For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यथार्थ के दोहे. . . . . .

यथार्थ के दोहे .....

पाप पंक पर बैठ कर ,करें पुण्य की बात ।
ढोंगी लोगों से मिलेेें, सदा यहाँ आघात ।।

आदि -अन्त के भेद को, जान सका है कौन ।
एक तीर पर शोर है, एक तीर पर मौन ।।

आदि- अन्त का ग्रन्थ है, कर्मों का अभिलेख ।
जन्म- जन्म की रेख को,देख सके तो देख ।।

कितना टाला आ गई, देखो आखिर शाम ।
दूर क्षितिज पर दिख रहा, अब अन्तिम विश्राम ।।

तृप्ति यहाँ आभास है, तृष्णा भी आभास  ।
मौसम का मधुमास भी , आभासी मधुमास ।।

सुशील सरना /26-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 904

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2022 at 6:38am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई। 

Comment by Sushil Sarna on April 21, 2022 at 10:03pm
आदरणीय पंकज जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव देने का दिल से आभार ।मेरे विचार से प्रयुक्त शब्द करें और मिलें अपने स्थान पर ठीक हैं ।सादर नमन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 7, 2022 at 5:15pm

आदरणीय सुशील जी उत्तम भावों के लिए साधुवाद। 

आदरणीय अग्रज सौरभ पांडेय जी के सुझावों पर ध्यान देना उचित होगा।

करें....के स्थान पर करे, मिलें के स्थान पर मिले।

उत्तम भावों और सनातन सत्य को उद्घाटित करते दोहों के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2022 at 2:43pm
आदरणीया दीपाली ठाकुर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार ।
Comment by Sushil Sarna on April 7, 2022 at 2:42pm
परम आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया ।
Comment by Deepalee Thakur on April 4, 2022 at 11:52am
बहुत अच्छे दोहे ,बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2022 at 1:17am

आदरणीय सुशील सरना जी, गहरे पैठे हैं आप. और मोती निकाल लाये हैं. दोहों का भावपक्ष निस्संदेह अत्युन्नत है. अलबत्ता अभिव्यक्ति को एक-दो स्थानों पर कसावट चाहिए प्रतीत होता है. 

जैसे, पंक पर नहीं पंक में. 

देखो आखिर शाम की जगह आखिर देखो शाम. ऐसा क्यों, यह आप अवश्य सोचें. 

 

प्रस्तुत दोहे का हर पक्ष समृद्ध है. कहन की उठान चकित कर रही है.

तृप्ति यहाँ आभास है, तृष्णा भी आभास  ।
मौसम का मधुमास भी , आभासी मधुमास ।।

वाह, वाह, वाह !

हार्दिक बधाइयाँ..

Comment by Sushil Sarna on March 30, 2022 at 10:08pm
आदरणीय विजय निकोर जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।
Comment by vijay nikore on March 30, 2022 at 3:24pm

आ० मित्र सुशील जी, दोहे बहुत ही सुन्दर....आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on March 30, 2022 at 1:49pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब - सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
11 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
13 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
49 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service