करके घायल ......
करके घायल नयन बाण से
मंद-मंद मुस्काते हो
दिल को देकर घाव प्यार के
क्योँ ओझल हो जाते हो
प्यार जताने कभी स्वप्न में
दबे पाँव आ जाते हो
कुछ न कहते अधरों से
बस नयनों से बतियाते हो
क्षण भर के आलिंगन को
तुम बरस कई लगाते हो
फिर आना का वादा करके
विछोह वेदना दे जाते हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय somesh kumar जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
करके घायल चला वो
सपन बनके पला हो
फिर आया नहीं लौटकर
उसका मिलना खला वो
सुंदर प्रस्तुति है सर ,रचना में कभी पूर्णता नहीं आ सकती ,सब अपने नजरिए से देखते हैं ,पर स्वयं को अच्छी लगनी पहली जरूरत है ,बाकी सुधार करें तो अच्छा,ना करें तो भी अच्छा |its my personal thought that perfection is a dead end
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का बहुत बहुत शुक्रिया। वस्तुतः ये सृजन काफी समय पूर्व का है इसीलिये ये कमी दृष्टिगोचर हो रही है। आपके द्वारा सुझाया गया सुधार बहुत ही सुंदर बन पड़ा है। आपने अपने अमूल्य सुझाव से रचना को जो मान दिया है उसके लिए बंदा आपका शुक्रगुजार है। कृपया अपना स्नेह बनाये रखें।
आदरणीय Anurag Prateek जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय सरना जी, बहुत बहुत बधाई,सुन्दर रचना है !
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