For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घनाक्षरी (कवित्त) लिखे के प्रयास भोजपुरी में कईले बानी, रउआ लोगन से निवेदन बा कि आपन विचार से अवगत कराई सभे कि हमार प्रयास केतना सफल बा |


 

हां में हां मिलावे जेहि, बतिया बनावे जेहि,

विश्वास ओकरा पर, कबहू करिहा |

 

आपन जतावे जेहि, बहुते लगावे जेहि,

वोकरा से कुछऊ , जिन आस करिहा | 


 

मरदा से जादे जहाँ, मेहरी बोलत होखे,

वोह ठाही कबहू न, परवास करिहा |


नियालय देवालय, दूनो एक जईसन,

ठाढ़ होके उहाँ जनि, बकवास करिहा ||

 

गणेश जी "बागी"

हमार पिछुलका पोस्ट => कुहकत बाड़ी "माई भोजपुरी"

Views: 2620

Replies to This Discussion

Ati sundar Bagi sahab. Bhojpuri me ek or yogdan.
बहुत बहुत धन्यवाद आनंद भाई |
आदरणीया वंदना जी, आप जैसी फनकारा की सराहना बहुत मायने रखती है, बहुत बहुत धन्यवाद |
Kavita niman baa, lekin vichar me tani sanshodhan k gunjaish baa... 'mehari' kauno alaga jeev-jeevanu naikhe... jaise mard vaisahin mehraru... chal-andaz kehu k gadbad ho sakela, mard hokhe va mehraru! Rachanatmak sakriyata k khatir BADHAI...

आदरणीय श्याम बिहारी भईया, राउर कहल सही बा , बाकिर लेखक जवन अनुभव करेला उ लिखेला, इ संभव बा की हर जगह लागू ना होखे, इ त लेखक के व्यक्तिगत अनुभव बा, सबकर सहमति जरुरी नईखे | रचना के सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |

 

वाह बागी भैया वाह!!!

 

 मरदा से जादे जहाँ, मेहरी बोलत होखे,

वोह ठाही कबहू न, परवास करिहा |

 

घनाक्षरी/कवित्त का आनंद तो सुनने में ही आता है| अगर हो सके तो इसे रिकॉर्ड करके लगाइए ....कसम से मज़ा आ जायेगा|

राणा भाई आपके सुझाव के अनुसार इस घनाक्षरी को रिकॉर्ड कर ऊपर में प्लेयर लगा दिया हूँ , जरा सुनिए और बताइए कैसा लगा |
jai ho jandar sandar manmokat lajabab fir se jai ho

बातऽहि ले बात कहि बात जउन बनि गइल... असलि जे बात हऽ ई बढ़ि गइल बतिया..
कहीं भाई बाग़ी आजु, कहीं चाहें चुपि जाईं.. लुब्बेलुबाब हजे ऊहे रही बतिया.. ...   का? .. आकि, जवन हमनी के पुरनिया कहि गईल बाड़े.. ऊहे सत्त.. ऊहे सनातन.. आ ओही के खूँटा.. आ ओह खूँटा के जमगर ठोंक..

राउर बात आ कहे के ढंग-लूर बहुते मजगर लागल बा. एह पवित्र कोशिश खातिर रउआ बधाई... आ सुभे-सुभ.

//मरदा से जादे जहाँ, मेहरी बोलत होखे,
वोह ठाही कबहू न, परवास करिहा |//
ई पंक्ति के तासीर ऊ एकदम नइखे जवन एक झटका में बुझाता.. भा लउकऽता.

अइसना इशारा आ कथ्य के सोरि (जड़) कबीरबाबा, तुलसीबा, रैदासबाबा (रविदास) आ गुरुनानकदासजी अस समाजसुधारकन के कहलकी बतियन से खाद-पानी पावेला..
एक हालि फेरु से बहुत-बहुत बधाई.

आहा ! सौरभ भईया, अइसन प्रतिक्रिया पाके केकर मन दोहर ना होई, साच कही त मन अघा गइल, रउआ  रचना के आत्मा मे घुस के आपन टिप्पणी दिहले बानी, हमनी  के बहुत सौभाग्यशाली बानी जा जे रौआ नियर विद्वान हमनी के बीच बानी, बहुत बहुत आभारी बानी हम रा उ र  |
Badhiya prayog ba. Gramy prachalit kahawat k le k likhal gail ba. Nik lagal.
बहुत बहुत धन्यवाद आशीष भाई |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
3 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
6 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service