For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नहीं आती मुझे अब नींद जीभर के पिला साकी

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

नहीं आती मुझे अब नींद जीभर के पिला साकी

निशा गहरी डगर सूनी कहाँ जाएँ बता साकी

मुहब्बत मेरी पथराई जमाने भर की ठोकर खा 

अहिल्‍या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी

मैं भंवरों सा  भटकता ही रहा ताउम्र बागों में

कमल से अपने इस दिल में तू ले मुझको छुपा साकी

 ये मंजिल आखिरी मेरी ये पथ भी आखिरी मेरा

मेरी नजरों से तू नजरें घड़ी भर तो मिला साकी

जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं वो दरिया हूँ

मुझे आगोश में ले अपने अब सागर बना साकी

ये रिश्ते मय से थे  कडवे मुझे जो  लगते थे अपने

तेरी सुहबत में आकर ये भरम  टूटा मेरा साकी

न मय की है न सागर की न मैखानो की ख्वाहिश है

तेरी बांहों में दम निकले यही बस इल्तिजा साकी 

G6 मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2017 at 5:17pm

आ. डॉ साहब,
अच्छा प्रयास हुआ है ग़ज़ल का...
थोडा फाइन ट्यून और  करते तो बेहतर होता ..जैसे ठोकर खा.... आदेशात्मक लग रहा है ...
ज़माने भर की ठोकर खा के पथराया है दिल मेरा ..
.
जो सीना चीर पाहन का निकलता मैं वो दरिया हूँ...
मैं दरिया हूँ जो सीना चीर के पत्थर का निकला हूँ ...
इसी तरह अन्य मिसरे फिर संयोजित करने का प्रयत्न करें ..
सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 12:47pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे  इस कामना और रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 12:46pm

आदरणीय रवि सर ..क्षमा प्रार्थी हूँ .इतने  बिलम्ब से जवाब देने के लिए .. आप जैसे जानकारों के मार्गदर्शन से ही सतत सीखने का मौका मिलता है आपका सुझाव शानदार है ..मुझे दूसरा बिकल्प नहीं सूझ रहा है ..आपकी अनुमति हो तो ये पंक्तियाँ मैं शामिल कर लूं / क्षमा सहित निवेदन ....ऐसा आप क्यूँ लिख रहे हैं ..मेरी कोई भी गलती हो आप मुझे परामर्श दें ..ताकी मैं पहले से बेहतर लिख सकूं ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया , आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद ...सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 12:39pm

आदरणीय पंकज जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें /

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 12:37pm

आदरणीय शुशील जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे उत्साह मिला है स्नेह यूं ही बनाए रखे सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 12:35pm

भाई मनोज जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करिये सादर धन्यवाद के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:19pm

आदरनीय आशुतोष भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइया आपको ।

Comment by Ravi Shukla on July 6, 2016 at 12:34pm

आदरणीय आशुतोष  जी  इस खूबसूरत गजल के लिए बहुत मुबारकबाद कुबूलें. सादर.

क्षमा सहित निवेदन है कि दूसरे शेर के सानी मिसरे मे चेतनता शब्‍द बह्र्र को पूरा करने के लिये जड़ता के समान चेतनता का प्रयोग किया गया लगा हमें । जबकि इस के लिये और भी बेहतर शब्‍द चयन कर सकते है आप  जैसे त्‍वरित मिसरे केे तौर पर हम कह सकते है कि 

अहिल्‍या की तरह मेरी कभी जड़ता मिटा साकी  जरूरी नहीं कि ये ही हो । कथ्‍य आपका है आप और बेहतर समझ सकते है । सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 5, 2016 at 5:30pm
बहुत सुन्दर आदरणीय
Comment by Sushil Sarna on July 5, 2016 at 4:41pm

न मय की है न सागर की न मैखानो की ख्वाहिश है
तेरी बांहों में दम निकले यही बस इल्तिजा साकी

वाह बहुत खूबसूरत शेर हुअा है अादरणीय , हार्दिक बधाई इस नशीली ग़ज़ल के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service