For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक - 33(Now closed with 1275 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

 

पिछले 32 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 33 

विषय - "प्रकृति और मानव"

आयोजन की अवधि-  शनिवार 06 जुलाई 2013 से सोमवार 08 जुलाई 2013 तक

 
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए ।आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं । साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं ।


उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना : ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 33 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में तीन । नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी ।

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 06 जुलाई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 21877

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय धर्मेन्द्र सर..

सुन्दर कविता, बधाई स्वीकारें आरती जी.

आपकी प्रतिक्रिया से मेरे लेखन को बल मिलेगा..आदरणीय योगराज प्रभाकर सर ..हार्दिक धन्यवाद आपका..आभार 

Sundar Shabdon Me Bahut Sundar Kavita.
Bahut Khoob Aarti Ji..

आपका हार्दिक धन्यवाद अभिषेक जी..

अभिषेक जी टिप्पणी कृपया मेन थ्रेड में पोस्ट न करें... सम्बंधित रचना के नीचे बने reply को क्लिक करके उस रिप्लाई बॉक्स में ही करें ..अन्यथा टिप्पणी प्रबंधन स्तर से हटा दी जायेगी.

ओ बी ओ लाइव महोत्सव - ३३ के पावन विषय को समर्पित मेरी श्रद्धा के फूल नवगीत की माला में पिरोये हुए, प्रथम प्रस्तुति 

 

 गर्भस्थ प्रिये शिशु मेरे  

 

तेरे पिता संग स्वप्न सजाऊँ 

सुत!  इक मधुरम कल देखूँ! 

 

 

अथवा यह भीषण मंजर उफ़ 

कम होते जंगल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

 

देखी नदियाँ प्यारी प्यारी

थार हुयी जातीं है सारी 

विकट मनुज अब हुआ शिकारी 

जीवन निधि की मारा मारी 

 

कैसे तुझको सच बतलाउँ

 सर्व नाश के पल देखूँ! 

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

मन की करता हर कीमत पर 

वाह रे तू मानव मनमौजी 

अपने सुख हित ले आता है 

नित्य नई इक टेक्नॉलोजी

 

धुँआ उगलती चिमनी, उफ्फो!

जहरीले बादल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ! 

 

नदियाँ रोकी बांध बनाते 

क्या विकास के ये पैमाने 

फिर क्यों हाहाकार मचाते 

जब कुदरत देती है ताने 

 

मनुज जाति पे संकट लाती 

भू कम्पित हल चल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

माँ के पोषण का विकल्प है

दूध बनाने वाले चूरण

लाज दूध की कौन बचाये 

हर बच्चा माँ-ऋण से उऋण   

 

 

पैसो में मिलती कोखो पर 

भाड़े के ही फल देखूँ! 

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

धुला दूध का कौन यहाँ है 

 हम क्या, पिछले भी रजवाड़े  

कुदरत के हित किया न कुछ भी 

लेकिन बनते काज बिगाड़े 

 

सुरा पात्र के बने अनोखे

कलुषित शीश महल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

नहीं रही अब असली नस्लें 

दवा युक्त आईं है फसलें  

अजब दवा के गजब नमूने 

रात चौगुने तो दिन दूने 

 

कुदरत का धन धान्य लुप्त 

अब नकली ही चावल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

क्या तेरे हित शेष धरा पर

 हे! गर्भस्थ! सच सुनो, मेरे

हुआ प्रदूषित वायुमंडल  

औ विषाक्त ये साँझ सबेरे 

 

हुयी राम की  गंगा मैली 

किसी विधि पावन जल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

जो करते उपभोग हम सभी 

कुदरत का कच्चा पदार्थ है 

नत हो कब लौटाया हमने 

किया सिद्ध ही  मात्र स्वार्थ है  

 

तो फिर प्रकृति न्याय करेगी 

चहुँ दिश जल ही जल देखूँ!

कैसे मधुरम कल देखूँ!

 

 

                        गीतिका 'वेदिका' 

  

प्रकृति निर्मित वस्तुओ को नष्ट कर/प्रदूषित कर हम कैसे मधुरंम कल की कल्पना कर सकते है | सुंदर गीत रचना के 

के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया गीतिका "वेदिका" जी 

सही कहा आपने आदरणीय लक्ष्मण जी!

बधाई हेतु शुक्रिया!! 

वाह!! बहुत खूब वेदिका जी..बधाई स्वीकारें..

आपका शुक्रिया आदरणीया आरती जी!

वाह वाह दिल छू गई ये रचना प्रिय गीतिका सच में विचारणीय है ये की हम अगली  पीढ़ी को क्या देकर जायेंगे ये जर्जर/रुष्ट प्रकृति ये कलुषित पर्यावरण ,बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही है ये प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
44 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service