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भगवान तू है कहां (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मैं धर्म, धार्मिक ग्रंथों और प्रवचनों की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चे सुख की तलाश करता हुआ ईश्वर को तलाश रहा था!" अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए एक आदमी ने अपने साथियों से कहा।

दूसरे ने अपने अनुभव सुनाते हुए कहा- "मैं विज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी यंत्र-तंत्र की सीढ़ियों पर चढ़कर सच्चा सुख तलाशते हुए भगवान को चुनौती देकर विज्ञान को ही भगवान समझने लगा!"

तीसरा अपने दोनों साथियों से बोला- "मुझे जब जैसा मौक़ा मिला उसी अनुसार सीढ़ियों को चुनता रहा धन को ही भगवान समझ कर। कभी धर्म की, कभी विज्ञान और तकनीक की, तो कभी भ्रष्टाचार की सीढ़ियों पर चढ़कर धन-भगवान में ही सच्चे सुख को तलाशता रहा!"

दार्शनिक विचारों वाले चौथे साथी ने कहा- "भगवान आख़िर है कहाँ? सच्चे सुख में, धार्मिक ग्रंथों में, विज्ञान में या धन-दौलत में? हम यूँ ही परेशान हैं उन्हें समझने और ढूंढने के लिए ! अरे, भौतिकतावाद की दीवार के पार झांक लो या ये दीवार ही तोड़ डालो !"

अब सभी दुखी अपने-अपने गिरेबान में झांकने लगे।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:28am
मेरी इस लघुकथा के अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहब, तेजवीर सिंह जी, डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, मिथिलेश वामनकर जी, तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब और जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2017 at 12:12pm

aआदरणीय शेख उस्मानी जी ..गोविन्द का रास्ता बताती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on February 6, 2017 at 8:19pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी  जी।बेहतरीन प्रस्तुति।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 6:20pm

आदरणीय उस्मानी जी, बढ़िया प्रस्तुति, बधाई. सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 5, 2017 at 9:43pm

मुहतरम जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी    साहिब  ,अच्छी लघु कथा हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -

Comment by Mohammed Arif on February 5, 2017 at 6:49pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, सच है अगर उसे पाना है तो भौतिकता से ऊपर उठना होगा । मुबारक़बाद क़ुबूल करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2017 at 8:03pm
त्वरित प्रतिक्रिया व हौसला अफ़जा़ई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Samar kabeer on February 4, 2017 at 7:18pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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