उस विशेष विद्यालय के आखिरी घंटे में शिक्षक ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए, गिने-चुने विद्यार्थियों से कहा, "काफिरों को खत्म करना ही हमारा मक़सद है, इसके लिये अपनी ज़िन्दगी तक कुर्बान कर देनी पड़े तो पड़े, और कोई भी आदमी या औरत, चाहे वह हमारी ही कौम के ही क्यों न हों, अगर काफिरों का साथ दे रहे हैं तो उन्हें भी खत्म कर देना| ज़्यादा सोचना मत, वरना जन्नत के दरवाज़े तुम्हारे लिये बंद हो सकते हैं, यही हमारे मज़हब की किताबों में लिखा है|"
"लेकिन हमारी किताबों में तो क़ुरबानी पर ज़ोर दिया है, दूसरों का खून बहाने के लिये कहाँ लिखा है?" एक विद्यार्थी ने उत्सुक होकर पूछा|
"लिखा है... बहुत जगहों पर, सात सौ से ज़्यादा बार हर किताब पढ़ चुका हूँ, हर एक हर्फ़ को देख पाता हूँ|"
"लेकिन यह सब तो काफिरों की किताबों में भी है, खून बहाने का काम वक्त आने पर अपने खानदान और कौम की सलामती के लिए करना चाहिए| चाहे हमारी हो या उनकी, सब किताबें एक ही बात तो कहती हैं..."
"यह सब तूने कहाँ पढ़ लिया?"
वह विद्यार्थी सिर झुकाये चुपचाप खड़ा रहा, उसके चेहरे पर असंतुष्टि के भाव स्पष्ट थे|
"चल छोड़ सब बातें..." अब उस शिक्षक की आवाज़ में नरमी आ गयी, "तू एक काम कर, अपनी कौम को आगे बढ़ा, घर बसा और सुन, शादीयां काफिरों की बेटियों से ही करना..."
"लेकिन वो तो काफिर हैं, उनकी बेटियों से हम पाक लोग शादी कैसे कर सकते हैं?"
शिक्षक उसके इस सवाल पर चुप रहा, उसके दिमाग़ में यह विचार आ रहा था कि “है तो नहीं लेकिन फिर भी कल मज़हबी किताबों में यह लिखा हुआ बताना है कि, ‘उनके लिखे पर सवाल उठाने वाला नामर्द करार दे दिया जायेगा’|”
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
यह तो आत्ममंथन से ही दूर हो पायेगी | बहुत ही गंभीर बात कही है अपने आदरणीय चंद्रेश भैया | बहुत बहुत बधाई |
लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी उत्साह बढाती अमूल्य टिप्पणी हेतु सादर आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सर|
एक तार्किक प्रस्तुति केलिए हार्दिक धनय्वाद और शुभकामनाएँ आदरणीय चन्द्रेश जी.
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, आदरणीया राहिला जी, आदरणीय राजेंद्र गौड़ भाई जी, आदरणीय अशोक कुमार जी, आदरणीया राजेश कुमार जी, आप सभी का तहे दिल से सादर धन्यवाद्, आपको लघुकथा का प्रयास ठीक लगा, और अपनी टिप्पणी द्वारा आप सभी ने मेरा उत्साह वर्धन किया|
बहुत अच्छी सीख ,प्रेरणा देती हुई लघु कथा कहते हैं न जहर को जहर मारता है आज के समझदार युवा ही अपने धर्म ग्रंथों के बारे में गलत बात का प्रचार करने वालों की आँखों में आँखें डाल कर बात करेंगे आज इसकी जरूरत भी है | हार्दिक बधाई आपको चन्द्रेश कुमार जी
वाह ! सुंदर लघुकथा. सही को सही और गलत को गलत कहने वालों को आगे आने की जरूरत है. सादर.
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