For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-142

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 142वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब बशीर बद्र

 साहब की गजल से लिया गया है|

" फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला  "

  1212             1122                 1212             112            

 

मुफ़ाइलुन                     फ़इलातुन           मुफ़ाइलुन                 फ़इलुन/फेलुन

बह्र: मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर

 

रदीफ़ :-  न मिला

काफिया :- ई(आदमी, कभी, वही, भी, सही,  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 अप्रैल दिन बुधवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अप्रैल दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 अप्रैल दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2843

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. सालिकजी

गजल पसंद करने के लिए शुक्रिया।

मैं ही पड़ौसी से ताज़िन्दगी कभी न मिला

 जो आशना हुआ उस पे तो अजनबी न मिला

वो फर्क़ अपने-पराये का भी जाता रहा जाँ

भला हो तीरगी अहसास ए क़मतरी न मिला

वो बुतक़दों में खुदा ढूढ़ते रहे यारो

वो मुफलिसों में रहा मन्दिरों कभी न मिला

साक़ी पिला मुझे इस तरह होश ना रहे याँ

नशा कभी जो हुआ सच कहीं सही न मिला

लगी जो दिल पे बराबर वो चोट रोये हम

फिर उसके बाद मुझे कोई अज़नबी न मिला ( गिरह )

हुलास न कोई चेतन जहाँ मुराद नहीं

दुखों भरा फसाना ज़ीस्त हमनशी न मिला

मौलिक व अप्रकाशित

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल की कोशिश अच्छी है,लेकिन ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है,बहरहाल आयोजन में सहभागिता के लिए आपका धन्यवाद ।

'मैं ही पड़ौसी से ताज़िन्दगी कभी न मिला

 जो आशना हुआ उस पे तो अजनबी न मिला'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका, सानी का वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं,ग़ौर करें ।

'वो फर्क़ अपने-पराये का भी जाता रहा जाँ

भला हो तीरगी अहसास ए क़मतरी न मिला'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरा बह्र से ख़ारिज है, देखें ।

'वो मुफलिसों में रहा मन्दिरों कभी न मिला'

इस मिसरे के वाक्य विन्यास और व्याकरण पर ग़ौर करें ।

'साक़ी पिला मुझे इस तरह होश ना रहे याँ'

ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखियेगा ।

'लगी जो दिल पे बराबर वो चोट रोये हम

फिर उसके बाद मुझे कोई अज़नबी न मिला ( गिरह )'

गिरह के मिसरे में शुतर गुरबा दोष है,देखियेगा ।

'हुलास न कोई चेतन जहाँ मुराद नहीं

दुखों भरा फसाना ज़ीस्त हमनशी न मिला'

मक़्ते के दोनों मिसरे बह्र से ख़ारिज हैं,और सानी में क़ाफ़िया दोष भी है,सहीह शब्द है "हम नशीं''

आदरणीय चेतन जी  नमस्कार

ख़ूब हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिए।

सर जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है।

सादर

1212     1122   1212    112   

मिले तो लोग बहुत पर कोई सही न मिला

दिलों को जोड़ दे जो ऐसा आदमी न मिला ...1

 

यहाँ के लोग मुहब्बत पसंद हैं इनकी

मुहब्बतों में सियासत की दुश्मनी न मिला ...2

 

फिर उसके बाद मुनासिब न था मेरा रुकना

कि जब सवालों का अपने जवाब ही न मिला ...3

 

मिला था प्यार जो बचपन में दोस्तों से मुझे  

वो ज़िंदगी में दुबारा तो फ़िर कभी न मिला ...4

 

बना हुआ था ख़ुदा हर कोई यहाँ लेकिन  

मुझे तो शह्र में इक अच्छा आदमी न मिला …5

 

ज़रा सी देर मैं बच्चों के साथ बैठ गया

"फिर उस के बा'द मुझे कोई अजनबी न मिला" ...6

 

सफ़र तवील था नादिर ये ज़िंदगी का बहुत

कहीं सुकून का साया मगर कभी न मिला ...7

 

    (मौलिक एवं अप्रकाशित)

आदरणीय नादिर जी,नमस्कार

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए

सादर

जनाब नादिर ख़ान जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'मिले तो लोग बहुत पर कोई सही न मिला

दिलों को जोड़ दे जो ऐसा आदमी न मिला'

उचित लगे तो मतला यूँ कहें:-

'मिले तो लोग मगर ऐसा कोई भी न मिला

दिलों को जोड़ सके जो वो आदमी न मिला'

'फिर उसके बाद मुनासिब न था मेरा रुकना'

इस मिसरे में उचित लगे तो 'मेरा' की जगह "वहाँ" कर लें ।

'मिला था प्यार जो बचपन में दोस्तों से मुझे  

वो ज़िंदगी में दुबारा तो फ़िर कभी न मिला'

इस शैर को उचित लगे तो यूँ कहें:-

'मिला था प्यार जो बचपन में दोस्तों से यहाँ  

वो ज़िंदगी में दुबारा मुझे कभी न मिला'

'बना हुआ था ख़ुदा हर कोई यहाँ लेकिन  

मुझे तो शह्र में इक अच्छा आदमी न मिला'

इस शैर को दूसरे तरीक़े से कहने का प्रयास करें ।

गिरह नहीं लगी ।

'सफ़र तवील था नादिर ये ज़िंदगी का बहुत

कहीं सुकून का साया मगर कभी न मिला'

उचित लगे तो मक़्ता यूँ कहें:-

'तमाम उम्र कटी धूप में ही ऐ 'नादिर'

कहीं सुकून का साया हमें कभी न मिला'

आदरणीय समर कबीर साहब ग़ज़ल में आपकी उम्दा इस्लाह का बहुत शुक्रिया ...

आदरणीय भाई  नादिर ख़ान जी
सादर अभिवादन
तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाईयाँ स्वीकार करें.

आ. नादिरजी

तरही मिसरे पर गजल के लिए बधाई। कबीर सर की इस्लाह से उसमें और निखार आ गया है।

"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-142 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मिथिलेश जी, इतना ही कहूँ,   ... ' पहचान पता न चले। बस। ' रहस्य - रोमांच…"
21 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय उस्मानी जी, लघुकथा की मार्मिकता की परख हेतु आपका दिली आभार। "
24 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा को मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय, मिथिलेश जी। "
26 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
12 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service