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" सहिष्णुता-असहिष्णुता " - [ लघुकथा ] - 34 _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सर्दी क्या बढ़ी, उनकी 'सहिष्णुता' पर फिर चर्चा होने लगी। सहिष्णुता तो गर्मी और बारिश के मौसम वाले हालात की तरह अपना नियंत्रण खो रही थी। हीटर ने पंखे की सहिष्णुता की बात करते हुए कहा- "अब कर ले तू आराम, लो आ गई अब मेरी बारी ! अब मुझे ही जलना है सुबहो-शाम , रसोई के अलावा कई कमरों में अब मेरा ही है काम !"

पंखे ने अपने चक्कर यथावत जारी रखते हुए कहा- " क्यों मज़ाक करते हो, अनजाने से बनते हो ! मच्छर भगाने, धुले कपड़े सुखाने सर्दियों में मेरा है भारी काम, तुम्हें नहीं मालूम मीटर होता कितना हैरान ? मेरी 'सहिष्णुता' का मत उड़ाओ मज़ाक ! मिलता मुझे क्या आराम ख़ाक ! मैं भी तेरी ही तरह गरम और ठण्डा होता रहता हूँ, कंडेन्सर, क्वाइल मेरे यूँ जल जाते हैं जैसे सहिष्णु भारतीय बुद्धिजीवी का दिल ! अरे ,मीटर से भी तो पूछो कि 'चीटर' कैसे करते रहते उसे घायल , देशद्रोहियों की तरह !

पंखे और हीटर की बातचीत सुनकर दूर से ही मीटर बोला- " सर्दी बड़ी बेदर्दी, हीटर से होती मुझे बहुत सरदर्दी। मुझे बहुत तेज़ दौड़ना होता है। देश के नागरिक की तरह मेरी 'सहिष्णुता' का इम्तेहान होता है, कोई रीडिंग घटाने के लिए तकनीकी कलाकारी करता है, तो कोई बिलकुल से बंद कर देने की साजिश ! ठीक वैसा, जैसा कि देश में साम्प्रदायिक सद्भाव के साथ होता है !"

तभी एक ज़ोर का झटका मीटर के गतिमान चक्र को लगा और मीटर कहने लगा- "सच मेरे यार है, इधर उपभोक्ता, तो उधर बिज़ली विभाग और सरकार लाचार है ! उनकी 'सहिष्णुता' को मैं भली-भाँति जानता हूँ ! हमारे रूप और तकनीक को बार-बार भले ही बदला जाये, असहिष्णु उपभोक्ता क्या क्या करने को विवश हो जाता है , ये केवल मैं जानता हूँ, तुम लोग नहीं !"

तभी बिज़ली ने दख़ल करते हुए कहा- "पंखों, हीटरों और मीटरों जैसों की सहिष्णुता-असहिष्णुता को मैं जानती हूँ और उपभोक्ता व सरकार की भी ! किसी ने मेरे बारे में सोचा कभी ? मुझे पैदा किया जाता है, ख़रीदा और बेचा जाता है या बरबाद किया जाता है औरत की तरह । मुझे कोई 'सहिष्णु' कहे या 'असहिष्णु' , उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों को छोड़ कर ज़रा ग़रीबों की सहिष्णुता पर ग़ौर करो, जिन तक मैं चाह कर भी पहुँच ही नहीं पाती !

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:42am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 20, 2015 at 4:48pm
हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया जानकी वाही जी।
Comment by Janki wahie on November 20, 2015 at 11:41am
वाह व्यंग से भरी उत्तम कथा।बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 19, 2015 at 11:38pm
रचना पर उपस्थित हो कर हौसला अफज़ाई करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी, आदरणीय सतविंदर कुमार जी, आदरणीया राहिला जी,आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी, आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 19, 2015 at 10:31am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!एक तीर से कितने शिकार कर डाले!लगे हाथ इनवर्टर और जैनरेटर को भी शामिल कर लेते क्योंकि उत्तर प्रदेश में ये भी  खूब सक्रिय हैं!सुंदर प्रस्तुति!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 18, 2015 at 11:16pm
बेहद तीखा कटाक्ष एवम् व्यंग्य वर्तमान हालात पर।प्रतीकों का उम्दा इस्तेमाल।हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी
Comment by pratibha pande on November 18, 2015 at 10:39pm

आजकल सारे चैनल ,अखबारों में चल रही बहस पर अच्छा कटाक्ष किया आपने आदरणीय,  बधाई आपको इस रचना पर 

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 18, 2015 at 10:20pm

आदरणीय उस्मानी सर वर्तमान हालात पर अत्यंत तीखा व्यंग्य है। पढ़कर बहुत अच्छा लगा। बधाइयाँ।।

Comment by Rahila on November 18, 2015 at 4:43pm
बहुत खूब आदरणीय उस्मानी जी बेहद बेहतरीन रचना रच डाली आपने तो । बहुत बधाई आपको । सादर ।

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