For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-154

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 154 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'ख़ुमार' बाराबंकी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'क़िस्तों में ख़ुद कुशी का मज़ा हमसे पूछिए'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --का मज़ा हमसे पूछिए

क़ाफ़िया:-(ई स्वर) ज़िन्दगी,आशिक़ी, सादगी,रौशनी,बेकली,मयकशी आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी |

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 अप्रैल दिन गुरुवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अप्रैल दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 अप्रैल दिन गुरुवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 4259

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ॰ रवि जी, बहुत बहुत धन्यवाद इस विस्तृत टिप्पणी के लिए।

//आसान गिरह का रास्ता:  हा हा…… सही पकड़े हैं।

//शाह और साधू की अत्फ़: इसका मुझे भी इंतज़ार रहेगा

आपके त्वरित शेर ने मन मोह लिया । बेहद शुक्रिया 

आदरणीय अजय जी क्या खूब ग़ज़ल है, सर्वप्रथम इसके लिए हार्दिक बधाई आदरणीय रवि शुक्ल जी की बात से मैं सहमत हूं। साथ ही, मतले में आपने बे-गर्ज़ शब्द का इस्तेमाल किया है, वहां बे-ग़रज़ होना चाहिए, इस लिहाज से मिसरा बहर से बाहर जा रहा है। इस संबंध में विद्वतजनों का सुझाव बात को साफ करेगा।

आ॰ शिज्जू भाई जी, बहुत बहुत शुक्रिया। आप की उपस्थिति उत्साहवर्धक है।

//बे-ग़रज़: मैंने ख़ुदग़र्ज़ से बेग़र्ज़ बनाने का प्रयास किया। इस संबंध में अधिक जानकारी मुझे नहीं है। जैसी गुणीजनों और उस्ताद लोगों की सलाह होगी उसी अनुसार मैं इसे दुरुस्त कर लूँगा।

फ़िलहाल इस मिसरे को यूँ संशोधित कर सकते हैं क्या?:

पुर पाक दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए

एक बार पुनः आपका आभार

आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' भाई जी आदाब

तरही मिसरे पर ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें।

इक रब्त-ए-नरगिसी का मज़ा हमसे पूछिए

बे-ग़र्ज़ दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए

बे-ग़रज़ सहीह शब्द है जिसका वज़्न 2 12 है 

हर वक़्त के विसाले-सनम में कहाँ है लुत्फ़ 

इसका कभी-कभी का मज़ा हमसे पूछिए 

सुझाव - लेकिन कभी-कभी का मज़ा हमसे पूछिए  

शाहों-ओ-साधुओं का है इक सा ही फ़लसफ़ा

कहते हैं ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए 

वाव-ए-अत्फ़ उर्दू अरबी-फारसी के लिए मान्य है 

हिन्दी संस्कृत शब्दों के लिए नहीं // सादर //

जी भाई अमित जी। आपकी इसलाह बहुत उपयोगी है। इस ग़ज़ल को निश्चित तौर पर इससे लाभ होगा।

1. बेग़र्ज़ की जगह मैं कुछ और कर दूँगा। पर ख़ुदगर्ज़ में ग़रज़ क्यों नहीं है!!

2. ”इसका कभी कभी”  मुझे ज़्यादा उपयुक्त लग रहा है। क्योंकि ऊला में “हर वक़्त के का प्रयोग किया है।

3. *इक सा ही फ़लसफ़ा है फ़क़ीर और शाह का ऐसा कर दिया जाये तो 

ख़ुद-ग़र्ज़ ग़लत है  ख़ुद-ग़रज़ सहीह शब्द है 

जनाब अजय गुप्ता 'अजेय' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'बे-ग़र्ज़ दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए'---इस मिसरे पर जनाब शिज्जू जी से सहमत हूँ , 'बे-ग़र्ज़' की जगह "बे लौस" कर सकते हैं I 
'हर वक़्त के विसाले-सनम में कहाँ है लुत्फ़ 
इसका कभी-कभी का मज़ा हमसे पूछिए'----- इस शे`र के ऊला में 'विसाले सनम' ऐसे लिखें "विसाल-ए-सनम",और सानी में 'इसका' शब्द भर्ती का है, इसे बदलने का प्रयास करें I 
 'अहसासे-मखमली का मज़ा हमसे पूछिए' ----इस मिसरे में मखमली कू "मख़मली" कर लें I  
'शाहों-ओ-साधुओं का है इक सा ही फ़लसफ़ा'---इस मिसरे पर गुणीजन से सहमत हूँ , इसे यूँ कर सकते हैं :-
'शाह-ओ-गदा का दोस्तो है एक फ़लसफ़ा'
गिरह आपने मेरे स्टाइल की लगाई है ,
किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए" --किश्तों नहीं "क़िस्तों "
'मौसीक़ी, हुस्न, महफ़िल-ए-मस्ती-ओ-मयकशी'--- इस मिसरे में सहीह शब्द "मूसीक़ी" है  I 
बाक़ी शुभ शुभ 
 

आदरणीय उस्ताद जनाब समर साहेब जी, आप ने ग़ज़ल पर बारीक़बीनी से जो इस्लाह प्रस्तुत की उसके लिये अत्यंत आभारी हूँ। आप के सारे मशवरे अनुकरणीय हैं और उससे ग़ज़ल का रूप और निखार पा गया है।

आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखें

आदरणीय अजय।जी नमस्कार

अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये

गुणीजनों की टिप्पणी को भी पढ़ा काफ़ी कुछ जानने समझने को मिला,सर जी की बातें क़ाबिले ग़ौर हैं।

सादर

बहुत आभार ऋचा जी 

आदरणीय अजय जी, सादर नमस्कार। तरही मिसरे पर अच्छे अशआर से सजी हुई ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश की आपने। गुणीजन पहले ही सब कुछ कह चुके हैं। मुशायरे से जुड़ने के लिए हार्दिक बधाई आपको।

शुक्रिया भाई जयनित जी 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service