पीढ़ियों का अंतर
पीढियों के अंतर में कसक भरी तड़पन है
इनकी अंतरव्यथा में गहरी चुभन है
जिंदगी की सांस् सिसकियों में सिमटी जा रही है
जिसमें खुशनुमा सी सुबह धुंधली होती जा रही है
दादा दादी, नाना नानी ,पोते पोती ,नाती नातिनें
मिलजुल कर प्यार से रहने के वो रिवाज़औरस्में
क्यूँ आ गई है दीवारें इनमें
कैसे पाटा जायेगा ये अंतर हमसे
ये अंतर घर परिवार की खुशियों को खा रहा है
ऐसा पहले तो नहीं था अब कहाँ से आ रहा है
वर्तमान परिस्थितियां का रुख ऐसा हो चला हैं
जिससे पीढ़ियों का मन शिकायतों से भर गया है
इनके मध्य की डोर ऐसी उलझ गई है
जो सुलझने की बजाय और उलझने लगी है
आज पीढ़ियों का अंतर नासमझी का पर्याय बन गया
अपने अपने स्वाभिमान में खोकर रह गया है
बात सचमें पीड़ा की है
बच्चे अपने बड़ों की न सुनें
बात बेबात उन्हें तिरस्कृत करें
घर की बात बाहर करने में न झिझकें
आज पीढ़ियों में सोच व दृष्टिकोण का अंतर हो गया है
उनके बीच का ये अंतर चिंतन योग्य हो गया है
बात एक दूसरे को समझने की है
घर के सुख , शांति और समृद्धि की है
बुढ़ापे का अनुभव भरा प्यार
बचपन और यौवन के उल्लास से मिल जाए
तो पारिवारिक हंसी ख़ुशी परिवार से न जाए
विजयाश्री
१०.०७ २०१३
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आपकी रचना की संप्रेषणीयता पर आदरणीया इतना ही कहूँगा, कथ्य प्रस्तुतिकरण में कविता रह गयी है. इस विषय पर आपका कहा गद्यात्मक आलेख स्वरूप पाठकों के लिए बेहतर भावदशा होती. आपके प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ .. प्रयासरत रहें, आदरणीया
सादर
जनरेशन गैप पर सुंदर रचना के लिये बधाई..........
बात एक दूसरे को समझने की है
घर के सुख , शांति और समृद्धि की है
बुढ़ापे का अनुभव भरा प्यार
बचपन और यौवन के उल्लास से मिल जाए
तो पारिवारिक हंसी ख़ुशी परिवार से न जाए - आपकी कए रचना दरशल पीढ़ी दर पीढ़ी आये अंतर को लेकर है आद विजयाश्री जी
ये जेनेरशन गेप, विकास, घर के बढ़ते आकार के कारण परिवार दे ढांचागत परिवर्तन आदि कई कारणों से होता है | रचना
में सार्थक बात कही है आपने और समापन सुन्दर सन्देश से किया है, इसके लियी हार्दिक बधाई
ये अंतर घर परिवार की खुशियों को खा रहा है
ऐसा पहले तो नहीं था अब कहाँ से आ रहा है.....सार्थक प्रश्न करती अभिव्यक्ति
वैसे कथ्य चिंतन परक और प्रभावशाली है,जिसके लिए हार्दिक बधाई ... पर वाक्याश बहुत बड़े होने के कारण अभिव्यक्ति थोड़ी कमज़ोर लग रही है.
शुभकामनाएँ
peedhiyon ka antar to har yug me raha hai lekin ab samjhdari ki jarurat jyada hai ..sundar rachna
आदरणीया विजयाश्री जी पीढ़ियों का अन्तर मिटाने की कामना अच्छी है ,
रिश्तों की सच्चाई और नसीहत का भाव सुन्दर शब्दों में , आपको बधाई !
बहौत सुन्दर
अतिसुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online