आपकी पहली ग़ज़ल से रूबरू हो रहे हैं अच्छी ग़ज़ल कही आपने बरामद वाले मिसरे पर हम ही अटके थे नजर सानी कर लीजिएगा इस पर कृपया मंच पर निरंतरता बनाए रखें
Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 11:57am
जनाब अमित'अहद'साहिब आदाब,ओबीओ पर आपका स्वागत है,आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा ।
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मुझसे ही बरामद देखेगी'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।
'गाँव अगर जाऊँ तो आँख'
ये मिसरा भी बह्र में नहीं है,'आँख'को "आँखें"करने से मिसरा बह्र में हो जायेगा लेकिन सानी मिसरे में रदीफ़ 'देखेगी'की वजह से "आँखें"नहीं कर सकते,एक वचन और बहुवचन का चक्कर है, देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
38 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service