For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य-गोष्ठी - अप्रैल 2014, एक प्रतिवेदन

ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य-गोष्ठी - अप्रैल 2014, एक प्रतिवेदन

 

 

    स्कूल में हम बच्चों को एक पेड़ लगाने के लिए कहा गया था. हमने एक पौधा लगा दिया. अध्यापक के कहने पर कि ‘यह तो पौधा है, पेड़ नहीं’ हमने कहा था ‘यही तो बड़ा होकर पेड़ बनेगा’. तब अध्यापक ने समझाया था ‘ हाँ बच्चों तुम ठीक कहते हो लेकिन याद रखना कि पौधा लगाना जितनी बड़ी बात है उससे बड़ी बात है उसे सींचकर बड़ा करना, उसकी रक्षा करना, तभी वह एक दिन वृक्ष का आकार लेता है.

    मई 2013 में ओ.बी.ओ. संस्थापक आ. गणेशजी बागी की उपस्थिति में सर्वश्री प्रदीप सिंह कुशवाहा, केवल प्रसाद सत्यम और बृजेश नीरज जी के दुर्दमनीय उत्साह के फलस्वरूप ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर का ‘पौधा’ लगाया गया था. स्वस्थ साहित्यिक चिंतन से इसे सींचने का बीड़ा उठाते हुए लखनऊ और आसपास के कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों और नव-हस्ताक्षरों ने इस संस्था को अपनी एक अलग पहचान दिलाई है. मासिक कवि-गोष्ठी का आयोजन करना ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर का नियमित कार्यक्रम है. इसी प्रक्रिया में मई 2013 से दिसम्बर 2013 तक सभी कार्यक्रम लखनऊ में ही आयोजित होते रहे. जनवरी 2014 में सक्रिय ओ.बी.ओ. सदस्या आ. अन्नपूर्णा बाजपेयी जी के आग्रह पर उनकी निवास नगरी कानपुर में यह गोष्ठी आयोजित की गयी. कानपुर के सुधी जनों का उस कार्यक्रम में विपुल उत्साह देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि लखनऊ चैप्टर का कार्यक्रम अब लखनऊ और कानपुर दोनों शहरों में बारी-बारी से किया जाएगा.

    27 अप्रैल 2014 को दूसरी बार कार्यक्रम का आयोजन आ. अन्नपूर्णा जी ने कानपुर स्थित अपने निवास स्थान पर किया. 20 अप्रैल को होने वाले इस कार्यक्रम को ओ.बी.ओ. के वरिष्ठ सदस्य श्री संजय मिश्र ‘हबीब’ के आकस्मिक निधन के कारण एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया था. स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या, व्यक्तिगत/नौकरीगत कारण, चुनावी ड्यूटी आदि मजबूरियों से घिरे लखनऊ के अधिकांश रचनाकार इस स्थगन के कारण कार्यक्रम में भाग नहीं ले सके. लखनऊ से केवल हम चार लोग ही वहाँ उपस्थित रह सके – मैं, डॉ.शरदिंदु मुकर्जी, सुश्री नीतू सिंह व आदरणीय श्री मनोज शुक्ल ‘मनोज’. लेकिन कानपुर के बहुत ही वरिष्ठ और प्रतिष्ठित साहित्यकारों की गरिमामयी एवं सक्रिय उपस्थिति से कार्यक्रम अत्यंत सफलतापूर्वक संपन्न हुआ.

    कार्यक्रम में अध्यक्ष का पद आ.श्री चंद्रशेखर बाजपेयी जी ने सुशोभित किया. संचालन का दायित्व आ.श्री सुरेंद्र गुप्त ‘सीकर’ जी ने सम्भाला. कार्यक्रम प्रारम्भ करने के पहले सभी के आग्रह पर डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने ओ.बी.ओ. का एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया. वहाँ उपस्थित कानपुर के सभी ऐसे साहित्यकारों ने जो ओ.बी.ओ. से अभी तक परिचित नहीं थे, इस मंच से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की.

    गोष्ठी का आरम्भ माँ सरस्वती की मधुर वंदना से हुआ. आ.रमेश मिश्र ‘आनंद’ जी के स्वर ने इन पंक्तियों को भक्ति भाव से ओतप्रोत कर दिया “शब्दों की गागर छलकाओ/ ओ शुचि समरथ.../आंचल से अमृत बरसाओ/ सुमुखि सुनैन....”

    संचालक महोदय ने लखनऊ से आए अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह गोष्ठी वास्तव में गोमती और गंगा नदियों का मिलन है, संगम की तरह पवित्र है.

    आ.मनीष ‘मीत’ एक वरिष्ठ ग़ज़ल गायक हैं. उनकी ये पंक्तियाँ उनकी रचना की गहराई को दर्शाती हैं – “नए पेड़ों पे बसने का बहाना ढूँढ़ लेते हैं/ हरी शाखों पर फिर से ठिकाना ढूँढ़ लेते हैं”.

   आ. मनोज शुक्ल ‘मनोज’ ने ओजपूर्ण स्वर में सुनाया “जीवन पयोधि में फँसी है यह नाव...”. उनकी अवधी रचना “दुख मा चलै पसेंजर जैसी....ज़िंदगी” भी खूब सराही गयी.

    सुश्री नीतू सिंह ने भाव-विह्वल होकर माँ की महिमा का गान किया “बचपन की आशाओं को जो निज सिर माथे ढोती है/ कोई नहीं और वह सिर्फ़ माँ होती है”.

    आ. नन्हेलाल तिवारी के गीत ने सबकी आँखें नम कर दीं. देखिए उनकी भावनाओं की कसक “माटी का मैं एक लोथड़ा/ इस सागर में छोड़ गयी हो/ भूखे मगरमच्छ गिद्धों की/ थाली में रख भूल गयी हो/.....अपनी नियति चक्र गर्तों में/ अपने को ही ढूँढ़ रहा हूँ/....माँ की छाया कैसी होती/ आज तलक मैं ढूँढ़ रहा हूँ”.

    शहर में बसे लोगों के हृदय में गाँव आज भी मीठे सपने जगाते हैं – “जहाँ पर खंजन और चकोर/ नाचते हैं बागों में मोर”आ.रमेश मिश्र ‘आनंद’ के इस गीत ने एक समाँ बाँध दिया. इससे पहले वे सुना चुके थे “दास्ताने दिल सुनाने जा रहा हूँ, एक ग़ज़ल गुनगुनाने जा रहा हूँ”.

    नारी विमर्ष पर आ.नवीनमणि त्रिपाठी जी ने कहा “जब दरिंदों ने उसको आग लगायी होगी/ उंगलियाँ लोगों ने उस पे उठायी होगी”.

    जिन्हें लड़कियाँ मात्र गले का फंदा दिखती हैं उनके लिए आ.अन्नपूर्णा बाजपेयी जी ने यह चित्र प्रस्तुत किया “एक गुड़िया थामकर सपने सजाती लड़कियाँ/ सप्तस्वर घर में गुँजाती/ खिलखिलाती लड़कियाँ”.

    कवि-गोष्ठी का संचालन कर रहे आ.सुरेंद्र गुप्त ‘सीकर’ जी ने उदात्त स्वर में गाकर इन पंक्तियों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया “मैं नदी हूँ/ प्राकृतिक निधि हूँ, नदी हूँ/ तुम्हारी ज़िंदगी की एक प्रतिनिधि हूँ”.

    आ.अनीता मौर्या जी ने अपनी मधुर आवाज़ में सुनाया “यह न सोचो कि खुशियों में बसर होती है/ कहीं महलों में भी फ़ाकों की सहर होती है”

    आ.डॉ.सत्यकाम शिरीष जी ने सामयिक स्थिति पर कटाक्ष करते हुए कटु सत्य की ओर हमारा ध्यान खींचा “धीरज सब तोड़ गयी, घायल सद्भावना/ कब तक हम सहें, वादों की यातना”.

    इस प्रतिवेदन की प्रस्तुत कर्त्री (कुंती मुकर्जी) ने मानव जीवन के बदलते हुए आयाम की ओर इंगित कर अपने भाव प्रस्तुत किए “....अब भी/ मैं ख़त लिखकर/ बिखेर देती हूँ पन्ने/...ज़िंदगी सरक कर/ अटक जाती है/ अमलतास की सूखी डाल पर”.

    इंसान अपने अहं को लेकर चाहे जितना इतरा ले, प्रकृति उसे एक न एक दिन उसकी औक़ात दिखा ही देती है. डॉ.शरदिंदु मुकर्जी ने इन्हीं भावों को लेकर सुनाया “.....दिन के झरोखे में बैठे/ एक लम्बी सांस खींचकर/ मैंने सूरज बनने की ठानी/ तैरते हुए बादल के/ एक छोटे से टुकड़े की/ छोटी सी छाँव ने/ मुझे/ मेरी औक़ात सिखा दी....”.

    आ.कन्हैया लाल ‘सलिल’ जी ने आज की सामाजिक दुर्दशा पर व्यंग्य कसते हुए कहा “प्लेटफॉर्म पर खड़ी है रेल/ आखिर जाएगी छूट..../थर्ड क्लास की जनरल बोगी/ या ए.सी. में बैठो/ नोटों भरे सूटकेस को/ सब करते सलूट”.

    कानपुर की चर्चित शायरा आ.चाँदनी पांडे जी ने अपनी ग़ज़लों से तथा विशिष्ट व्यंग्यकार आ.के. के.अग्निहोत्री जी ने अपनी रचनाओं से उपस्थित सुधीजनों का भरपूर मनोरंजन किया.

    हास्य-व्यंग्य के समानांतर ही आ.कृष्णकांत शुक्ल जी का मार्मिक गीत सुनने को मिला “हर पल आभारी रहता हूँ/ काँटों का, व्यवधानों का/ रखा नहीं हिसाब कभी भी/ अपमानों सम्मानों का”.

    एक सुंदर परिष्कृत आयोजन का समापन संचालक महोदय द्वारा कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों से किया गया “समालोचकों की दुआ है कि मैं फिर/ सही शाम से आचमन कर रहा हूँ”

    अंत में चाय समोसे का आनंद लेते हुए हम सबने अन्नपूर्णा जी का आभार व्यक्त किया इस सुंदर आयोजन हेतु और उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता पूरी करके कार्यक्रम को अंतिम मोड़ पर ला खड़ा किया. ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर रूपी पौधे को लहलहाते देखकर जो खुशी हो रही थी उस खुशी का अनुरणन अभी भी हमारे अंदर है.
इति
कुंती मुकर्जी

Views: 1562

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीया कुंती जी
ये मंच दिन प्रति दिन ऊँचाइयाँ के तरफ अग्रसर हो..मेरी यही शुभकामना है.. आदरणीया अन्नपूर्णा जी ने इस कार्यक्रम के बारे में पहले भी जानकारी दी थी.. आपने विस्तार से और जानकारी दी इसके लिए शुक्रिया. इसमे भाग लेने वाले सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई.

नये रचनाकारों का भी स्वागत किया जाना चाहिए और उन्हे सदस्यता के लिए प्रेरित करना चाहिए.
इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए आपको हार्दिक बधाई.

वाह
अतिउत्तम
हार्दिक बधाई

मुकेश जी व वीनस जी आप दोनों को हार्दिक आभार.

इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए आपको हार्दिक बधाई.आदरणीया कुंती जी

इस आयोजन के सुचारू रूप से सम्पन्न होने पर समर्पित सदस्यों को हार्दिक बधाइयाँ.

आपकी यह विशद रिपोर्ट बहुत कुछ साझा करती जाती है. आपके प्रस्तुतीकरण के कारण हम काव्य-संध्या के उन क्षणॊं को जी पाये.

सादर

सौरभ जी, आपको हार्दिक आभार. सादर

आदरणीय कुंती दी जी 

सादर 

निश्चय ही बिरले लोग होते हैं जो किसी संस्था या घटना के मूल में जाकर उन तथ्यों /इतिहास की जानकारी नये लोगों को देते हैं जो प्रेरणा  श्रोत होता है. ऐसा मेरी अपनी सोच है. इसे अपेक्षा करना या आत्म मुग्धता के दायरे से परे मानता हूँ. आपका इस संदर्भ में विशेष आभार . यदि राष्ट्र के नागरिक संस्कृति, सभ्यता के सन्दर्भ में नयी पीढ़ी को बताएं तों एक मजबूत राष्ट्र बन सकता है भारत जिसका एक अपना स्वरूप होगा राष्ट्रीय चरित्र के मामले में. 

इस प्रकार के स्वप्न देखना और उन्हें जीवंत करना मेरे भाग्य में सदैव रहा है. मैं एक जगह ठहर  नही पाता. चल देता हूँ अगले पड़ाव की ओर .

लखनऊ चैप्टर अभी मेरे मानकों के अनुरूप नही है. इसके ठोस विस्तार की और आवश्यकता है. बंद हाल से खेत के मैदानों तक पहुंचाने और युवा पीढ़ी को अच्छे साहित्य सृजन से जोड़ने की मुहीम अधूरी है. 

लखनऊ चैप्टर जो आज गतिमान है वो मेरे अलावा टीम के सभी सदस्यों के मेहनत ,लग्न. निष्ठां का ही परिणाम है. आदरणीय दादा जी के वट वृक्ष की साया  में फल फूल रहा है . मै अपनी बीमारी के कारण  समय नही दे पाता  हूँ. 

कानपुर का आभारी हूँ . उत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत करने हेतु.  अब अधिक नही. 

सभी का आभार . 

जय ओ बी ओ 

आदरणीया कुंती जी ..इस सफल आयोजन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ..मुझे इस कार्यक्रम की जानकारी नहीं थी ..आज आपके लेख को पढने से मालूम हुआ ..लखनऊ और कानपूर दोनों ही जगह लगभग हर सप्ताह में रहता हूँ ..भविष्य में ऐसा आयोजन कब होने वाला है और क्या इस कार्यक्रम में यदि कोई शामिल होना चाहे तो क्या करना होगा ..यह अनूठी पहल ह और इससे प्रत्यक्ष रूप आप सभी श्रेष्ट साहित्यकारों से मिलने का सुअवसर हम जैसे सीखने वालों को मिलेगा ..ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ सादर

आदरणीय आशुतोष जी, बहुत खुशी हुई कि आपने लखनऊ चैप्टर की रिपोर्ट पढ़ी और अपनी दिलचस्पी भी दिखलायी.हर महिने में OBO events में निमंत्रण आता है.आपका स्वागत रहेगा. बहुत बहुत धन्यवाद.

डॉक्टर आशुतोष साहब, आप ओबीओ के इवेण्ट्स पर हमेशा नज़र बनाये रखें.  लखनऊ चैप्टर का आयोजन प्रति माह बारी-बारी से कानपुर और लखनऊ में होता है.

सादर

 

वाह बहुत सुन्दर .... ऐसे कार्यक्रमों की निरंतरता अक्षुण्ण बनी रहे यही कामना है 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service