For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौसम को .....

सुइयाँ
अपनी रफ्तार से चलती रहीं
समय
घड़ी के बाहर खड़ा खड़ा काँपता रहा
मौसम
समय के काँधे पर
अपनी उपस्थिति की दस्तक देता रहा

बदले मौसम की बयार को छूकर
झुकी टहनियाँ
स्मृतियों में
पिछले मौसम के स्पर्श का रोमांच
सुनाती रहीं
मौसम को

वायु वेग से
रेत पर छोड़े पाँव के निशान
उड़- उड़ कर
अपनी व्यथा सुनाने लगे
मौसम को

झील के पानी में निस्तब्धता
दिखाती रही
वीचियों पर सोये हुए
समय के मौन प्रतिबिम्ब
मौसम को

ठहर गया ठिठक कर मौसम
वृक्ष से
मिट्टी में  गिरे हुए 
असहाय
एक पीले पत्ते को देख कर
एक दर्द की नदी बहने लगी
मौसम के अन्तस में

मौसम ने
समय को देखा
समय ने
घड़ी को
मौसम , समय , घड़ी
तीनों मौन
विधि के विधान के आगे
तीनों मजबूर
चलते ही रहना है
घड़ी ,समय
मौसम को

सुशील सरना /2-8-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1149

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 18, 2021 at 6:24pm

//पुनः, देखें, आदरणीय, यह सुइ नहीं, सुई है.//

टंकण त्रुटि:-)))

//क्या कह दिया आपने ? अवसर मिलते ही सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा//

क्या आप मेरे दिये उदाहरण से मुतमइन नहीं हुए? 

आपके उदाहरण के लिये इन्तिज़ार रहेगा ।

//बहरहाल, हम इस बिन्दू पर चर्चा समाप्त करें//

बहतर है, बाक़ी बातें फ़ोन पर कर लेंगे ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2021 at 6:12pm

आदरणीय समर साहब, 

आपने मेरे कहे को स्वीकार किया, धन्यवाद. 

//मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है// 

पुनः, देखें, आदरणीय, यह सुइ नहीं, सुई है. 

और जनाब, यदि आप जानते थे तो हिन्दी भाषा की लिपि में इस शब्द को रहने दिया जाता न ? आपने तो उसे अशुद्ध ही साबित कर दिया.

जानकारी होना एक बात है और उसी परिप्रेक्ष्य में बात किया जाना एकदम से दूसरी बात. लिखने को तो भाई-बहन लोग शृंगार जैसे शब्द की अक्षरी को श्रृंगार बताने और लिखने लगे हैं. क्या कीजिएगा ?

//अलबत्ता में ज़रूर ये कह सकता हूँ कि आप उर्दू के शब्दों को उनके सहीह तलफ़्फ़ुज़ के साथ स्वीकार कर लें तो आपकी बहुत सी उलझनें दूर हो सकती हैं//

मैं उर्दू में लिखने और उसकी लिपि को बरतने का न कभी दावा करता हूँ, न ऐसा मैंने ऐसा कोई प्रयास किया है. मेरे लेखन की ’प्रवृति’ ही यही है, जो मैं लिखता हूँ. सर्वोपरि, देवनागरी ही हिन्दी भाषा की सांवैधानिक लिपि है.  

//यहाँ आप ग़लती पर हैं, उर्दू के दानिशवर 'ख़ुशबूएँ, 'जुगनूएँ' जैसे शब्दों को कभी स्वीकार नहीं करते, और न अपनी रचनाओं में स्थान देते हैं//

क्या कह दिया आपने ? अवसर मिलते ही सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा, आदरणीय.  .. :-))))

बहरहाल, हम इस बिन्दू पर चर्चा समाप्त करें. 

सधन्यवाद. 

Comment by Samar kabeer on August 18, 2021 at 4:16pm

जनाब सौरभ साहिब, मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है, लेकिन आपने जिस शब्दकोष का हवाला दिया है उसमें साफ़ लिखा है कि कहीं कहीं इसे "सूई" भी लिखा और बोला जाता है, बात यहीं स्पष्ट हो गई ।

//आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगी//

भाई, मेरे किस अमल से आपने जाना कि मैं हिन्दी के शब्द स्वीकार नहीं करता? अलबत्ता में ज़रूर ये कह सकता हूँ कि आप उर्दू के शब्दों को उनके सहीह तलफ़्फ़ुज़ के साथ स्वीकार कर लें तो आपकी बहुत सी उलझनें दूर हो सकती हैं:-)))

//उपर्युक्त नमूने में आप ’विशेष’ के अन्तर्गत उद्धृत वाक्य और उसमें निहित ’भी’ को देखिएगा तथा इस पर ध्यान दीजिएगा.

यह ’भी  हिन्दी भाषा में कहीं-कहीं  मान लिए गये हिज्जै के तौर पर ’सूई’ के ऊपर यथोचित रौशनी डाल रहा है. इसका अर्थ यह हुआ, कि हिन्दी भाषा के लिए मूलताः सुई ही शुद्ध अक्षरी है//

इससे कौन इंकार कर सकता है,सहमत हूँ ।

//उर्दू के दानिश्वर ’खुश्बूएँ’, ’जुगनूएँ’ आदि जैसे शब्दों को कैसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी रचनाओं में साग्रह स्थान भी देते हैं//

यहाँ आप ग़लती पर हैं, उर्दू के दानिशवर 'ख़ुशबूएँ, 'जुगनूएँ' जैसे शब्दों को कभी स्वीकार नहीं करते, और न अपनी रचनाओं में स्थान देते हैं, कुछ उदाहरण देखें,और अपनी ग़लत फ़हमी दूर करें:-

2122 1212 22/112

'जुगनुओं की ज़बान समझें तो

सौ कथाओं की इक कथा जंगल

(शीन काफ़ निज़ाम)

2122 2122 2122 212

'जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए

रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी'

(डॉ. राहत इंदौरी)

1212 1122 1212 22/112

'हमारे ख़ून से भी उसकी खुशबुएँ फूटीं

हमें तो क़त्ल भी कर के वो बेवफ़ा न लगा'

1212 1122 1212 22/112

'वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है

बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है'

(डॉ. बशीर बद्र)

और आप कहें उतने उदाहरण दे सकता हूँ ।

//और तो और, भोपाल के गली-मुहल्लों, बाज़ारों में ’दवाईयाँ’ किसी भी सचेत जन को मुँह चिढ़ाती दिखती हैं. जबकि व्याकरण, जैसा कि आपने भी लिखा है, दवाईयाँ जैसे शब्द को सर्वथा अशुद्ध ही बताएगा//

ये सिर्फ़ भोपाल के गली मोहल्लों की बात नहीं है,हर जगह ऐसा ही देखने में आता है,और इसके ज़िम्मेदार न तो हिन्दी वाले हैं और न उर्दू वाले,ये छोटी सी बात आपको भी समझना चाहिए । 

//एक और उदाहरण देता चलूँ. हिन्दी भाषा का कुआँ मालवा क्षेत्र में कुआ लिखा जाता है. इस क्षेत्र के हिन्दी भाषी कवि भी कई बार अनायास कुआ लिख देते हैं. लेकिन जैसा कि स्पष्ट है, कि, हिन्दी में मान्य शब्द कुआँ ही है.//

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि उर्दू शब्दकोष में भी 'कुआँ' ही बताया गया है,'कुआ' नहीं, मालवी कवि इसे 'कुआ' बोलते और लिखते हैं तो ये उनकी ग़लती है ।

Comment by Sushil Sarna on August 18, 2021 at 1:55pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम, हुई की विस्तृत व्याख्या का हार्दिक आभार आदरणीय । ऐसे वार्तालाप निश्चित रूप से ज्ञान की वृद्धि करते हैं ।दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2021 at 8:01am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपका कथन उचित है । उर्दू व हिन्दी में अलग अलग स्वीकारोक्ति के कारण उलझनें उत्पन्न हो जाती हैं । संका समाधान होते रहना चाहिए । इससे मुझ जैसों को बहुत कुछ नया भी सीखने को मिलता है । सादर...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2021 at 11:44pm

आदरणीय समर कबीर साहब,

आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगीं.  .. :-))))

उर्दू ने जिस शब्द को ’सूई’ लिखा और स्वीकारा है, उसे हिन्दी ने ’सुई’ लिख-लिखवा कर स्वीकारा है. बाकी, व्याकरण के नियम सही हैं, जो आपने साझा किये हैं.

परन्तु, आदरणीय,  उर्दू के दानिश्वर ’खुश्बूएँ’, ’जुगनूएँ’ आदि जैसे शब्दों को कैसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी रचनाओं में साग्रह स्थान भी देते हैं ? उदाहरण के तौर पर तो दसियों अश’आर आपके पास ही होंगे. और तो और, भोपाल के गली-मुहल्लों, बाज़ारों में ’दवाईयाँ’ किसी भी सचेत जन को मुँह चिढ़ाती दिखती हैं. जबकि व्याकरण, जैसा कि आपने भी लिखा है, दवाईयाँ जैसे शब्द को सर्वथा अशुद्ध ही बताएगा. 

बृहत हिन्दी शब्दकोश, भाग-02 (प्रभात प्रकाशन) का एक उचित पेज साझा करता हूँ.

विश्वास है, आपकी शंका का समाधान हो सकेगा. 

उपर्युक्त नमूने में आप ’विशेष’ के अन्तर्गत उद्धृत वाक्य और उसमें निहित ’भी’ को देखिएगा तथा इस पर ध्यान दीजिएगा.

यह ’भी  हिन्दी भाषा में कहीं-कहीं  मान लिए गये हिज्जै के तौर पर ’सूई’ के ऊपर यथोचित रौशनी डाल रहा है. इसका अर्थ यह हुआ, कि हिन्दी भाषा के लिए मूलताः सुई ही शुद्ध अक्षरी है.

एक और उदाहरण देता चलूँ. हिन्दी भाषा का कुआँ मालवा क्षेत्र में कुआ लिखा जाता है. इस क्षेत्र के हिन्दी भाषी कवि भी कई बार अनायास कुआ लिख देते हैं. लेकिन जैसा कि स्पष्ट है, कि, हिन्दी में मान्य शब्द कुआँ ही है. 

विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया. 

शुभ-शुभ

 

Comment by Samar kabeer on August 16, 2021 at 2:44pm

//सुइयाँ सही अक्षरी है//

जनाब सौरभ पाण्डेय जी, एक बात समझना चाहता हूँ कि शब्दकोष में "सूई" बताया गया है, तो इसका बहुवचन 'सुइयाँ' कैसे दुरुस्त होगा, मिसाल के तौर पर "पूड़ी" शब्द का जब बहुवचन लिखा जाता है तो 'डी' में लगी बड़ी 'ई' की मात्रा छोटी 'इ' की होकर "पूड़ियाँ" हो जाती है,इसी तरह 'दूरी' शब्द का बहुवचन 'दूरियाँ' होता है, तो 'सूई' शब्द के बहुवचन में 'स' और 'ई' दोनों मात्राएँ छोटी क्यों ली जाती हैं, कृपया इस पर कुछ रौशनी डालें ।

Comment by Sushil Sarna on August 15, 2021 at 9:28pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2021 at 11:54pm

आदरणीय सुशील सरना जी 

वाह ! .. बहाव के प्रभाव को हम खूब महसूस कर पा रहे हैं. 

जय-जय

सुइयाँ सही अक्षरी है. 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2021 at 3:30pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service