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Manan Kumar singh's Blog (277)

कर्तव्य-बोध(लघुकथा)

कर्तव्य-बोध

मरे कौवे ली लाश तीन दिनों से उस पॉश कॉलोनी के बीचोबीच गुजरनेवाली सड़क पर पड़ी थी। गाड़ियाँ गुजरतीं,उसे रौंदतीं। लोग आते। चले जाते। दो लोग अपने अच्छी नस्ल के कुत्तों को सायंकालीन प्राकृतिक क्रिया से निबटारा कराने के लिए भ्रमण के बहाने वहाँ से गुजरे। कौवे की शेष बची लाश पर अकस्मात एक का पैर पड़ गया।नाक-भौं सिकोड़ते हुए वह गुर्राया,

कैसे लोग इधर रहते हैं! सड़ी लाश के परखच्चे उड़ रहे हैं। किसी को कोई चिंता ही नहीं।

नगर…

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Added by Manan Kumar singh on November 10, 2022 at 9:28am — 4 Comments

किसका बच्चा(लघुकथा)

किसका बच्चा

सँवरी के नाक-नक्श तीखे हैं। मुँह का पानी थोड़ा फीका पड़ा है,तो क्या? उसे दूल्हे के लिए कभी तरसना नहीं पड़ता। चढ़ती जवानी में उसे दिल्ली के दिल वाले दूल्हे का संग मिला। खूब रंगरेलियाँ हुईं।फिर उसे लगा कि उसका दूल्हा किसी और पर फिदा है।स्मृति-पटल पर वे लमहे उभरते, जब उसके हर नाज-नखरे कुबूल होते थे। अब उसे अपने भाव में कमतरी का अहसास हुआ। बिदक गई। दिल्लीवाले को चिढ़ाने के लिए उसने एक ठेंठ भोजपुरिया दूल्हा ढूँढा। उसके संग हो गई।प्यार…

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Added by Manan Kumar singh on November 7, 2022 at 3:14pm — 2 Comments

झाड़-फूँक(लघुकथा)

बुनिया उम्र में बड़ी थी,तो क्या?गोरी चिट्टी,छरहरी थी। कमलू से ब्याह दी गई।अब कमलू अपना पाँच बार फेल हुआ मैट्रिक का इम्तहान संभाले, या बुनिया को निहारे? वह नाराज रहने लगी।

एक शाम बुनिया की तबीयत बिगड़ गई। हाथ-पैर पटकती। सिर दीवार से टकराती। घरेलू डॉक्टर की दवाएँ काम न आईं। चतुरी चाची बोलीं, ‘हवा लगी है।’

फिर क्या करें?’ घरवालों ने पूछा।

ओझा बुलाओ। और…

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Added by Manan Kumar singh on November 2, 2022 at 3:00pm — 2 Comments

संतरी(लघुकथा)

संतरी

कई पहरेदार बदले,पर हालत नहीं बदली। मंदिर के सामान गायब होते रहे। हारकर पंचायत ने काली कुतिया के जने कजरे को संतरी बहाल किया।कारण था कि कजरा रात भर में गाँव के सभी दरवाजों पर भौंक आता था। यह भी तय हुआ कि अब कुत्तों कोसंतरीकहा जाएगा। आदमी पर से भरोसा उठ चुका था।

कजरा काम पर लग गया। रातभर मंदिर के आसपास घूमता। भौंकता। गाँव भर के ‘संतरीभी भौंकते।लेकिन अब नित नई-नई शिकायतें आने लगीं।

मंदिर के…

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Added by Manan Kumar singh on October 27, 2022 at 11:06am — 2 Comments

कफनचोर(लघुकथा)

कफनचोर

छोड़ा ही क्या है इसने?’

घर के पिछवाड़े तक की जमीन बेच दी।

भुवन के घर की यारी ऐसे ही फलती है।

भगेलू की भौजाई से रिश्ता था इसका।

मरने लगा तो बहन के घर इलाज कराने गया था।

शीला मरा पड़ा था और गाँव के मर्द-औरत यही सब बतिया रहे थे। अर्थी तैयार हुई।लाश उसपर रख दी गई।अब अर्थी उठने ही वाली थी कि सब लोग चौंक गए। ‘ठहरो। अर्थी नहीं उठेगी।भार्गव ज़ोर से चिल्लाया। साथ…

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Added by Manan Kumar singh on October 23, 2022 at 3:55pm — 6 Comments

अपनी अपनी खुशी(लघुकथा)

अपनी अपनी खुशी  

ऊँचका घर यानि बाबा घर में लंबी प्रतीक्षा के बाद पोता हुआ है।पोतियाँ पहले से हैं। परिवार के कुछ लोग शहर से आए हैं। मिठाइयाँ बंट रही हैं। मुहल्ले के लोग मिठाई खाते,खुशी का इजहार करते। कोई कहता, ‘बस यही कमी…

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Added by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 6:00pm — 4 Comments

लाल रुमाल(लघुकथा)

लाल रुमाल

 ‘रेल लाइन पर भिनुसार वाली गाड़ी से एक औरत कटी मिली। हाथ में लाल रुमाल था  .... उसपर हरे रंग में लिखा था ... जगदीश।सुबह होते यह खबर सारे गाँव में फैल गई।कौन ? कहाँ की?’ जैसे सवाल हवा में तैरने लगे। रेल लाइन के पास ही गाँव के बड़े ब्रह्म के चबूतरे पर कुछ औरतें इकट्ठा हैं; कुछ बाबा को पूजने आई हैं, कुछ घसियारिनें हैं। चिड़ई भौजी उनसे मुखातिब हैं। एक…

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Added by Manan Kumar singh on October 18, 2022 at 1:30pm — 8 Comments

भाई(लघुकथा)

भाई

बुल्लु की शादी का कर्ज़ अभी सिर पर है..... और वह मर गई।इतना कह चेंथरु लगा फफक पड़ेगा, पर उसने अंदर के तूफान को थाम लिया।शायद पड़ोस के भाई से झिझक हो कि शिकायत हो जाएगी।पर, उसकी आँखें भींग गई थीं। अँधेरे में भी उसकी आवाज सब कुछ जाहिर कर रही थी।

दुख हुआ सब सुनकर, चेंथरु।ढाढस बांधते हुए मास्टर जी बोले।

भइया, कोई पूछेवाला नहीं था कि कुछ मदद चाहिए…

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Added by Manan Kumar singh on October 16, 2022 at 11:49am — 3 Comments

जिज्ञासा (लघुकथा)

जिज्ञासा

पार्क से आते ही मोनू ने सवाल किया, ‘पापा, अपनी कार रात को झुग्गीवाले मुहल्ले में क्यों जाती है?’

बिजनेस के सिलसिले में?’

तो उसमें चढ़कर लड़कियाँ कहाँ जाती हैं?’

काम पर, बेटे।सेठ ने बेटे को संतुष्ट करना चाहा।

रात को कौन-सा काम होता है,पापा?’

ढेर-सारे काम हैं,बेटे।जैसे कॉल सेंटर वगैरह,जो रात…

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Added by Manan Kumar singh on October 15, 2022 at 5:53pm — 7 Comments

एडमिशन(लघुकथा)

एडमिशन

‘मम्मी, मेरा एडमिशन………।' कॉलेज से आती बबली अपनी बात पूरी करती कि फोन की घंटी घनघनाई, ‘....ट्रीन..ट्रीन..।' मालती ने फोन उठाया। बबली अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।  

हेलो मालती, मैं सुविधा बोल रही हूँ। सुविधा ठक्कर।'

हाँ बोलो।' मालती ने बेरुखी से कहा।  

तुम मिली समीर से?’

सोचती हूँ,मिल ही लूँ।'

‘अभी सोच ही रही है तू?’ सुविधा ने जरा डपट कर…

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Added by Manan Kumar singh on October 12, 2022 at 4:51pm — 14 Comments

काली कुतिया

कुत्तों के दो गुट थे,झबड़ा गुट और कबड़ा गुट।दोनों गुट एक –दूसरे के धुर विरोधी थे।पहले गुट का प्रभाव क्षेत्र विस्तृत था, दूसरे का सीमित। दूसरा गुट अपने क्षेत्र में छीनाझपटी, काटाकुटी के लिए ज्यादा मशहूर था।तीसरी जमात कबड़ी नाम की एक काली कुतिया की थी। वह धूर्तता के लिए विख्यात थी। गोस्त वगैरह की हवा लगते ही वह दुम हिलाती वहाँ पहुँच जाती। कबड़ी की गाढ़ी दोस्ती एक सफेद, भूरी आँखों वाली लबड़ी नाम की बिल्ली से थी। वह दूध -मलाई, गोस्त वगैरह की खबर कबड़ी कुतिया को देती रहती।

कबड़ी कभी…

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Added by Manan Kumar singh on October 10, 2022 at 10:49am — 2 Comments

उपदेशक(लघुकथा)

आज इन्दुमति की शादी है। दलन पाठक पुरोहित हैं। इन्दु के घरवालों के सम्मुख उसे पातिव्रत्य-धर्म की शिक्षा दे रहे है, ‘औरत का सब कुछ पति के लिए होता है। अपना संचित पुण्य, सुरक्षित शील वह मिलन की पहली रात में अपने पति को समर्पित कर धन्य होती है ........।बाबा बोलते जाते हैं। घरवाले मुंड हिला-हिलाकर उनकी बातों का समर्थन करते हैं। बीच-बीच में इन्दु से भी पाठक जी पूछ लेते हैं, ‘समझ रही हो न कन्या?’ बेटी नहीं कहते हैं। उन्हें कुछ-कुछ…

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Added by Manan Kumar singh on October 8, 2022 at 5:34pm — 2 Comments

करनी-भरनी(लघुकथा)

बदलू नेता का चौदह वर्ष का एकमात्र बेटा ड्रग के ओवरडोज से मर गया। धंधेबाज गंगुआ की गिरफ्तारी हुई है।यह खबर शहर के गली-मुहल्ले में आग की तरह फैल गई।लोग कहने लगे, ‘यह बदलू तो पहले चवन्नी छाप पिछलग्गू नेता हुआ। इधर-उधर करके एक बार पार्षद भी बन गया था।इतना घपला-घोटाला किया-कराया कि इसका एक पैर हमेशा जेल में रहता।एक मामले में बाहर आता,दूसरे में गिरफ्तार हो जाता।बाद में इसने चरस-गाँजे का धंधा शुरू किया। जेल भी गया। जहाँ-तहाँ कुछ दे-लेकर…

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Added by Manan Kumar singh on October 7, 2022 at 10:42am — 2 Comments

गुमान (लघुकथा)



सुषमा ने तकिया समीर के सिरहाने कर दी थी।अपना सिर किनारे पर रखा था जो कभी ढुलक कर तकिये से उतर गया था।दोनों गहरी निद्रा में निमग्न थे।अचानक समीर ने करवट बदली।दोनों के नथुने टकराये।उसे आभास हुआ कि सुषमा का सिर तकिया पर नहीं, नीचे है।उसने आँखें खोली। उसे महसूस हुआ ,सुषमा दायीं करवट लेटी थी।उसकी उष्ण साँसें समीर को अच्छी लगीं।वह उसे तकिये पर लाने की कोशिश करने लगा।हालांकि वह चाहता था कि काम भी हो जाये और सुषमा की निद्रा भंग भी न हो।पर जैसे उसने उसे बाँहों में लेकर उसका…

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Added by Manan Kumar singh on October 5, 2022 at 5:15pm — 2 Comments

असली चेहरा

फिर जंगल का राजा हाथी ही बना है।पर, अब उसके साथ बिल्लियाँ, भेड़ें आदि हैं। भेड़ियों की बहुतायत है।समरसता, न्याय, सबको काम देने का ऐलान हो चुका है।उधर शेर -मंडल दहाड़ मारकर जंगल को सिर पर उठाए है कि इस ढुलमुल हाथी को उनलोगों ने ही पाल -पोसकर बड़ा किया।काम लायक बनाया,पर यह तो पाला- बदलू निकला।इसपर कोई क्या भरोसा करेगा? राज -पक्ष की ओर से इन सब बातों को विधवा -विलाप करार दिया गया है। शेर -दल की अब बिल्लों के दल से…

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Added by Manan Kumar singh on October 4, 2022 at 10:40am — 2 Comments

एनकाउंटर(लघुकथा)

'कभी- कभी  विपरीत विचारों में टकराव हो जाता है।चाहे- अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियाँ प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य- व्यवसाय के लोगों के बीच अपने- अपने कर्तव्य- निर्वहन को लेकर मरने- मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा- कदा तो परस्पर की लड़ाई- भिड़ाई में प्राणी इहलोक- परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहाँ हैं,तो तुरंत ऊपर पहुँच जाते हैं।पहुँचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर  पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुँहदेखते रह…

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Added by Manan Kumar singh on October 3, 2022 at 8:03pm — 4 Comments

आजकल(लघुकथा)

‘मीलॉर्ड! इसने मुझे हमेशा गलत ढ़ंग से छुआ है,मेरी रजा के खिलाफ भी।’

‘और?’

‘मुझे नींद से भी जगाता रहा है।’

‘कब से?’

‘शुरू से ही।’

‘फिर भी?’

‘तबसे जब मैं कली हुआ करता था।’ फूल ने अपनी वेदना का इजहार किया।

जज ने अपने कोट में लगे फूल की तरफ देखा।वह अपनी जगह पर कायम था,शांतिपूर्वक।जज को तसल्ली हुई।

‘फिर आज क्या हुआ?’

‘आज तो कुछ नहीं हुआ,मीलॉर्ड! पर अब भी इसकी आदतें तब्दील नहीं हुईं।यह आज भी कलियों को परेशान करता है।फूलों की नींद हराम…

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Added by Manan Kumar singh on October 1, 2022 at 5:00pm — 4 Comments

रूप(लघुकथा)

रूपसी के कोठे पर रसिया लोगों की भीड़ है।सभी अपनी हाल की देहरादून यात्रा का बड़े हौसलापूर्वक वर्णन कर रहे हैं। लखू सेठ, "बड़ी सुखद यात्रा रही,रूपसी बाई।"

गगन बिहारी पांडे बोले,"लगा जैसे स्वर्ग सीधे धरती पर उतर आया हो।"

छोटू दादा: अपुन तो दंग रह गए वहां की अतिथि शाला देखकर।बड़ी भली व्यवस्था थी, देवि।"

अपने प्रति इतना आदरपूर्वक संबोधन सुनकर रूपसी चौंक -सी गई।

"कौन अतिथि शाला,दादा?" रूपसी ने सवाल किया।

"मंजरी सदन।"

"अच्छा।पहुंच ग....ए.....।"रूपसी कहते -कहते रूक…

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Added by Manan Kumar singh on September 16, 2022 at 7:27pm — 5 Comments

दिन ढले,रातें गईं....(गजल)

2122 2122 2122 212

दिन ढले,रातें गईं,बढ़ती ही जाती पीर है

'याद कर जिंदा रहें कल',आपकी तकरीर है। 1

हो रहा सब कुछ हवा तो क्या हुआ तकदीर है

चूमने को पास मेरे आपकी तस्वीर है।2

ले गईं मोती बहाकर जब समद की शोखियाँ

बन रहे तब से घरौंदे और मन मतिधीर है।3

आंसुओं का मोल किसने है चुकाया इस जहां?

सोचता रख लूं संजो इनकी बड़ी तासीर है।4

फूल की ख्वाहिश लिए चलता रहा मैं रात -दिन

क्या हुआ अब सामने…

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Added by Manan Kumar singh on September 8, 2022 at 7:08pm — 2 Comments

प्रतिद्वंदी (लघुकथा)

दो भिखारी बीच सड़क पर झगड़ रहे थे। ट्रैफिक दोनों तरफ रुका हुआ था।लोग मौन तमाशबीन बने थे।

"तुम मेरे मुहल्ले में क्यों घुसे?" पहला भिखारी चिल्लाया।

"कौन तेरा मुहल्ला?दूसरे ने सवाल दागा।

"वही बाबा लोगों वाला।वहां केवल मैं भीख मांग सकता हूं,तुम नहीं।"

"क्यों बे? मैं क्यों नहीं?"

"इसलिए कि सामने के मुहल्ले से केवल तुझे भीख मिलती है,मुझे कभी नहीं।तेरी दुआ ही वहां फलती है,मेरा आशीष नहीं।"

"मैं तो बाबा वाले मुहल्ले में भी दुआ बांट आता हूं।कुछ मांगता भी नहीं।"

"अरे,…

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Added by Manan Kumar singh on August 22, 2022 at 1:00pm — 2 Comments

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