For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-45 (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 45  वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा मेरे पसंदीदा शायर जॉन एलिया जी की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या "

2122    1212    22 

फाइलातुन  मुफ़ाइलुन फेलुन

( बहरे खफीफ़ मख्बून मक्तूअ )

रदीफ़ :- हो क्या  
काफिया :- ई(ज़िन्दगी, ख़ुशी, रोशनी, आदमी, सही आदि )
 
* इस बहर में अंतिम रुक्न फेलुन (22)को फइलुन (112) भी किया जा सकता है 
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 29 मार्च दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 मार्च दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक  अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल  आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी । 

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 29 मार्च दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 19701

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, मुझे मालूम है, कि अनजाने में मेरा नाम गलत टाइप हो गया है.

आपने विशेष अश’आर को उद्धृत कर मेरे रचनाकर्म को सार्थकता दी है. 

सादर

डायरी से निकल गई हो क्या !!    क्या बात है ! वाह !!

खुश मेरे साथ हो बहुत, लेकिन-
खिलखिला कर कभी हँसी हो क्या ?    वाह, वाह !!

इस दफ़े वादियाँ उदास लगीं  
कौन जाने उन्हें कमी हो क्या    वाह !!

खूबसूरत ग़ज़ल पर दाद क़ुबूल कीजिये आदरणीय सौरभ जी |

भाई आशीष नैथानीजी, आपने उद्धृत शेरों के सापेक्ष मेरे रचनाकर्म को सराहा है. हृदय से धन्यवाद.

शुभ-शुभ

आ0 सौरभ  सर जी, //खुश मेरे साथ हो बहुत, लेकिन-
खिलखिला कर कभी हँसी हो क्या ? //.... वाह..!  क्या बात है्! तहेदिल से दाद कुबूल करें।  सादर,

हार्दिक धन्यवाद केवल भाईजी.

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय सौरभ जी 

सोचता हूँ जिसे.. वही हो क्या ! 
डायरी से निकल गई हो क्या !!.....................डायरी की कल्पनाओं का हकीकत में ढला प्रत्यक्ष हो जाना, बहुत सुन्दर 

छू गयी तो लगा मैं साहिल हूँ !
साथ बहने चली नदी हो क्या !!.....................बहती नदिया का स्पर्श.. अस्तित्व-भान को अर्थवान करता सा लगा 

खुश मेरे साथ हो बहुत, लेकिन-
खिलखिला कर कभी हँसी हो क्या ?................ये बहुत साइकोलोजिकल शेर हुआ है, खुश होना और खिलखिला कर हँस देना दोनों में बहुत फर्क है..और यदि साथ में खिलखिलाहट नहीं तो खुशी भी कुछ ख़ास नहीं .. 

आँख नम क्यों, कहो.. कसम मेरी !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !!...................बिलकुल दिल से निकले शब्द, मुझे गिरह सबसे ज्यादा पसंद आयी 

क्यों अँधेरे मुझे अज़ीज़ न हों 
तुम उजाला, सही, मेरी हो क्या ?......................ये भी बहुत सुन्दर, उत्कृष्ट भावनाओं को शब्द देता शेर 

बाकी अशआर भी बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय 

आदरणीया प्राचीजी, कुछ अश’आर के प्रति बने आपके उद्गार आपकी ग़ज़ल के प्रति गंभीरता ही दर्शाते हैं.

सादर धन्यवाद.
 

सभी अशआर अच्छे लगें, किन्तु इन दो शेरों पर इतना ही कहना है कि ………………… वाह वाह क्या बात है

आँख नम क्यों, कहो.. कसम मेरी !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !! जबरदस्त गिरह ।

क्यों अँधेरे मुझे अज़ीज़ न हों
तुम उजाला, सही, मेरी हो क्या ? इस शेर का कहन मन मुग्ध कर दिया, बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ भईया .

गणेश भाई, इस मंच ने तिल-तिल कर सबकुछ सिखाया है ! उन्हें व्यवहृत करना और फिर उन्हें अनुमोदित होते देखना, एक स्वर्गीय आनन्द है. आपने जिस तरह से ग़ज़ल के प्रति अपनी हामी भरी है वह आश्वस्त करती है कि प्रयास सार्थक रहा.


अब आपन बात :
आहोऽऽऽऽ.. कहवाँ बाड़ऽ आजकाल !

अफिसिया के काम-काज से मन तनिका बेसिये हलाकान बा का ? आजकाल तहार कमे आमद लउकऽता. हम एहीसे टोकत-टाकत नइखीं, तहरा के. !!

माने, काम के बोझ का मारा .. एकरा चाहीं सिंकारा !! .. :-)))

//आहोऽऽऽऽ.. कहवाँ बाड़ऽ आजकाल !
अफिसिया के काम-काज से म तनिका बेसिये हलाकान बा का ? आजकाल तहार कमे आमद बुझाता. एहीसे आजकाल हम टोकत-टाकत नइखीं, तहरा के. !! //

वोइसे बानी त राउर दिल के करिबे, बाकिर नया नोकरी के व्यवस्थित करे आ खुद के संयमित करे के प्रयास जारी बा, जल्दिये उट पहार के नीचे आ जाई :-)

हमरा बुझात बा.

ईहे बतिया हम आदरणीय योगराजभाई के कहले रहीं जे बबुआ अबहीं नया बेवस्था में बउराइल बा.. :-))))))
आ ऊँट पहार तले काहें आई हो.. आओ त बुलबुल आओ .. बुलबुल आओ, आपना फुलवारी में आओ...  
जय हो..  :-))))


बेहतरीन अशआरों से सजी इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय। विभिन्न प्रतीकों और संकेतों के सार्थक प्रयोग द्वारा आप जिस सादगी से गहरी बात कह जाते हैं,ये बहुत प्रभावित करता है।                                                                              प्रस्तुत ग़ज़ल के मतले में क्या खूब दृश्य रचा है आपने

सोचता हूँ जिसे.. वही हो क्या
डायरी से निकल गई हो क्या

इसी तरह का ये शेर है जो एक अलग अहसास नुमाया करता है

छू गयी तो लगा मैं साहिल हूँ
साथ बहने चली नदी हो क्या


ग़ज़लगोई के सन्दर्भ में प्रचलित है कि ग़ज़ल लिखी नहीं, कही जाती है, प्रस्तुत ग़ज़ल के ये अशआर इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं।

लग रही है वसुंधरा सुन्दर !
आज तुम भी उधर जगी हो क्या ?


हो गयी फिर.. हरी-भरी तुलसी
क्या कहूँ तुम मुझे मिली हो क्या !

क्यों अँधेरे मुझे अज़ीज़ न हों
तुम उजाला, सही, मेरी हो क्या ?

इस दफ़े वादियाँ उदास लगीं
कौन जाने उन्हें कमी हो क्या

हार्दिक बधाई आदरणीय। सादर।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
6 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service