For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-79 (विषय: मेरे देश में)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-79 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है,
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-79
"विषय: 'मेरे देश में'  
अवधि : 30-10-2021  से 31-10-2021 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1903

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आयोजन प्रारम्भ ....आप सभी का स्वागत है ।

लघुकथा - लोक तंत्र (मेरे देश में)
देश में बढ़ते हुए आतंकवाद, फिरका परस्ती, भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, महंगाई और रहबरों की ताना शाही को देखते हुए नगर के वरिष्ट नागरिकों ने आम सभा का आयोजन किया, जिसमें हर धर्म और जाति के लोगों को आमंत्रित किया गयाl

रिटायर्ड जज चावला जी ने कार्यवाही शुरू करते हुए कहा जो चाहे अपने विचार रख सकता है l

सबसे पहले एक पत्रकार बोला, "प्रेस की आज़ादी छीन ली गई है, जो सच लिखता है उस पर इंकम टेक्स का छापा पड़ जाता है, पुलिस परेशान करती है, ऐसा देश में कभी नहीं हुआ l

पीछे से एक महिला ने अपना हाल सुनाकर कहा," गैस, डीज़ल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, महंगाई बढ़ रही है, घर चलाना मुश्किल हो गया है l
एक नौ जवान आगे की तरफ से बोला," रोज़गार नहीं मिल रहा, फैक्ट्रियां बन्द हो रही हैं, पिता जी की नौकरी चली गई, परिवार को कैसे चलाएँ l

अचानक पीछे एक शोर हुआ, एक फटे हाल किसान बोलने लगा," बीज, खाद, बिजली महँगी हो गई, खेती करने में नुकसान हो रहा है, कोई सुनने वाला नहीं, अगर आवाज़ उठाते हैं तो गाड़ियों से रौंदा जाता है l

सबकी सुनने के बाद चावला जी ने कहा," पत्थरों के आगे आँसू बहाना बेकार है, लगता है आज़ादी और लोक तंत्र देश में गुलाम बना दिए गए हैं l

इतना सुनते ही सब एक आवाज़ में बोल पड़े," हम सब कर भी क्या सकते हैं l

चावला जी ने आह भरते हुए कहा, "लोक तंत्र को बचाने के लिए हम सबको जाति, धर्म के नाम पर नहीं बल्कि इस बार लोक तंत्र के नाम पर वोट देना होगा l
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

बेहद प्रेरक लघुकथा हुई है,आ.तसदीक की;बधाइयां।

आदाब मुहतरम जनाब तसदीक़ अहमद ख़ान साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई। यह सरप्राइज़ और पुरानी नियमित सहभागिता हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रोत्साहक है।
वर्तमान परिदृश्य पर हमें चेताती और सही राह दिखाती विचारोत्तेजक बढ़िया लघुकथा। मेरे/हमारे देश में यह जागरण आवश्यक है। दीपावली पर्व पखवाड़े पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। अन्य रचनाओं की प्रतीक्षा हम सभी पाठकगण कर रहे हैं।

जनाब शेख शहजाद साहिब आदाब, आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया

काफी अर्से बाद लघुकथा लिखी है 

हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब जी।बहुत सुन्दर सम सामयिक लघुकथा।

ढेर, बैर और ख़ैर (लघुकथा) :

अपने बढ़िया से मकान में वह अकेला ठीक-ठाक जीवनयापन कर रहा था। लेकिन कुछ बातों ने उसे विचलित कर रखा था कुछ दिनों से। कल ही की बात है कि संयोग से शहर के मशहूर कबाड़ी से उसकी भेंट हुई, जो उसका विद्यालयीन सहपाठी विष्णु निकला। कबाड़ से भरी किंतु व्यवस्थित दुकान उसके घर में ही थी। बातचीत हुई।

"आख़िर कबाड़ी ही रह गये तुम पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर?" उसके इस सवाल पर विष्णु ने कहा था, "मुझे तो तुम कबाड़ी नज़र आते हो। सारे परिवार का कबाड़ा कर दिया तुमने पढ़े-लिखे होकर भी। मैं तो लखपति कबाड़ी हूँ। मज़े में हूँ परिवार के साथ। ये देखो, यह कबाड़ का ढेर। बोरी में रद्दी और कबाड़ बटोरते-बटोरते आज व्यापारी बन गया हूँ कबाड़ का। लोग अच्छे भले सामानसे उकता कर कबाड़ में बेच देते हैं और हम उसे बेचकर दुगुने-तिगने पैसे कमा लेते हैं।"

वह उसे वैसे ही घूरता रहा जैसे कि कुछ दिन पहले रद्दी किताबें बेचने वाले करीम मियाँ को वह घूरता रह गया था। रद्दी पुस्तकों से एक पुस्तकालय क़ायम कर लिया था करीम मियाँ ने। ऑनलाइन बिक़ी और बुकिंग भी चल रही थी। बढ़िया कमाई हो रही थी। उसका परिवार भी ख़ुश था।

विष्णु और करीम दोनों के बच्चे बड़े शहरों में बड़ी पढ़ाई कर रहे थे।

"मैं कैसा कबाड़ी हूँ? मैंने अपना और अपने परिवार का कबाड़ा कैसे और क्यों कर दिया? संयुक्त परिवार में रिश्तों के ढेर से मैं सुकून भी न कमा पाया! संयुक्त से एकल परिवार और एकल से अकेला रह गया इस बढ़िया मकान में?" वह पहले से अधिक विचलित होता हुआ सोचने लगा।

"रिश्ते भी बिकाऊ होते हैं। रिश्ते भी कबाड़ के हिस्से होते हैं आजकल। उकता जाते हैं लोग रिश्तों से। ...लेकिन पैसों से रिश्तों का कबाड़ होता है या रिश्तों से पैसों का जुगाड़ होता है.... ये भी तो हक़ीक़त है न!" उसके वर्तमान और अतीत को याद दिलाते हुए उसके अंतरमन ने उसे फ़िर झकझोर दिया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

जनाब शहजाद साहिब आ दाब, दिए विषय पर और

पारिवारिक परिस्तिथियों को दर्शाती सुन्दर लघुकथा

मुबारकबाद कुबूल फरमाएं 

रचना पटल पर समय देकर अपनी राय साझा करने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु शुक्रिया आदरणीय तसदीक़ अहमद ख़ान साहिब।

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।बेहतरीन लघुकथा।आजकल के हालात का लाजवाब वर्णन।

रचना पटल पर आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी। कृपया सम्प्रषणीयता और क्लिष्टता आदि की लघुकथागत पक्षों पर मार्गदर्शन भी प्रदान कीजिएगा इस रचना पर।

यानी रिश्ते कबाड़ में चले गए?या रिश्तों के कबाड़ से बाहर निकल आया एकल आदमी? संशय की स्थिति को दर्शाती हुई लघुकथा प्रतीत होती है;बधाइयां।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे शेर हुए। मतले के शेर पर एक बार और ध्यान देने की आवश्यकता है।"
24 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेन्द्र जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका  ग़ज़ल को निखारने का पुनः प्रयास करती…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी का प्रयास ज़रूर करूँगी  सादर "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"ग़़ज़ल लिखूँगा कहानी मगर धीरे धीरेसमझ में ये आया हुनर धीरे धीरे—कहानी नहीं मैं हकीकत…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नहीं ऐसी बातें कही जाती इकदम     अहद से तू अपने मुकर धीरे-धीरे  जैसा कि प्रथम…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"मुझसे टाईप करने में ग़लती हो गयी थी, दो बार तुझे आ गया था। तुझे ले न जाये उधर तेज़ धाराजिधर उठ रहे…"
2 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद  श्रोतिया जी....लगभग पाँच वर्ष बाद ओ बी ओ     पर अपनी हाज़िरी दी…"
3 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"जी, गिरह का शे'र    ग़ज़ल से अलग रहेगा बस यही अड़चन रोक रहीहै     …"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
""पहुंचें" अन्य को आमंत्रित करता हुआ है इस वाक्य में, वह रखें तब भी समस्या यह है कि धीरे…"
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे मिसरे बाँधे हैं अजय जी। परन्तु थोड़ा सा और तराशा जाए तो सभी अशआर और ज़ियादा चमकने लगेंगे। आपकी…"
4 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सजावट से रौनक बढ़ेगी भले हीबनेगा मकाँ  से  ये  घर धीरे धीरे// अच्छा शेर है! अच्छे…"
4 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छी ग़ज़ल कही ऋचा जी। रदीफ़ की कठिनता ग़ज़लकार से और अधिक समय और मेहनत चाहती है। सभी मिसरो को और…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service