For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सफेद कौवा(लघुकथा)


कौवा तब सफेद था।बगुलों के साथ आहार के लिए मरी हुई मछलियां, कीड़े वगैरह ढूंढ़ता फिरता। फिर बगुलों ने जीवित मछलियों का स्वाद चखा।वह उन्हें भा गया। अब वे जीवित मछलियां ही उड़ाने लगे।सोचते कि भला कौन मुर्दों की खिंचाई करे।उन्हें भी तो चैन नसीब हो।जिंदगी भर हुआ कि नहीं,किसे पता।अहले सुबह वे कुछ मरी हुई छोटी छोटी मछलियां और कीड़े मकोड़े लिए तालाब के ऊपर मंडराने लगते।उनके टुकड़े कर पानी में फेंकते...मछलियां अपने आहार की खातिर झुंड के झुंड पानी की सतह पर आतीं....फिर बगुले झपट्टा मारते.....चोंचभर दाना चुग लेते। उड़ जाते। बची हुई मछलियां समझतीं कि जिधर बगुले भगवान बनकर उतरे थे,उधर की मछलियां उन्हें ज्यादा प्रिय हैं। वे उनका आलिंगन करने आए थे।फिर मछलियों ने तालाब को इलाकों में तब्दील कर लिया।अब देखा जाने लगा कि कौन इलाके की मछलियां सबसे पहले अपने आकाओं के स्वागत में हाजिर मिलती हैं।रतजगे तक हुए। तालाब खाली हो चला।अब उसमें केवल पानी था।जिंदगी नहीं थी।कौवा मर्माहत हुआ।सोचता कि जल में मछलियां न हों,तो जल ही क्या।पर क्या करे?साथ लगा रहा।बोल तो सकता नहीं था।पहचान लिए जाने का भय था उसे।
अब बगुलों का दल नदी की तरफ बढ़ा।वहां लोग पहले से मछलियों को दाना डाल रहे थे।बगुलों ने भी दाने डाले।छोटी छोटी मछलियां पानी पर छितराईं।चुग ली गईं।बड़ी मछलियां तो धरा धर लोगों की वंशियां चूम रही थीं जिनमें थोड़ा ज्यादा मांसल चुग्गे फंसे थे।
' इस तरह तो सारी नदियां,सरोवर ही जीवन हीन हो जाएंगे।' व्यथित कौवे ने सोचा। अब, जब बगुले जल की सतह पर झपट्टा मारने चलते,वह ' पकड़ो पकड़ो ' चिल्लाने लगता।मछलियां जल में छिप जातीं।लोगों की वंशियों के चुग्गे भी धरे के धरे रह जाते। फिर कौए की आवाज पहचान कर बगुलों ने उसे रगेदना शुरू किया।लोग भी पीछे लग गए। ' पकड़ो .. मारो..यह कौवा है।द्रोही है, भेदिया भी ' की आवाज  वातावरण  में गूंजने लगी।यूथ भ्रष्ट काक बस्ती की ओर भागा।भेदिया और द्रोही जैसे सभ्यता सूचक शब्द उसे कलंकित घोषित कर रहे थे।उसका शरीर काला पड़ता जा रहा था।उधर बगुलों का दल समंदर की तरफ उड़ चला।लोग भी उधर ही बढ़ गए।
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 422

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on May 25, 2020 at 11:35am

सादर आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई जी।

Comment by Manan Kumar singh on May 25, 2020 at 11:35am

सादर आभार आदरणीय समर जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 25, 2020 at 8:44am

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 6:28am

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service