For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-81 (विषय: विश्वास)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-81 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है,
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-81 
"विषय: 'विश्वास'  
अवधि : 30-12-2021  से 31-12-2021 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3528

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जी आदरणीय योगराज जी,आपका बहुत बहुत आभारी हूं कि आपने मेरी लघुकथा को मान बख्शा।आपकी सलाह के अनुरूप लघुकथा में परिमार्जन अवश्यंभावी है, सादर।

आदरणीय योगराज भाई जी,आपकी सलाह के अनुरूप मैने अपनी उक्त लघुकथा में किंचित परिमार्जन किया है।प्रस्तुत है लघुकथा का नवीन स्वरूप:

प्रिय सहेली शीलू,
चिट्ठी लिखने में देर हुई।क्षमा करना।तुमने मेरा पिछला पत्र पढ़कर उसमें उद्भाषित हुई मेरी उद्विग्नता का जिक्र किया था।भरोसा रखने की नसीहत भी दी थी। पर सखि, भरोसा रखते रखते जब वह खंडित होता है,तब आदमी थका हुआ महसूस करने लगता है।ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ है।जोर देती हो तो लो सुन लो:
मैं नई नई कॉलेज़ में गई थी।एक दिन छात्र  -सभा हुई।अमीश नाम के सुंदर गठीले  एक उच्च दर्जे के छात्र के भाषण से मैं बहुत प्रभावित हुई।पूछताछ पर पता चला कि वह स्नातकोत्तर का था।उसके चाल चलन और चरित्र के काफी चर्चे थे।सुना कि सभी जरूरतमंद छात्र छात्राओं की वह मदद भी करता था;चाहे पढ़ाकर या अन्यथा भी। मैं अचंभित थी कि खुद की पढ़ाई करते हुए वह कैसे कॉलेज की जरूरतमंद मंडली की सहायता करता होगा।
धीरे धीरे मैं उसके करीब आने लगी। आ भी गई।बड़ा आसान लगा यह सब।कितना सरल व्यक्तित्व है उसका, मैं सोचती;कहां वह उच्च वर्ग लड़का,कहां मैं कॉलेज में नितांत नई।जूनियर भी हूं।पर उसने पास आने दिया।यह उसका बड़प्पन ही तो है।
नजदीकी भरोसे का शक्ल अख्तियार कर गई। दुर्गापूजा की छुट्टी में भी मैं उसके कहने पर घर नहीं गई।हॉस्टल में ही रह गई कि इस दरम्यान वह मेरी तैयारी पूरी करा देगा।अलग से ट्यूशन की जरूरत न होगी।

फिर उस दिन शाम को उसके कमरे में गई,क्योंकि दिन में आने से उसने मना किया था।बोला था ,पूजा का दिन है।थोड़ी कर लेंगे।फिर शाम को ढंग से अभ्यास करेंगे।उसने उत्साहपूर्वक मेरा स्वागत किया। मैं अंदर आई। दरवाजा बंद हुआ।उसने हमेशा की भांति मेरे कंधे पर हाथ रख स्नेह जताया।सीने से भी लगाया। ।पर और दिनों की तरह मुझे प्रेम करके अपने से अलग नहीं किया।उसका एक हाथ अब मेरी पीठ पर फिसलने लगा।उसने अपनी दूसरी तलहथी मेरे नथुनों के पास कर दी। मैं अचेत होने लगी।
फिर जब मेरी आंख खुली,मैं निढाल पलंग पर थी।वह मेरे चेहरे पर दुलार कर रहा था। मैं उसका चेहरा देखती रही,वह गर्व से सीना फुलाए सिगरेट के कश लगाता रहा बोला,' कपड़े पहन लो।जाओ। हां,आती रहना।'
मैंने गुस्से से उसे देखा,तो पलटकर बोला, 'कोई भरोसा नहीं करेगा।इसलिए अच्छा हो, जुबान न खुले।'
अब मैं टूटे भरोसे वाली छात्राओं की टोली बना रही हूं। उस हरामजादे का उत्सव मनेगा। उसका भरोसा वाला दुर्ग ढहेगा। तुम्हे भी बुलाऊंगी।अपने कॉलेज का यह उत्सव देखना, प्रिय सखि!'
तुम्हारी,
मीनू
@

मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आ० मनन कुमार सिंह जी.

आदाब। आपकी पिछली प्रविष्टियों से भिन्न अधिक शब्दों की अच्छी रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। मैं आदरणीय सर श्री योगराज जी की टिप्पणी से सहमत हूँ। सांकेतिकता और कम शब्दों में यह रचना आप बेहतर कह सकेंगे।

आपका आभार आ.उस्मानी जी।

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, वाह वाह वाह क्या कहने अंतर्मन को भेदती हुई लघुकथा। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

आपका आभार आ.रचना जी।

आ. भाई ममन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

आपका दिली आभार आ.भाई लक्ष्मण जी।

चिकित्सा
------------

" डाॅ. साहब! मेरा बेटा अब आपके हवाले है तो जैसा आप उचित समझें, करें।"
"आपको भय नहीं लगेगा?"
"किस बात का?"
"हम आपके बेटे का ट्रिटमेंट ठीक से नहीं करेंगे?"
"नहीं, एकदम नहीं।"
"हम कोई आॅर्गेन निकाल लेंगे।"
"क्या बात कर रहे हैं आप, मैं सपने में भी नहीं सोच सकता।"
"तो फिर अनावश्यक टेस्ट कराकर आपसे लाखों डकार जाएँगे। अपनी झोली भर लेंगे।"
"टेस्टों के बिना इतनी भयंकर बीमारियाँ कैसे सँभलेंगी? कैंसर, किडनी डैमेज, पेट का अल्सर।"
"सर्जरी भी तो पब्लिक को अनावश्यक लगती है। हमसे नफरत व डर का यह भी कारण है। आपको..."
"...मजाक करते हैं डाॅ. साहब! आपसे भय खाऊँगा तो फिर किससे? "
उसने ऊपर की ओर देखते हुए कहा।
अब डॉक्टर साहब भी कुछ सोचने पर विवश हो गए।

********
( मौलिक एवं अप्रकाशित )

अच्छी लघुकथा है आ० अनीता रश्मि जी. बधाई स्वीकार करें. 'डॉ.' को 'डॉक्टर' कर लें. 

आ. अनीता बहन, सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
41 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
42 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service