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ख़ामोश रहें तो भी मुश्किल
कुछ बात कहें तो भी मुश्किल..

जो राज़ छुपे हैं सीने में
खुल जाएं तहें, तो भी मुश्किल..

वादा था किया ख़ुश रहने का
आंसूं जो बहें तो भी मुश्किल..

वो दर्द मुसलसल दें चाहे
हम दर्द सहें तो भी मुश्किल ..

विपरीत बहें हम धारों के
जो साथ बहें तो भी मुश्किल ..

- नंद कुमार सनमुखानी

"मौलिक और अप्रकाशित"

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Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 29, 2018 at 10:05am

बहुत-बहुत धन्यवाद आ. बृजेश कुमार 'ब्रज' जी.

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 29, 2018 at 10:02am
बहुत-बहुत शुक्रिया "मुसाफिर" साहब..
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2018 at 9:37am

बहुत खूब, हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2018 at 4:19pm

वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल हुई..सादर

Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 2:35pm

जनाब नंद कुमार जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

बराह-ए-करम ग़ज़ल के साथ अरकान लिख दिया करें,ये इस मंच का नियम है,इससे नये सीखने वालों को आसानी होती है,ग़ज़ल आप चाहें जितनी पोस्ट करें,कोई दिक़्क़त नहीं ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 6:43pm

तंग काफ़िये पर अच्छी ग़ज़ल हुई है 
बधाई 

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 2:05pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय TEJ VEER SINGH जी...
Comment by TEJ VEER SINGH on April 23, 2018 at 1:59pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नंद कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

वादा था किया ख़ुश रहने का
आंसूं जो बहें तो भी मुश्किल..

Comment by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 1:58pm
जनाब Mohammad Arif साहब, और
माननीय Shyam Narain Verma साहब...
ग़ज़ल को पसंद करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई करने लिये आप दोनों महानुभावों का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं।
जहां तक ग़ज़ल पोस्ट करते समय उसके अरकान लिखने के नियम की बात है, आगे इसका ज़रूर ध्यान रखूंगा।
Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2018 at 12:13pm
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई ।

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