For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १६ (Now closed with 740 Replies )

परम आत्मीय स्वजन,

"OBO लाइव महाउत्सव" तथा "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता में आप सभी ने जम कर लुत्फ़ उठाया है उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १६ और इस बार का तरही मिसरा १२ अक्टूबर १९३८ को दिलवालों की नगरी दिल्ली में जन्मे प्रसिद्ध शायर जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की गज़ल से हम सबकी कलम आज़माइश के लिए चुना गया है | तो आइये अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदियों तक पहुंचा दें |

"ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो"

ज़िन्दगी क्या/ है किताबों/ को हटा कर/ देखो

2122            1122       1122        22 

फाएलातुन / फएलातुन / फएलातुन / फैलुन
रमल मुसममन मख़बून महज़ूफ़


कफिया: आ की मात्रा ( हटा, बना, सजा, बजा, मिला, बचा, भगा... आदि )
रदीफ   : कर देखो

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ अक्टूबर दिन गुरूवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ अक्टूबर दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १६ जो तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है :

 

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ अक्टूबर दिन गुरूवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


                                                                                                           

मंच संचालक

योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन 

Views: 14270

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागत है आदरणीय आचार्य जी ! आपका स्नेहाशीष पाकर हमारे साथ साथ यह सृजन भी धन्य हो गया ! आपकी एक वाह-वाह हमारे लिए कोटिशः वाह-वाहियों के समतुल्य है ! हार्दिक आभार सहित आपको सादर नमन करता हूँ ! :-)))))

शिवा को सराहूं कि सराहूं छत्रपाल को
............................... मैं आपके किस शे 'र को उम्दा कहूँ ?.............. बस मैं यही कह सकता हूँ .................... शानदार ................ बधाई श्रीवास्तव साहेब 

आदरणीय सतीश जी ! ग़ज़ल को इस प्रकार से सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर !

//प्यार से सब से मिलो दिल से लगा कर देखो,

ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.//

 

इस सादा बयानी ओर गिरह का जवाब नहीं अम्बरीष भाई जी - वाह !

 

//घाव देता है हमीं को ही हमारा नश्तर,

सारी दुनिया को फ़लसफ़ा ये सुना कर देखो.//

 

क्या कहने हैं - क्या कहने हैं - क्या कहने हैं ! बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है ये शेअर - वाह ! 

 

//है बड़े काम की कुदरत इसे कर लो सज़दा,

साफ़ हों आबोहवा पेंड़ लगा कर देखो.//

 

कितना पावन सन्देश है इस शेअर में - बहुत  खूब !

 

//है खिली धूप तजुर्बे की हुनरमंदी है,

छोड़ ए सी की हवा धूप में जा कर देखो.//

 

बहुत बेहतरीन ख्याल है ये ! पहले मिसरे में दो जगह "है" ज़रा ठीक सा नहीं लग रहा, किसी भी एक "है" को "ये" कर देने से क्या ज्यादा सही नहीं लगेगा ? 

 

//यार दिल में है मोहब्बत तो है शर्माना क्या,

छोड़ शर्मो-हया अब तीर चला कर देखो.//

 

बहुत खूब !

 

//ज़िन्दगी चार दिनों की है संवर जायेगी,

जो हैं भटके उन्हें हमराह बना कर देखो.//

 

वाह वाह वाह !

 

//गज़ब की चाह है दौलत की अकलमंदी क्या,

मार इज्ज़त की ज़रा यार से खा कर देखो.//

 

अति उत्तम !

 

//रूप नफरत का जहां में न नज़र आयेगा,

दुश्मनी दूर करो प्यार बढ़ा कर देखो.//

 

सुन्दर शेअर - सुन्दर सन्देश !

 

//तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में यारा,

नाज़ नखरों को जरा दिल से फ़ना कर देखो.//

 

भाई जी, "उनके" नाज़ ओर नखरे तो उनका सरमाया हैं, तो वो तो आपके दुश्मन हुए ना ?

 

//तूने खुद को ही अभी आज कहाँ पहचाना,

जो भी है सामने आईना बना कर देखो.//

 

बहुत खूब ?

 

सारी दुनिया है तेरी आज कहें ये 'अंबर',

दीप दिल में भी मेरे यार जला कर देखो.

 

बाकमाल मकता ! इस सुन्दर रचना के लिए मेरी दिली बधाई स्वीकार करें !

आदरणीय प्रधान सम्पादक जी ! ग़ज़ल की सराहना के रूप में आपका आशीष पाकर दिल बाग़-बाग़ हो गया ........इस निमित्त कोटि कोटि आभार मित्रवर :-)))
'है' को 'ये' करना ही सही है .....आपकी आज्ञानुसार संशोधन कर दिया है प्रभु जी !

आपका बहुत बहुत स्वागत है बंधुवर !

शुक्रिया हुजूर ! :-))

प्यार से सब से मिलो दिल से लगा कर देखो,

ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.

मतले से बहुत ही गहरी सीख निस्सृत हो रही है. तमाम नियमावलियाँ और शिष्टताओं का पाठ पढ़ना ही नहीं उन्हें गुनना भी बेहद ज़रूरी है जिसके लिये दुनियादारी की समझ और व्यावहारिकता का पाठ पढ़ना बहुत ही ज़रूरी है जो
किताबों की ज़ुज़ में नहीं आती. इस मतले के लिये बधाई.

 

घाव देता है हमीं को ही हमारा नश्तर,

सारी दुनिया को फ़लसफ़ा ये सुना कर देखो.

सम्यक ! आत्म-मंथन की प्रक्रिया का निष्कर्ष ! अद्भुत !!

 

है बड़े काम की कुदरत इसे कर लो सज़दा,

साफ़ हों आबोहवा पेंड़ लगा कर देखो.

भइ वाह ! एक दम सही कहा आपने, जब तक वृक्षों और प्राकृतिक पदार्थों की पूजा और सजदा करते थे सारा कुछ सही था. इस तथाकथित शिक्षा ने सबकुछ को उपयोग करना सिखा दिया. इस स्वार्थभरी आदत के चलते सारा कुछ हाथ से फिसलता
दीख रहा है तो हम ’गो ग्रीन-गो ग्रीन’ चिल्ला-चिल्ला कर सभ्य और शिक्षित बन
रहे हैं. आज के विकास को अच्छा तमाचा भी है जो धीरे से रसीद हुआ है.

 

ये खिली धूप तजुर्बे की हुनरमंदी है,

छोड़ ए सी की हवा धूप में जा कर देखो.

वाह - वाह ! प्रकृति की व्यवस्था का कोई सानी नहीं. 

 

यार दिल में है मोहब्बत तो है शर्माना क्या,

छोड़ शर्मो-हया अब तीर चला कर देखो.

क्या आह्वान है !  :-))))

 

ज़िन्दगी चार दिनों की है संवर जायेगी,

जो हैं भटके उन्हें हमराह बना कर देखो.

एक गीत याद आगया, सर जी... ’... किसी का सहारा बनो.. तुमको अपने आप ही किनारा मिल जायेगा..!’

 

गज़ब की चाह है दौलत की अकलमंदी क्या,

मार इज्ज़त की ज़रा यार से खा कर देखो.

इज़्ज़त की मार !  ऐसे ’यार’ सिर आँखों पर जो इज़्ज़त और समझ के लिये सलाह देते हों.

 

रूप नफरत का जहां में न नज़र आयेगा,

दुश्मनी दूर करो प्यार बढ़ा कर देखो.

प्रेम की गंगा बहाते चलो.  (क्या कहूँ, असली गंगा की ही हालत आजकल खराब हो कर रह गयी है)

 

तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में यारा,

नाज़ नखरों को जरा दिल से फ़ना कर देखो.

??? तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में ? कुछ और क्लियर किया जाय प्लीज.. :-)))

 

तूने खुद को ही अभी आज कहाँ पहचाना,

जो भी है सामने आईना बना कर देखो.

फूट जाता है बेचारा..  भगवान ने सूरत ही ऐसे बनायी है.. :-)))  .. हा हा हा ...

 

सारी दुनिया है तेरी आज कहें ये 'अंबर',

दीप दिल में भी मेरे यार जला कर देखो.

वाह-वाह ! मद्धिम-मद्धिम दीप जले.. और अंतर का मिट जाए अँधेरा 

दुनियादारी भरे अशार से सजी बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आपने. सादर बधाई स्वीकारें.  

 

<p>साफ़ हों आबोहवा पेंड़ लगा कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>ये खिली धूप तजुर्बे की हुनरमंदी है,</p>
<p>छोड़ ए सी की हवा धूप में जा कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>यार दिल में है मोहब्बत तो है शर्माना क्या,</p>
<p>छोड़ शर्मो-हया अब तीर चला कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>ज़िन्दगी चार दिनों की है संवर जायेगी,</p>
<p>जो हैं भटके उन्हें हमराह बना कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>गज़ब की चाह है दौलत की अकलमंदी क्या,</p>
<p>मार इज्ज़त की ज़रा यार से खा कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>रूप नफरत का जहां में न नज़र आयेगा,</p>
<p>दुश्मनी दूर करो प्यार बढ़ा कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में यारा,</p>
<p>नाज़ नखरों को जरा दिल से फ़ना कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>तूने खुद को ही अभी आज कहाँ पहचाना,</p>
<p>जो भी है सामने आईना बना कर देखो.</p>
<p> </p>
<p>सारी दुनिया है तेरी आज कहें ये 'अंबर',</p>
<p>दीप दिल में भी मेरे यार जला कर देखो.</p>">

प्यार से सब से मिलो दिल से लगा कर देखो,

ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.

 

घाव देता है हमीं को ही हमारा नश्तर,

सारी दुनिया को फ़लसफ़ा ये सुना कर देखो.

 

है बड़े काम की कुदरत इसे कर लो सज़दा,

साफ़ हों आबोहवा पेंड़ लगा कर देखो.

 

ये खिली धूप तजुर्बे की हुनरमंदी है,

छोड़ ए सी की हवा धूप में जा कर देखो.

 

यार दिल में है मोहब्बत तो है शर्माना क्या,

छोड़ शर्मो-हया अब तीर चला कर देखो.

 

ज़िन्दगी चार दिनों की है संवर जायेगी,

जो हैं भटके उन्हें हमराह बना कर देखो.

 

गज़ब की चाह है दौलत की अकलमंदी क्या,

मार इज्ज़त की ज़रा यार से खा कर देखो.

 

रूप नफरत का जहां में न नज़र आयेगा,

दुश्मनी दूर करो प्यार बढ़ा कर देखो.

 

तेरा दुश्मन जा छिपा है तेरे दिल में यारा,

नाज़ नखरों को जरा दिल से फ़ना कर देखो.

 

तूने खुद को ही अभी आज कहाँ पहचाना,

जो भी है सामने आईना बना कर देखो.

 

सारी दुनिया है तेरी आज कहें ये 'अंबर',

दीप दिल में भी मेरे यार जला कर देखो.


आदरणीय सौरभ जी !   इन अशआर की जिन असीम गहराइयों में जाकर आपने इन्हें महसूस किया  है वहाँ तक तो हम भी नहीं पहुँच सके! आत्ममंथन की प्रक्रिया का निष्कर्ष हमेशा सुखदाई ही होता है   वस्तुतः यह  प्रक्रिया ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन 'अहम्' को हमसे दूर कर सकती है | इसे आत्मसात करके एक-एक शेर पर विस्तृत समीक्षा देने के लिए आपका हार्दिक आभार मित्रवर ! सादर नमन :-))))

सादर .. .

बेहतरीन विश्लेषण.

आपने मान दिया है रविभाई साहब.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
50 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
1 hour ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"इतने वर्षों में आपने ओबीओ पर यही सीखा-समझा है, आदरणीय, 'मंच आपका, निर्णय आपके'…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मंच  आपका निर्णय  आपके । सादर नमन "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सुशील सरना जी, आप आदरणीय योगराज भाईजी के कहे का मूल समझने का प्रयास करें। मैंने भी आपको…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service