For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 212,
आइए कुछ तो सुनाते जाइए।
हाल अपना भी बताते जाइए। 1
-----
लोग तो बातें बनायेगें बहुत,
झूठ पर भी मुस्कुराते जाइए। 2
-----
आप अपनी बात पर कायम रहें,
निर्धनो के घर बसाते जाइए। 3
-----
आप अनदेखा न यूँ हमको करें,
रूठ बैठा दिल मनाते जाइए। 4
-----
डालकर हम पर नजर बस इक जरा,
प्यार का अरमां सजाते जाइए। 5
-----
आपके सपने हमारे नींद में,
होश खोए है जगाते जाइए। 6
------
ये सँवरना आपके ही है लिए,
आँख से काजल चुराते जाइए। 7
------
रस्म दुनिया की अगर जो है यही,
दुश्मनी कर के निभाते जाइए। 8
------
दर्द देकर ही मिले मुझको ख़ुशी,
पास आकर के सताते जाइए। 9
--------
भूलकर के गम जमाने का कभी,
गीत मेरे गुनगुनाते जाइए। 10
अप्रकाशित एवं मौलिक रचना।

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 3:56am
आदरणीय जनाब सुनील प्रसाद जी सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल पर दाद के साथ बधाई निवेदित है। शेष उस्ताद समर जी के बातो का ध्यान दीजियेगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 1:15am
आदरणीय सुनील जी, इस प्रस्तुति हेतु बधाई।
"कर के" के प्रयोग पर पुनर्विचार कीजियेगा।
भूल कर क्या होगा
भूल के क्या होगा
बाकी उस्ताद जी कह ही चुके हैं।

सादर
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 5, 2016 at 10:10pm
शुक्रिया जनाब बासुदेव जी हौसला अफजाई के वास्ते।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 5, 2016 at 6:52pm
आ0 सुनील प्रसादजी उम्दा ग़ज़ल हुई है। दाद के साथ मुबारकबाद।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 4, 2016 at 10:28pm
आदरणीय समीर कबीर जी,मोहतरम जनाब तस्दीकतस्दीक साहिब बजा फ़रमाया है जिसके लिए आपको तहेदिल से शुक्रिया।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 4, 2016 at 9:59pm

जनाब सुनील कुमार साहिब , सुन्दर ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
मुहतरम समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान ज़रूर दें --

Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 8:21pm
जनाब सुनील प्रसाद जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे,आठवें और नवें शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं हैं,आप उन्हें इस तरह कर सकते हैं:-
4थे का ऊला,"आप अनदेखा न यूँ हमको करें"
8वें का ऊला,"रस्म दुनिया की अगर है तो यही",'रस्म'शब्द स्त्रीलिंग है ।
9वें का ऊला"दर्द मुझको दे मिले जो भी ख़ुशी"
बाक़ी शुभ शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service