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पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )

२२ २२ २२ २२

इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!

एक   कतरा  है पैमाने में
खो के  हस्ती  पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!

दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!

जाने   कैसा   तूफां   है   ये 
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:06pm

आदरणीय सौरभ सर ग़ज़ल की पीठ पर आपकी हौसला देती प्यार भरी थपकी ने प्रयास को सार्थक कर दिया। प्रयत्न करूंगा की मेरे प्रयास को छूकर आप जैसे पारस को निराश न होना पड़े। आपकी इस हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 12, 2016 at 4:20pm

कमाल कमाल !

आदरणीय सुशील सरनाजी. आपने तो बहर बह भी मात्रिक बहर को साध लिया है ! बहुत खूब !

मैं आदरणीय रवि शुक्लजी के कहे का अनुमोअन करताहूँ. 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Sushil Sarna on April 4, 2016 at 10:11pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी बिलकुल सही कहा आपने अधिकतर इक का ही प्रयोग होता है मैंने कतरा के चक्कर में एक का प्रयोग किया। बाकी ''थी'' को हटाने से मिसरा -ऐ -उला का वज़न  ठीक हो जाएगा सानी के प्रभाव में कोई फर्क नहीं आएगा। इस सुझाव और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:47pm

जी एक की तो मेरे ख़याल से ३ मात्राएँ ही गिनी जायेंगी फिर ग़ज़लों में इक अधिकतर प्रयोग होता देखा है |इक बूँद बची थी पैमाने में--इसमें दो मात्रा अधिक हो रही हैं -इक बूँद बची  पैमाने में  --हो सकता है  'थी' हटा दो |

Comment by Sushil Sarna on April 4, 2016 at 9:35pm

आदरणीय राजेश कुमारी ही मेरे प्रयास पर आपकी होसला अफ़ज़ाई ने मेरे सृजन प्रयास को और भी सशक्त किया है , आपका  हार्दिक आभार। आपके अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार। आ. अगर इसे '' इक बूँद बची थी पैमाने में '' कर दिया जाए तो कैसा रहेगा क्योँकि कतरे के साथ इक का मेल ठीक नहीं लग रहा। दूसरी बात आ. क्या एक शाश्वत नहीं इसे २ के स्थान पर ३ की मात्रा से गिना जाएगा ? मार्गदर्शन देने की कृपा करें। धन्यवाद। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2016 at 8:55pm

वाह्ह  बहुत अच्छी कोशिश है दुसरे शेर में एक  को इक करना ठीक रहेगा मात्रा सध जायेगी 

दिल से बधाई लीजिये आ० सुशील सरना जी |

Comment by Sushil Sarna on April 3, 2016 at 3:02pm

आ.  Tasdiq Ahmed Khan  साहिब आपकी रूहानी हौसलाअफ़्ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2016 at 9:45pm

जनाब सुशील  सरना  साहिब ,छोटी बह्र में ग़ज़ल लिखना बहुत मुश्किल होता है , आपकी कोशिश तारीफ के क़ाबिल है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ....

Comment by Sushil Sarna on April 2, 2016 at 1:30pm

आदरणीय रवि शुक्ला जी आपने मेरे प्रयास को सराहा आपका तहे दिल से शुक्रिया। सर मुक्त बह्र वाले को बह्र की सीमा में चलना थोड़ा कठिन होता है और मैं इस कठिनाई को जीतना चाहता हूँ। छोटे बालक की तरह डरते डरते चलता हूँ गिरने के भय से किसी सहारे की तरफ देखता हूँ और जब आप जैसे गुणीजनों का सहारा सामने हो तो तस्सली हो जाती है। आपके मार्गदर्शन का हार्दिक आभार और कोशिश करूंगा जो त्रुटि आपने इंगित की है उसकी पुनरावृति न हो। 

Comment by Ravi Shukla on April 2, 2016 at 7:58am
आदरणीय सुशील जी अच्छा प्रयास हुआ है बह्र को साध लिया है आपने । बधाई इसके लिए । कही कही शेर के दोनों मिसरों में अन्तर्सम्बन्ध नही बन पा रहा जैसे अपने लब सी लेने अर्थात चुप हो जाने से होश में न आने की बात कह रहे हैं आप । इस तरह से भी शेर देखने का निवेदन है । पर आपको ग़ज़ल कहते देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है । बहुत बहुत बधाई इस रास्ते पर बढ़ने के लिए ।

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