For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूपमाला छंद पर एक छोटा सा प्रयास

हैं अचल पर चल रही हैं, पटरियाँ पुरजोर
दौड़ती हैं साथ महि के, ये क्षितिज की ओर
अनवरत चलना यही तो, जिन्दगी का नाम
दो कदम के बीच ही बस, है इन्हें आराम

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:52am

आदरणीय शिज्जु शकूर सर भावपूर्ण और सरस अभिव्यक्ति है, सत्यम ,शिवम्  ,सुन्दरम |सादर अभिनन्दन |  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2015 at 8:06am

आदरणीय शिज्जु भाई , चार लाइनों मे सुन्दर जीवन दर्शन से परिचय कराया है आपने । आपको हार्दिक बधाइयाँ । आपकी अनुपस्थति से दुखियों मे एक मेरा भी नाम है , आदरणीय ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 26, 2015 at 11:44pm

//लेकिन मात्रापतन की छूट ना मिलना दिलोदिमाग पर ज्यादा ज़ोर देने पर मजबूर करता है //

हम्म.. :-))

आदरणीय एहतराम इस्लाम साहब तो ग़ज़लों में अरुज़ के अनुसार होने के बावज़ूद मात्रापतन की छूट के बहुत आग्रही नहीं हैं. उनका कहना है कि जबतक बहुत आवश्यक न हो जाये तबतक इस छूट का लाभ नहीं लिया जाना चाहिये. यह एक तरह से रचनाकारों की शब्दों की कमज़ोरी ही जताता है. अलबत्ता, संयोजक शब्दों में मात्रापतन छूट की बात तो समझ में आती है.

दूसरे, छन्दोत्सव में आपके पाठक की सटीक टिप्पणी मुझे एक रचनाकार के तौर पर कितना उत्साहित करती इसका अंदाज़ा भी है आपको ? .. मैं वंचित हुआ न ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 9:44pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी मंच पर आपकी कमी महसूस हो रही है. सद्यः समाप्त छन्दोत्सव के छंद और चित्र को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 7:58pm

आदरणीय हरिप्रकाश दूबे सर रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 26, 2015 at 7:57pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया। ये मैंने छंदोत्सव के बाद लिखा है। मुझे खेद है कि छंदोत्सव में अपनी सक्रिय उपस्थिति नहीं बना सका। लेकिन रचनाओं का पूरा आनंद लिया और जो चर्चाएँ हुईं उनको पढ़ने के बाद ही मैं लिख पाया। ये बात सही है कि ग़ज़ल की बह्रे रमल के समान होने के कारण शिल्प साधना अन्य छंद की तरह मुश्किल नहीं है, लेकिन मात्रापतन की छूट ना मिलना दिलोदिमाग पर ज्यादा ज़ोर देने पर मजबूर करता है :-))

Comment by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 6:41pm

आदरणीय शिज्जू सर सुन्दर प्रस्तुति हैं....

अचल पर चल रही हैं, पटरियाँ पुरजोर

दौड़ती हैं साथ महि के, ये क्षितिज की ओर...हार्दिक बधाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 26, 2015 at 2:46pm

भाईशिज्जूजी, आपका यह प्रयास अवश्य ही सद्यः समाप्त छन्दोत्सव के आयोजन के लिए हुआ था. इस प्रस्तुति को आयोजन के दौरान पटल पर आने देना था.
चूँकि मात्रिक आवृति का निर्वहन इस छन्द में रचनाकर्म को सरल करता है अतः ग़ज़ल की बहर पर अभ्यासकर्ताओं केलिए अधिक कठिनाई नहीं होती. आपकी प्रस्तुति भी इस तथ्य का उदाहरण है.
अलबत्ता, आपकी भावाभिव्यक्ति और अधिक व्यापक हो सकती है.
शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service