For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा बीसवीं सदी का पुरातन स्नेह

यह इक्कीसवीं सदी के तुम्हारे

कभी न बदलने के वायदे

स्नेह की किरणों के पुल पर 

एक संग उठते-गिरते-चलते

यह संवेदनशील हृदय कभी

तुम्हारा संबल बना था

चाँदनी-सलिल-सा तरल स्नेह

जीवन-यथार्थ का पिघला हुआ कुंदन ...

कहती थी

इसकी अमोल रत्न-सी आभा

थी तुम्हारी रातों में तेजोमय प्रेरणा

या असंतोष की धूप की छटपटाहटों में

ज्यों लहराई सनातन सत्यों की छाया

सोचता हूँ ...

चिंताग्रस्त, पर ओंठों पर मुसकान लिए

अभी भी आऊँ यदि द्वार तुम्हारे

लिए हाथों में रजनी-गंधा

या कोई लहराती नवीन पुष्पलता

खूबसूरत अजीब नई खुशियों में कल

बीते ’कल’ के टुकड़ों को पहचानोगी क्या?

कल्पनाशील हूँ मैं ...

क्रुद्ध और पाषाण और

अब बबूल-सा कंटीला हुआ

तुम्हारा यह इक्कीसवीं सदी का

दुखांत स्नेह

इस पर भी मेरा सहज भोला विश्वास ... 

मेरी बीसवीं सदी की न मिटती मूर्खता

और सोचता हूँ ... 

दम तोड़्ती साँसों में कैसी है यह

नित्य मार खाती-सी ज़िन्दगी

फफक-फफक ढुलते अश्रुजल

सीने में आँच भरी वेदना

पर तुम्हारे प्रति अभी भी है

हृदय-प्राण संवेदना

ज़िन्दगी तू अभी किवाड़ बंद न कर *

मुझको देना है मित्र को अभी 

हृदय-दान

             ---------

-- विजय निकोर

मौलिक व अप्रकाशित रचना

* यह पंक्ति प्रिय अमृता प्रीतम जी की ज़मीन से है ...
   सन १९६३ में यह शब्द दिल्ली में उनके घर उनके मुख से सुने थे

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 13, 2016 at 3:53pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on July 13, 2016 at 11:28am

आपका  हार्दिक आभार, आदरणीय  indravidyavachaspatitiwari जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2016 at 10:27am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , दिलकश हृदय दान के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by vijay nikore on July 13, 2016 at 7:09am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अशोक जी।

Comment by indravidyavachaspatitiwari on July 12, 2016 at 4:24pm

 हृदय दान के लिए जो सहानुभूति चाहिए उससे पूरा न्याय किया गया है। 

Comment by vijay nikore on July 12, 2016 at 6:43am

आदरणीय समर कबीर जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2016 at 12:04pm

आदरणीय विजय निकोर साहब सादर प्रणाम, बहुत सुंदर दिल तक पहुँचती इस अभिव्यक्ति के लिए. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 10, 2016 at 11:23am
जनाब विजय निकोर जी आदाब,बहुत बढ़िया कविता लिखी आपने,अमृता प्रीतम जी की पंक्ति को बहुत अच्छे ढंग से फेलाया है आपने,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
22 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service