जवन घाव पाकी उहे दी दवाई
निभत बा दरद से निभे दीं मिताई
बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत 
कइलका कहाई अलाई बलाई 
बहाना बनाके कटावत बा कन्नी 
मने मन गुनीं अब.. का कइनीं भलाई 
ऊ कवना घड़ी में कवन जोग जागल 
जमुन-गंग के बीच लउकत बा खाई 
धरा बन गगन जन-बसाहट में बा ऊ 
जे बाटे गते गत त के अब लुकाई 
भले हम ना बोलीं मगर सभ बुझाला 
कहाँ से ई उनका बा पदवी कमाई 
दलानी के पल्ला का खड़कल तनिक में 
उठल डेग दुअरा के दियरी मिझाई
इसऽरे इसऽरे में बरिसल ऊ बादर 
चढ़ल देह दरिया में चटकल कलाई 
***
(मौलिक आ अप्रकाशित)
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किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।
सादर
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