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ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..
खुबसूरत मतला |
तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..
अरे वाह , इस शे'र में तो मेरा भी नाम है , धन्यवाद आचार्य जी |
सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..
बही बारिश में निज मर्याद लज्जा शर्म तज नदिया.
'सलिल' पर्वत पिता ने तजा, जल मैला कराया है..
बहुत खूब एक शे'र में दो दो मकता, बढ़िया प्रयोग, तरही का मिसरा भी दो जगह प्रयोग किया गया है, बहुत खूब ,आचार्य जी खुबसूरत मुक्तिका हेतु बधाई स्वीकार कीजिये |
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है.
समझदारों की बेकदरी ने सिर नीचा कराया है..
बहुत ही खुबसूरत रचना आचार्य जी....बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने...
'लीजिये अब तो कोई शिकायत नहीं' के अंदाज़ में खूबसूरत ग़ज़ल।
तिलकधारी था, योगीराज बागी दानी भी राणा.
हरा दुश्मन को, नीचा शत्रु का झंडा कराया है..
में तो आपने यहॉं उपस्थित दल को ही बॉंध दिया।
सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी 'सलिल' होता-
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है..
khubsurat lajabab
सियासत में वफ़ा का कुछ नहीं मानी सलिल होता,
मिली कुर्सी तो पद-मद ने नयन अंधा कराया है।
ख़ूबसूरत शे'र आदरणीय सलिल जी को बहुत बहुत बधाई।
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