For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक तरही ग़ज़ल - मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो ( गिरिराज भंडारी )

221     1222     221      1222

 

चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो

पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो

 

ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है

कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो

 

ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी

उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो

 

नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी

वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो

 

राहे वफा में फैले , गर ख़ार डराते हैं

वो ख़ार हटा कर मैं , फूलों से सजा दूँ तो  

 

सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने  

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

**************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

 

 

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 11:48am

बहुत बहुत आभार आपका , आदरनीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 11:28am

बहुत-बहुत सुंदर गजल,आदरणीय गिरिराज जी. हर एक शेर दिल को छू जाता है, तहे दिल से बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 11:24am

आदरनीया राजेश जी , आपकी सराहना से मन आश्वस्थ हुआ ! सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2015 at 11:19am

वाह तीसरी ये  तरही ग़ज़ल पढ़ रही हूँ ...होली की धूम मच रही है क्या कहने आपकी ग़ज़ल का भी जबाब नहीं आदरणीय गिरिराज जी 

ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है

कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो---क्या कहने 

नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी

वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो------ये धमकी है या ब्लेकमेलिंग  जी ?? :))))) उम्दा शेर 

सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने  

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.---शानदार ...हाँ एक बात यदि सौ रंग के लिए आया है तो सौ रंग लगाए हैं होना चाहिए 

आपको बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रंगीली ग़ज़ल के लिए 

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 10:41am

आदरणीय सर्वेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 9:17am

आदरणीय गिरिराज सर ,,,मेरी टिप्पणी में आ.बागी टाइप हुआ है जो दरअसल आदरणीय बागी साहब है ,,,आ.बागी साहब को पूरे अद्दर के साथ ..क्षमापार्थी |

Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on March 2, 2015 at 3:11am
वाह! मन आनन्दमय हो गया...

‘’सौ रंग लगाया है, होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.’’

हर शे’र लाजवाब! बधाई स्वीकारें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 10:55pm

आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:46pm

आदरणीय गिरिराज सर बेहद कसी हुई ग़ज़ल है गज़लियत से भरी हुई बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 9:26pm

आदरणीया प्राची जी , बहुत दिनों बाद आपओ मंच मे देखा , बड़ी खुशी हुई ॥ गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service