For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जलता रहा रात भर... (मिथिलेश वामनकर)

212---212---212---212

 

तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर

दीप मन का भी जलता रहा रात भर

 

पा पटक के गया आज पंछी कोई

वो शज़र खूब झरता रहा रात भर

 

दिल उजालो की खातिर चरागाँ हुआ

दम-ब-दम वो पिघलता रहा रात भर

 

फिर नुमाइश में उसका जला पैरहन

एक दरिया सा बहता रहा रात भर

 

खूब आई, न ठहरी मगर वो सदा

कोई दीवार होता रहा रात भर

 

उसको आखिर शबे-गम अता हो गई

आँसुओं से जो डरता रहा रात भर

 

आरज़ू दिल की वैसी न मामूर है

खुद्नुमाई में पिसता रहा रात भर

 

दश्त ने फिर हवा को जो आवाज दी,

शाख पे फूल हँसता रहा रात भर

 

आपबीती वो अपनी सुनाता रहा 

सिलसिला गम का चलता रहा रात भर

 

क्या कहे चाँदनी  ये तो दस्तूर है

चाँद क्यूं हाथ मलता रहा रात भर

 

सरजमीं ने गले जब लगाया उसे

एक पत्थर भी गलता रहा रात भर

 

-----------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित © मिथिलेश वामनकर )
-----------------------------------------------------------

 

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2015 at 9:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 23, 2015 at 10:41am

फिर उजाले की खातिर चरागाँ हुआ
दम.ब.दम कोई मरता रहा रात भर  .....  अति सुंदर

फिर नुमाइश हुईए फिर जला पैरहन
एक दरिया सा बहता  रहा  रात भर .... क्या गहराई है
उसके हिस्से शबे.गम अता हो गए
आँसुओं से जो डरता रहा रात भर   क्या कहने
दश्त ने फिर हवा को जो आवाज दीए
फूल शाखों पे हँसता रहा रात भर  ..... एक और बेहतरीन शेर

सरजमीं ने उसे जब लगाया गले
आज पत्थर भी गलता रहा रात भर .... ये तो मेरे दिल की बात कह डाली
आ0 भाई मिथिलेश जी इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 10:04pm

आदरणीय नीलेश जी, आ. समर कबीर जी एवं आ. गिरिराज सर, आपके मार्गदर्शन अनुसार ग़ज़ल में कुछ सुधार करते हुए प्रयास किया है. आदरणीय वीनस भाई जी के विस्तृत मार्गदर्शन और सुझाव के आधार पर बदलाव किया है. यक़ीनन जल्दबाजी में बहुत कच्ची ग़ज़ल प्रस्तुत की है धीरे धीरे सुधार कर रहा हूँ. अभी जितना समझ आया सुधार रहा हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 9:58pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 22, 2015 at 9:58pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:39am

अच्छे अश’आर हुए हैं आ. मिथिलेश जी, दाद कुबूल करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 10:17am

उम्दा गजल प्रस्तुति आदरणीय मिथिलेश जी. मतला बहुत खूबसूरत कहा आपने. दिली बधाई कुबुलियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 8:48pm

आदरणीय सुधीजनों का आभार व्यक्त करता हूँ मार्गदर्शन के लिए.

जल्दबाजी में पोस्ट हुई इस ग़ज़ल में कई त्रुटियाँ है जिन्हें सुधारने का प्रयास करता हूँ.

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 20, 2015 at 3:22pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

आदरणीय , अगर आप काफिया के इता दोष को मानते हैं तो , आपका मतला खारिज़ हो रहा है , जिससे पूरी ग़ज़ल पर असर पड़ सकता है ॥  

लड़ता और जलता   से बढ़े हुये  हिस्से  ता  निकाल दे ने  से  --  लड़ और  जल-  बच रहा है , जो हम काफिया नहीं हो सकते ॥

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 7:52am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिये बधाई  ...हर शेर में दम है ...बहुत ख़ूब ...सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service