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 दिया अब सब्र का भी बुझ रहा अंतिम बगावत है
 मगर ये रात खुलती ही नहीं लम्बी अमावस है ||
 
 तमन्ना की जमीं पर जब कभी भी घर बनाया था 
 हकीकत की लहर ने एक पल में सब डुबा डाला |
 मेरी कोशिश मनाने की अभी तक भी निरंतर है 
 सभी नाराज होने की वजह को भी मिटा डाला ||
 
 तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है 
 सभी आदत बदल लूँगा तुम्हे जिन पर शिकायत है ||
 
 वजह क्या थी खता क्या थी मुझे ये तो बता देते 
 जरा सी बात पर यूँ चल दिए मुझको सजा देकर |
 ....मनाने के लिए तुम मांग भी लेते अगर साँसे 
 ......मुझे मंजूर होती मौत भी तुमको दुआ देकर ||
 
 मेरे दिल में तुम्हारे नाम की अब भी लिखावट है 
 न जाने क्यूँ तुम्हे शक है मुहोब्बत में मिलावट है ||
 
 अगर कल मै कहीं थक कर अचानक मौत मांगूंगा 
 मेरी ये आखिरी ख्वाइश समझ कर माफ़ कर देना |
 ये जो इल्जाम तुमने बेवजह मुझ पर लगाये हैं 
 .....गुनाहों का पुलिंदा खोल कर इन्साफ कर देना ||
 
 निहारा ताज को जिसने- कहा सुन्दर बनावट है 
 किसी ने यह नहीं सोचा दफ़न उसमे मोहोब्बत है ||.........मनोज
Comment
वाह मनोज जी ,बहुत खूब..बेहद सुन्दर तरीके से मोह्हब्बत को उजागर किया है आपने..बधाई स्वीकारें..
निहारा ताज को जिसने- कहा सुन्दर बनावट है 
किसी ने यह नहीं सोचा दफ़न उसमे मोहोब्बत है ||...वाह सुंदर पंक्तियाँ इस प्रस्तुति हेतु बधाई आपको 
  "मेरे दिल में तुम्हारे नाम की अब भी लिखावट है 
    न जाने क्यूँ तुम्हे शक है मुहोब्बत में मिलावट है || "  ----  यह खासमखास है . सुन्दर 
सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार |सौरभ पांडे जी आपके सुझाव पर मै जुरूर विचार करूँगा | धन्यवाद
मनोज जी:
रचना अच्छी लगी।
बधाई।
विजय निकोर
मेरे दिल में तुम्हारे नाम की अब भी लिखावट है 
 न जाने क्यूँ तुम्हे शक है मुहोब्बत में मिलावट है ||
मासूम ताना .... खूब है !! congratulation.
मनोज जी, रचना अच्छी लगी, बधाई ।
तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है 
सभी आदत बदल लूँगा तुम्हे जिन पर शिकायत है || वाह क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,,बधाई हो 
मेरे दिल में तुम्हारे नाम की अब भी लिखावट है 
न जाने क्यूँ तुम्हे शक है मुहोब्बत में मिलावट है ||.......  वाह मनोज जी.. सुन्दर नज्म कही है | बधाईयाँ |
तुम्हारा रूठना अब लग रहा मुझको क़यामत है 
सभी आदत बदल लूँगा तुम्हे जिन पर शिकायत है ||,सुंदर रचना मनोज जी ,बधाई 
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