For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89 (विषय: बाज़ार)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'बाज़ार;। तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-89
"विषय: 'बाज़ार'
अवधि : 30-08-2022  से 31-08-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2060

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सादर नमस्कार। विषयांतर्गत झकझोरती उम्दा प्रवाहमय मार्मिक विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब चेतन प्रकाश जी। बेहतरीन शीर्षक के तहत 'नारी' और 'रिश्तों' की परिस्थितिजन्य 'डील' प्रदत्त विषयांतर्गत बढ़िया है। हार्दिक बधाई। लघुकथा विधा अंतर्गतटिप्पणी व.मार्गदर्शन आदरणीय सर जी ही हमें दे सकेंगे इस रचना पर।

आ.चेतन जी,सहभागिता हेतु बधाई।एक ज्वलंत मुद्दा/बुराई इस रचना में विद्यमान है।निदान भी समीचीन ही है।पर, मेरी समझ में इसे लघुकथा का सही रूप देने में रचना में संक्षिप्तता,कसावट और काल -खंड पर गौर फरमाना ज्यादा जरूरी है।भाषागत अशुद्धियां बहतायत से हैं,भले ही टंकण जनित हों।पर इनका निराकरण आवश्यक है।

आ. लघुकथा का कालखण्ड सौ प्रतिशत समसामयिक है! टंकण की त्रुटि तो ' 'बहतायत' भी है!  इति! 

विषयाधारित सुन्दर रचना के लिए बधाई।


कृतार्थता
महिला दिवस पर समानता का अधिकार का नारा लगाते हुये आयोजन स्थल पर सब एकजुट होकर नारे की सार्थकता को सिद्ध कर रही महिलाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था कि हम बहू नहीं बहुमत हैं। दिवस पर जीवंत दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए सामूहिक तस्वीर खिंचवाते हुये अपनी-अपनी घनिष्ठता का ध्यान रख रही थी।
तभी अपनी बस्ती की साथिनों के संग दिवस को सफल बनाने आई राजुला की नजर झुंड में खड़ी अपनी मालकिन से टकरा गई।अपनी मालकिन जैसी हूबहू साड़ी पहने राजुला की स्वाभिमान से चमकी ऑखों में अतीत के चलचित्र कौंध गये।
खरीदारी करते हुये भांति-भांति की बिखरी साड़ियों में छिपी हूबहू अपनी मालकिन की किनारीदार साड़ी जैसी… चकमक का जादू उसकी ऑखों को चकाचौंध कर … मन में ऊहापोह मचाने लगा ।लोभनीय ऑखों में उत्पन्न हुये अलभ्य सपने मन-मस्तिष्क पर हावी होते ही झट से साड़ी उठा कलेजे से लगा ली।
कैसे उस दिन घर पर किटी पार्टी में अपने महिलामंडल की शान बनी मालकिन अपनी संग सहेलियों को ऐसी ही साड़ी दिखा रही थी और सहेलियां उनकी पसंद व खरीददारी पर कसीदें काढ़ रही थी… उसने उत्सुकतावश चाय-नाश्ता देते हुये मालकिन से दबी आवाज में दाम पूछा तो गर्वीले हावभाव से इतराते हुये उसकी खाली जेब को ठेस पहुंचाते प्रत्युतर से मन कसक गया था।
पर आज… अतीत में जकड़ी संग-साथिनों की आवाज से ढीली हुई राजुला…स्वाभिमान के धागे से बुने पल्लू को संवारते हुये मन खुशी से बाग-बाग हुआ जा रहा था… और मालकिन ने बराबर से खड़ी अपने जैसी हूबहू साड़ी पहने देख उसकी ओर चुभती नजरों से देखा।
झुंझलाहट को ढांपने की असफल कोशिश में  मालकिन का आहत होता मन बाजारीकरण को कोसता…..खोखली मुस्कराहट ओढ़ बुझे मन से बधाई देते हुये मन कसेला हो गया।
स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता

आदाब। विषयांतर्गत 'बाज़ारूपन', अहम/घमंड/छोटी या बड़ी सोच पर बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा। रचना में कुछ समय और देकर तनिक सम्पादन/कसावट की आवश्यकता भी लग रही है।

जी बहुत-बहुत धन्यवाद, सर।

आ.बबिता जी,सहभागिता हेतु बधाई।बाजार में सब बिकता है।जो चाहे खरीद ले।बस पैसा चाहिए।मालकिन को अपनी साड़ी जैसी साड़ी में नौकरानी को देखकर जलन हुई,भले वह नारी -स्वभिमान या उत्थान वाली पार्टी में शरीक होने गई थी।मन में अपने लिए उच्चता और राजुला के लिए हीनता का भाव संजोई हुई थी।

हां,इतना जरूर ध्यान आकृष्ट करुणा कि भाषा की शुद्धि होऔर वाक्य -विन्यास लुंज -पुंज न हो,इसका ध्यान रहे।

आदरेया बबिता गुप्ता जी नमन, अच्छी लघुकथा आपने कही, मानवगत क्षुद्रता और ईर्ष्या को उकेरती कथा प्रेरणास्पद है! 

बाजार

____

सुबह उनकी चाय लेकर बेटा खुद आया था। साथ में उसका अपना कप भी था। दोनो कप टेबल पर रखकर वो चुपचाप सामने बैठ गया। कुछ देर दोनो यूँ ही बैठे रहे फिर जोशी जी से रहा नहीं गया।

" क्या हुआ ?" चाय का अपना कप उठाते हुए उन्होने पूछा।
" काजू घर छोड़कर चला गया है, एक चिट्ठी छोड़कर"
काजू उनका पच्चीस  साल का पोता है।
" कोई लड़की?"
"नहीं बाबूजी!अब ये सब नहीं होता। वो गुरू जी" चाय का घूँट भरते हुए बेटा धीरे से बोला।
" अच्छा! जो जीवन का सार, जीवन जीने की कला वगैहरा वगैहरा  सिखाते है,बदले में अच्छे खासे पैसे लेते है"
जोशी जी को ध्यान आया कुछ दिन पहले जब वो नहा कर निकलते हुए जोर जोर से श्लोक बोल रहे थे तो काजू ने उन्हें गुस्से में शोर करने को मना कर दिया था। वो कान में इयर फोन घुसाए लैपटाॅप में किसी को सुन रहा था। लैप टाॅप के पर्दे के दृश्य की भी उन्होने एक झलक तब ले ली थी। कुछ लोग सफेद लबादों में नाच रहे थे।  तब बहू ने इन गुरूजी के बारे में बताया।
" छोड़िये बाबूजी, आ जायेगा जब पैसे खत्म हो जायेंगे।" बेटा खड़ा हो गया था।
" ये खिड़की बन्द कर देना बेटा। सामने बाजार की लाइटे सीधे आँखों में पड़ती हैं" जोशी जी धीरे से बोले।
__
मौलिक व अप्रकाशित

सादर नमस्कार। विषयांतर्गत गुरुओं के बाज़ार/बाज़ारूपन पर करारा तंज/व्यंग्य और पीड़ितों की पीड़ा अभिव्यक्त करती बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।

/काजू उनका पच्चीस  साल का पोता है/

/ जोशी जी को ..... के बारे में बताया/

...  ये विवरण वाले वाक्य मेरे विचार से किसी अन्य ऐसे रूप/शैली में भी कहीं किसी तरह समायोजित किये जा सकते हैं, ताकि प्रवाह बेहतरीन हो सके मेरे विचार से। मेरी समझ से राय मात्र। शेष आपकी निजी शैली की बात है यह तो।

हार्दिक आभार। खास शैली जैसा तो कुछ नहीं है। ये अवश्य है कि इस विषय को लेकर एक विचार जो दिमाग में चल रहा था उसको त्योहार की व्यस्तता में लघुकथा में ढालने में कुछ जल्द बाजी की ही कोशिश है ये। विषय तो बहुत बहुआयामी है

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
5 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
8 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service