For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

5+7+5+7……..+5+7+7 वर्ण

 

जीवन कैसा

एक चिटका शीशा

देह मिली है

बस पाप भरी है

भ्रम की छाया

यह मोह व माया

अहं का फंदा

मन दंभ से गन्दा

शब्द हैं झूठे

सब अर्थ हैं छूटे

तृप्ति कहीं न

सुख-चैन मिले न

फाँस चुभी है

एक पीर बसी है 

प्यास बढ़ी जो

अब आस छुटी जो

किसे पुकारें

अब कौन उबारे

एक सहारा

माँ यह तेरा द्वारा

हे जगदम्बे!

शरणागत तेरे

आरती गाऊँ

रज माथ लगाऊँ

आन उबारो

यह जीवन तारो

माँ जगदम्बे!

सुन! हे माता अम्बे!  

अब आ जगदम्बे!

   -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:27pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! :))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 6:26pm

यह भी सही.. गुड !

जय हो.... ..  

 

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 7:17pm

आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by vijay nikore on October 15, 2013 at 7:02pm

अति मोहक ! बधाई ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:56pm

आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by विजय मिश्र on October 15, 2013 at 2:57pm
जय जगदम्बे . प्रसंशनीय .बधाई बृजेशजी
Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 2:04pm

 आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत बल मिला!

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 10:53am

विधा कोई भी हो यदि उसको सही सांचे में ढाला जाए तो बेमिसाल प्रस्तुति बन जाती है जैसे इस रचना में आपने कमाल किया शब्द कम पड रहे हैं तारीफ के लिए बस हृदय से बधाई बधाई बधाई ब्रिजेश नीरज जी 

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:35am

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:34am

आदरणीय अखिलेश जी आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service